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हिमालय दिवस पर तैयार होगा हिमालय घोषणा पत्र

हिमालय दिवस पर परमार्थ निकेतन में विभिन्न संस्थाओं के सहयोग से वृहद सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा। इस दौरान हिमालय नीति पर चर्चा कर हिमालय घोषणा पत्र तैयार करेंगे।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sun, 09 Sep 2018 09:55 AM (IST)Updated: Sun, 09 Sep 2018 09:58 AM (IST)
हिमालय दिवस पर तैयार होगा हिमालय घोषणा पत्र
हिमालय दिवस पर तैयार होगा हिमालय घोषणा पत्र

ऋषिकेश, [जेएनएन]: हिमालय दिवस पर आज परमार्थ निकेतन में विभिन्न संस्थाओं के सहयोग से वृहद सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा। इस दौरान संत-महात्मा, विभिन्न धर्मों के धर्मगुरु, वैज्ञानिक, शिक्षाविद् व साहित्यकार हिमालय नीति पर चर्चा कर हिमालय घोषणा पत्र तैयार करेंगे। इसे यूनाइटेड नेशन को पहुंचाया जाएगा। 

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शनिवार को परमार्थ निकेतन में आयोजित पत्रकार वार्ता में परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती महाराज, हैस्को के निदेशक पद्मश्री डॉ. अनिल प्रकाश जोशी, जीवा की महासचिव साध्वी भगवती व मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार रमेश भट्ट ने संयुक्त रूप से यह जानकारी दी। डॉ. जोशी ने बताया कि हिमालय दिवस मनाने दकी शुरुआत वर्ष 2010 में की गई थी, इसे लेकर अब सभी वर्गों में चेतना आ रही है। कहा कि हिमालय सदियों से अध्यात्म का केंद्र ङ्क्षबदु रहा है, इसलिए इस वर्ष हिमालय दिवस पर अध्यात्म को ही केंद्र में रखा गया है। इसमें संत-महात्माओं और विभिन्न धर्मों के गुरुओं की भूमिका अहम होगी। स्वामी चिदानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि हिमालय भारत के लिए सिर्फ एक रक्षा कवच या ङ्क्षसधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों का उद्गम ही नहीं, बल्कि विभिन्न संस्कृतियों का भी वाहक है। हिमालय विश्वस्तर पर जलवायु को प्रभावित करता है और भारत सहित नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि को प्रचुर मात्रा में जीवनोपयोगी जल उपलब्ध कराता है। इसलिए हिमालय के संसाधनों का सही इस्तेमाल कर अब हम उच्च हिमालयी क्षेत्रों से पलायन को भी रोक सकते हैं। 

स्वामी चिदानंद ने कहा कि तीन सत्रों में आयोजित होने वाले इस सेमीनार में हिमालय के पारिस्थितिकी तंत्र, जैव विविधता, ग्लेशियर, हिमालयी वनस्पति, जड़ी-बूटियों के संरक्षण, रोजगार आदि को केंद्र में रखकर हिमालय घोषणा पत्र तैयार किया जाएगा। इसे मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री के माध्यम से यूनाइटेड नेशन तक पहुंचाया जाएगा। साध्वी भगवती ने कहा कि उनका जन्म भले ही उपभोक्तावादी संस्कृति में हुआ, मगर उन्हें जीवन का उद्देश्य हिमालय और गंगा के संरक्षण में ही मिला। कहा कि हिमालय और गंगा दोनों आध्यात्मिक ऊर्जा के स्रोत हैं। 

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