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एक नजर इधर भी : अधिकारियों की इस कार्यशैली से कैसे गड्ढा मुक्त होंगी उत्‍तराखंड की सड़कें

Uttarakhand News उत्‍तराखंड में शासन लगातार सड़कों को गड्ढा मुक्त करने के लिए दिशा निर्देश जारी कर रहा है। लेकिन इसके बावजूद स्थिति जस की तस है। सड़कों को एक सप्ताह के भीतर गड्ढा मुक्त करने की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं।

By Vikas gusainEdited By: Sunil NegiPublished: Fri, 23 Sep 2022 07:15 PM (IST)Updated: Fri, 23 Sep 2022 07:15 PM (IST)
एक नजर इधर भी : अधिकारियों की इस कार्यशैली से कैसे गड्ढा मुक्त होंगी उत्‍तराखंड की सड़कें
लगातार सड़कों को गड्ढा मुक्त करने की बात चल रही है। लेकिन गंभीरता से काम नही होरहा है। जागरण आर्काइव

विकास गुसाईं, देहरादून। इस समय शासन लगातार सड़कों को गड्ढा मुक्त करने के लिए दिशा-निर्देश जारी कर रहा है। इस क्रम में बैठकें भी हो रही हैं। बावजूद इसके स्थिति जस की तस है।

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लगातार हो रही बरसात से सड़कों के गड्ढे दुर्घटना का कारण बन रहे हैं। एक सप्ताह के भीतर सड़कों को गड्ढा मुक्त करने की मंशा पर सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि इस समय प्रदेश के लगभग सभी जिलों की सड़कों को नए सिरे से बनाने के टेंडर हो रखे हैं।

बरसात का हवाला देते हुए ठेकेदार जल्दी से काम पर हाथ नहीं डाल रहे हैं। जहां बिना डामर के सीधे ही कोलतार डालने का प्रयास हो रहा है, वहां जागरूक जनता आवाज उठा रही है। ऐसे में जिन सड़कों को नए सिरे से बनना है, वहां विभाग फिलहाल सड़कों को बदहाल छोड़ना ही मुनासिब समझ रहा है। जाहिर है समस्या से जनता पीड़ि‍त है, न कि विभाग।

डेंगू की रोकथाम को सख्त निगरानी की जरूरत

प्रदेश में डेंगू तेजी से फैल रहा है। अभी तक 650 से अधिक मरीज सामने आ चुके हैं। बावजूद इसके इनकी संख्या थमने का नाम नहीं ले रही है। दरअसल, माना यह जाता है कि हर तीसरे वर्ष डेंगू अपने सबसे खतरनाक स्वरूप में होता है।

इस लिहाज से वर्ष 2019 के बाद यह तीसरा वर्ष है। वर्ष 2019 में डेंगू का प्रदेश में खासा प्रकोप रहा था। इस समय डेंगू के लिए फागिंग करने व घर-घर जागरूकता अभियान चलाए जाने की बात चल रही है लेकिन इस दिशा में गंभीरता से काम नहीं हो पा रहा है।

बरसात के कारण जगह-जगह पानी भर रहा है लेकिन न तो कहीं फागिंग नजर आ रही हैं और न ही स्वच्छता को लेकर कोई ठोस कदम उठाए जाते दिख रहे हैं। साफ है कि बैठकों व बयानों से आगे बढ़कर इस मामले में गंभीरता से धरातल पर काम करने की जरूरत है।

भिक्षावृत्ति पर रोक को आदेश नहीं, कार्रवाई जरूरी

उत्तराखंड में भिक्षावृत्ति पर प्रतिबंध के बावजूद इस पर रोक नहीं लग पा रही है। स्थिति यह है कि यह व्यवसाय का रूप ले चुकी है। हर शनिवार व प्रमुख पर्वों पर तीर्थ स्थलों व मुख्य शहरों में भिक्षावृत्ति करने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, जिन पर रोक लगाने में पुलिस व प्रशासन बेबस है।

प्रदेश सरकार ने भिक्षावृत्ति पर रोक के लिए भिक्षावृत्ति निषेध अधिनियम लागू किया हुआ है। इस अधिनियम में व्यवस्था है कि सार्वजनिक स्थलों पर भीख मांगना या देना, दोनों ही अपराध की श्रेणी में आएगा। इसमें बगैर वारंट गिरफ्तारी का भी प्रविधान है।

दूसरी बार अपराध सिद्ध होने पर सजा की अवधि पांच साल तक हो सकती है। निजी स्थलों पर भिक्षावृत्ति की लिखित और मौखिक शिकायत पर अधिनियम की धाराओं के तहत कार्रवाई की भी व्यवस्था है, मगर कानून होने के बावजूद इसका अनुपालन होता कहीं नजर नहीं आ रहा है।

तेजी से बढ़ाने होंगे टेस्टिंग लेन को कदम

प्रदेश में वाहनों के परीक्षण के लिए 11 वर्ष पूर्व बनाई गई योजना आज तक धरातल पर नहीं उतर पाई है। अंतर इतना आया है कि पहले राज्य में एक लेन प्रस्तावित थी, अब हर जिले में लेन बनाने की बात चल रही है।

इसके लिए बजट की व्यवस्था करने की बात कही तो जा रही है लेकिन अब अगले वित्तीय वर्ष तक का इंजार करना पड़ेगा। प्रदेश में बढ़ती दुर्घटनाओं के ग्राफ को देखते हुए वर्ष 2009 में ऋषिकेश में आटोमेटेड टेस्टिंग लेन बनाने की स्वीकृति प्रदान की गई थी।

तीन करोड़ का बजट भी स्वीकृत हुआ। टेस्टिंग लेन का फायदा यह कि इसमें वाहनों की फिटनेस तेजी से जांची जा सकती है। अब सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़े बढ़ रहे हैं तो सरकार इनकी संख्या बढ़ाने पर भी जोर दे रही है। हर जिले में लेन बनाने की बात हो रही है लेकिन धरातल पर एक भी नहीं है।

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