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जलवायु परिवर्तन को समझने की प्रयोगशाला है हिमालय

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान में आयोजित व्याख्यानमाला में वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. राजेश शर्मा ने कहा कि हिमालय के मुद्दे और शोध समाज और हमारे राष्ट्र के विकास से सीधे जुड़े हैं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 10 Sep 2020 02:22 PM (IST)Updated: Thu, 10 Sep 2020 02:22 PM (IST)
जलवायु परिवर्तन को समझने की प्रयोगशाला है हिमालय
जलवायु परिवर्तन को समझने की प्रयोगशाला है हिमालय

देहरादून, जेएनएन। हिमालय दिवस पर दून में स्थित विभिन्न केंद्रीय संस्थानों में आयोजित कार्यक्रम में हिमालय की सुरक्षा संकल्प लिया गया। वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान में आयोजित व्याख्यानमाला में वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. राजेश शर्मा ने कहा कि हिमालय के मुद्दे और शोध समाज और हमारे राष्ट्र के विकास से सीधे जुड़े हैं। लिहाजा, हिमालय दिवस और हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक आंदोलन के रूप में जागरूकता पैदा करना जरूरी है।

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उन्होंने कहा कि विश्व की कई नदियां हिमालय या तिब्बती पठार से निकलती हैं। यह उचित रूप से दुनिया का तीसरा ध्रुव और भारतीय उप-महाद्वीप का वाटर टावर कहलाता है। भूवैज्ञानिकों को पहाड़ निर्माण प्रक्रियाओं और जलवायु परिवर्तन को समझने के लिए यह शानदार प्रयोगशाला है। हिमालयी जलवायु और विवर्तनिक परिवर्तन मानसून, बाढ़, हिमपात, भूस्खलन, भूकंप, प्राकृतिक संसाधनों और उच्च हवाओं को नियंत्रित करता है। यह बोध बढ़ रहा है कि हिमालय की नदी प्रणाली, हिमनद, झरने, खनिज, वनस्पति और अन्य प्राकृतिक संसाधन समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। भारतीय मानसून एशियाई हाइड्रोलॉजिकल बजट में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

गर्मी में मानसून की बारिश खाद्य उत्पादन, पानी की आपूर्ति और भारतीय उपमहाद्वीप के आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है। हिमालय पृथ्वी पर सबसे बड़े हिमखंडों और बर्फ के भंडार में से एक है। इस अवसर पर डॉ. विक्रम गुप्ता ने भूस्खलन आपदा जोखिम न्यूनीकरण, डॉ. अजय पॉल ने हिमालयन सिस्मोलॉजी, जोखिम जागरूकता और शमन, डॉ. छवि पी पांडे ने हिमालयन ब्लैक कार्बन की यात्र और डॉ. समीर तिवारी ने भू-तापीय संसाधनों के उपयोग पर जानकारी दी।

हिमालय संरक्षण का संकल्प लिया

भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान में आयोजित हिमालय दिवस कार्यक्रम में हिमालय संरक्षण की शपथ ली गई। संस्थान के विभागाध्यक्ष डॉ. पीआर ओजश्वी और निदेशक डॉ. आरएस यादव ने सभी प्रतिभागियों को ‘हम किसी भी तरह से हिमालय की स्थिति को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे और दूसरे को भी इसकी अनुमति नहीं देंगे। हम हिमालय में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का तर्कसंगत उपयोग करेंगे’ की शपथ दिलाई। इस मौके पर डॉ. एनके शर्मा, डॉ. हर्ष मेहता, डॉ. बांके बिहारी, डॉ. राजेश बिश्नोई आदि उपस्थित रहे।

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हिमालय के महत्व व रहस्य बताए

वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ ) में 'हिमालय और प्रकृति' विषय पर हिमालय दिवस का आयोजन किया गया। भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद के महानिदेशक अरुण सिंह रावत ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए हिमालय के महत्व और प्रकृति के संरक्षण में उसकी भूमिका का उल्लेख किया। वहीँ, डॉ महाराज पंडित, प्रोफेसर, पर्यावरण अध्ययन विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय ने हिमालय की उत्पत्ति के विषय में जानकारी दी। उन्होंने विज्ञान की कहानी का उल्लेख करते हुए कहा कि विज्ञान भ्रामक प्रश्नों, संघर्षों, मृत सिरों, अंतर्दृष्टि और सामयिक रोमांचकारी घटनाओं भरा है। साथ ही भारत में हिमालय और भौगोलिक जन्म में टेक्टो-मार्फिक, जलवायु परिवर्तन के बारे में बताया। इस अवसर पर डॉ चरण सिंह, रामबीर सिंह आदि भी विचार रखे।

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