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मजबूत सैनिक के रूप में देश की सीमाओं की रक्षा करता है हिमालय, पढ़िए पूरी खबर

हिमालय मजबूत सैनिक के रूप में देश की सीमाओं की रक्षा करता है। यह माथे पर बर्फ का मुकुट और उसके नीचे हरियाली ओढ़कर पानी हवा मिट्टी उपहार के रूप में दे रहा है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Mon, 09 Sep 2019 06:32 PM (IST)Updated: Mon, 09 Sep 2019 06:32 PM (IST)
मजबूत सैनिक के रूप में देश की सीमाओं की रक्षा करता है हिमालय, पढ़िए पूरी खबर
मजबूत सैनिक के रूप में देश की सीमाओं की रक्षा करता है हिमालय, पढ़िए पूरी खबर

देहरादून, जेएनएन। ढाई हजार वर्ग किमी में फैला हिमालय मजबूत सैनिक के रूप में देश की सीमाओं की रक्षा करता है। यह माथे पर बर्फ का मुकुट और उसके नीचे हरियाली ओढ़कर पानी, हवा, मिट्टी उपहार के रूप में दे रहा है। हिमालय पर्वत श्रृंखला को पानी, मिटटी और जैव विविधता के अथाह भंडार के रूप में जाना जाता है। ग्लेशियर पानी के भंडारण का मुख्य केंद्र हैं।

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ग्लेशियरों के पास बुग्याल (मखमली घास के मैदान) उच्च हिमालयी क्षेत्रों में मौजूद हैं। जब बर्फ पिघलती है तो इन्ही बुग्यालों के बीच पानी जमा रहता है। विंटर गेम्स के लिए प्रसिद्ध स्थल औली में भी बुग्याल हैं। इसके अलावा उत्तराखंड में वेदनी, रूपकुंड समेत कई बुग्याल हैं, जिनकेपास पानी जमा रखने की अपार क्षमता हैं। ये बर्फ के पानी को झीलों में जमा करते हैं।

बुग्याल जड़ी-बूटियों के अपार भंडार भी हैं। एक दौर में बुग्यालों तककेवल भेड़-बकरी लेकर गडरिये पहुंचते थे। बाद में गूजर लोग भी भैंसों के साथ वहां रहने लगे क्योंकि यहां की हरी मखमली घास पशुओं की कई बीमारियों को खत्म करती है और दूध की गुणवत्ता भी बढ़ाती है। शीतकाल प्रारंभ होते ही ये पशुचारक बुग्यालों को छोड़कर तराई में रहने आ जाते हैं। उनका आने जाने का क्रम हर वर्ष बना रहता है। 

अब बुग्यालों के बीच पर्यटकों की आवाजाही बढ़ गई है। यहां तक कि इन स्थलों का उपयोग उत्सवों, विवाह के आयोजन, निजी बेहतर जीवन के रूप में होने लगा है। बुग्यालों पर पड़ रहे दबाव ने कई दिक्कतें उत्पन्न कर दी हैं। हिमालयी ग्लेशियर, बुग्याल, जंगलों के प्रति हमारी इस नासमझी ने हिमालय को खतरे में डाल दिया है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब 2014 में सता में आए तो उन्होंने हिमालय से गंगा सागर तक बहने वाली गंगा की निर्मलता के लिए नमामि गंगे परियोजना प्रारंभ की। तब आस जगी कि हिमालय के जल-जंगल-जमीन के संकट को समझते हुए हिमालयी विकास का नया मॉडल मिलेगा। इस कड़ी में हिमालय लोकनीति का मसौदा भी केंद्र को भेजा गया। इसी दौरान 11 जुलाई 2014 को हरिद्वार के सांसद और वर्तमान केंद्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने हिमालयी राज्यों की अलग सामाजिक, राजनीतिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक स्थिति को ध्यान में रखते अलग मंत्रालय की पैरवी की। संसद में हुई इस चर्चा से भी आशा जगी थी कि हिमालय के लिए अलग मंत्रालय बनेगा, मगर इस दिशा में कुछ नहीं हुआ है। 

वैसे हिमालयी राज्यों के नाम पर एक अलग मंत्रालय बनाने की बात बहुत पुरानी है। 17 मार्च 1992 को योजना आयोग ने डॉ. जेएस कासिम की अध्यक्षता में हिमालय विकास प्राधिकरण का खाका तैयार किया था। हेमवती नंदन बहुगुणा ने उत्तराखंड के विकास के लिए उत्तर प्रदेश में अलग पर्वतीय विकास मंत्रालय बनवाया। इसी वर्ष जुलाई में मसूरी में हुए हिमालयन कॉन्क्लेव में भी हिमालयी राज्यों की ओर से केंद्रीय वित्त मंत्री के साथ ही नीति आयोग के समक्ष पर्वतीय मंत्रालय बनाने की मांग रखी गई।

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इस मांग के चलते 11 हिमालयी राज्यों ने अपने यहां विकास का ऐसा मॉडल नहीं बनाया, जिस पर उन्होंने विधानसभा में चर्चा की हो। हर बार केंद्र की निर्धारित योजनाओं व परियोजनाओं को चलाने का ही संकल्प दोहराने से मैदानी विकास का मॉडल ही पहाड़ों पर थोपा जा रहा है। ऐसे में कैसे हिमालय के विकास का पृथक मॉडल बन पाएगा। 

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