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Holi 2023 : इस जनजाति में अनूठी परंपरा के साथ मनाया जाता है रंगों का त्‍योहार, खेली जाती है मरी और जिंदा होली

Holi 2023 उत्‍तराखंड की एक जनजाति ऐसी भी जहां की होली अपने आप में अनूठी होती है। लोग जिंदा होली (jinda Holi) और मरी होली (mari Holi) खेलते हैं। जिस दिन से खड़ी होली की शुरुआत होती है तब से थारू समाज में जिंदा होली की शुरुआत होती है।

By Jagran NewsEdited By: Nirmala BohraPublished: Tue, 07 Mar 2023 03:32 PM (IST)Updated: Tue, 07 Mar 2023 03:32 PM (IST)
Holi 2023 : इस जनजाति में अनूठी परंपरा के साथ मनाया जाता है रंगों का त्‍योहार, खेली जाती है मरी और जिंदा होली
Holi 2023 : थारू समाज के लोग जिंदा होली (jinda Holi) और मरी होली (mari Holi) खेलते हैं।

टीम जागरण, देहरादून : Holi 2023 : उत्‍तराखंड के कुमाऊं की खड़ी और बैठकी होली के बारे में तो सब जानते हैं, लेकिन उत्‍तराखंड की ही एक जनजाति ऐसी भी जहां की होली अपने आप में अनूठी होती है। यहां दो हिस्‍सों में होली खेली जाती है। जी हां, हम बात कर रहे हैं ऊधमसिंहनगर जिले के खटीमा में थारू जनजाति (Tharu tribe) की होली के बारे में।

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यहां थारू समाज के लोग जिंदा होली (jinda Holi) और मरी होली (mari Holi) खेलते हैं। होलिका दहन से पहले जिंदा होली खेली जाती है और और होलिका दहन के बाद मरी होली खेली जाती है।

कैसे मनाते हैं जिंदा होली?

जिस दिन से कुमाऊं की खड़ी होली की शुरुआत है उसी दिन से थारू समाज में जिंदा होली की शुरुआत होती है। इसे खिचड़ी होली कहते हैं। थारू समाज की इस होली में ढोल नगाड़ों के साथ पुरुष और महिलाएं भी घर-घर जाकर होली के गीत गाती हैं और नाचते हैं। होलिका दहन तक यह होली मनाई जाती है।

कैसे मनाते हैं मरी होली?

होलिका दहन के बाद मरी होली मनाई जाती है। स्‍थानीय लोगों के अनुसार ऐसी मान्यता है जिन गांवों में आपदा या बीमारियों से मौत हो जाती थी उस गांव के लोग होली का त्योहार होलिका दहन के बाद मनाते हैं। पूर्वजों के दौर से चली आ रही इस परंपरा को आज भी थारू समाज के लोग मानते आ रहे हैं।

इन गांव में होती है जिंदा-मरी होली

भूड़, सुजिया महोलिया, उमरुखुर्द, नंदन्ना, गोसीकुआ भुडिया, कुटरी, बिगराबाग, गोहरपटिया, कुटरा, आलावृद्धि, छिनकी, श्रीपुर बिछवा, बनकटिया, उइन, बिरिया मझोला, दियां, चांदपुर, देवरी, सबोरा, रतनपुर, फुलैया, सड़ासडिय़ा, झनकट आदि गांव में जिंदा होली खेली जाती है जबकि जादोपुर, बानूसी, चांदा, सैजना, चंदेली, गुरुखुडा, कुमराह, तिगरी, उल्धन।

डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।


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