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दूरदर्शी सोच से हेमवती नंदन बहुगुणा बने राजनीति के पुरोधा, पढ़िए पूरी

स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा की दूरदर्शी सोच ने उन्हें राष्ट्रीय राजनीति का पुरोधा बना दिया। उत्तराखंड की आधार भूमि तय करने में भी उनकी भूमिका को बिसराया नहीं जा सकता।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sat, 25 Apr 2020 09:49 AM (IST)Updated: Sat, 25 Apr 2020 09:49 PM (IST)
दूरदर्शी सोच से हेमवती नंदन बहुगुणा बने राजनीति के पुरोधा, पढ़िए पूरी
दूरदर्शी सोच से हेमवती नंदन बहुगुणा बने राजनीति के पुरोधा, पढ़िए पूरी

देहरादून, जेएनएन। स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा को राष्ट्रीय फलक पर किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। उनकी दूरदर्शी सोच ने उन्हें राष्ट्रीय राजनीति का पुरोधा बना दिया। स्वतंत्रता संग्राम हो या आजादी के बाद देश को विकास के पथ पर अग्रसर करने की बात, बहुगुणा हर मोर्चे पर अग्रिम पंक्ति में खड़े रहे। उन्होंने अंतिम सांस तक देश और पहाड़ों के विकास की ही फिक्र की। उत्तराखंड की आधार भूमि तय करने में भी उनकी भूमिका को बिसराया नहीं जा सकता।

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आज उनका 101वां जन्म दिवस है। तो क्यों न उन्हें व्यक्तित्व व जीवन पर दोबारा नजर डाली जाए। हेमवती नंदन बहुगुणा का जन्म 25 अप्रैल 1919 को उत्तराखंड (तत्कालीन उत्तर प्रदेश) के पौड़ी जिले के बुघाणी गांव में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा पौड़ी से ग्रहण करने के बाद उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए की डिग्री हासिल की। इस दौरान स्वतंत्रता संग्राम में बहुगुणा ने बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी निभाई। यही नहीं देश की आजादी के बाद सकारात्मक सोच और दृढ़ संकल्प के साथ उन्होंने राजनीति के क्षेत्र में एक उदाहरण पेश किया। 

दूरदर्शिता के साथ उत्तराखंड के विकास की आधार भूमि तैयार करने में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई। वह पहाड़ों के सच्चे हितैषी के तौर पर जाने जाते हैं। पहाड़ की पगडंडियों से निकलकर उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में ख्याति प्राप्त की। स्वर्गीय बहुगुणा की कर्मभूमि भले ही इलाहाबाद रही हो, लेकिन उन्हें हमेशा अपनी जन्मभूमि की चिंता रही। वह हमेशा पहाड़ी राज्यों के पक्षधर रहे। यही कारण था कि उन्होंने अलग पर्वतीय विकास मंत्रलय बनाकर विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले पहाड़ी क्षेत्रों के विकास को एक नई दिशा दी।

सूर्यकांत धस्माना (वरिष्ठ कांग्रेसी) का कहना है कि स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा के शालीन व्यक्तित्व और दूर दृष्टि सभी को आकर्षित करती थी, लेकिन उनके कुशल राजनीतिज्ञ के गुण से मैं बेहद प्रभावित था। मैं उन्हें अपना राजनीतिक गुरु मानता हूं। उनके साथ रहकर बहुत कुछ सीखा। खासकर 80 के दशक में देश की राजनीति में आए व्यापक बदलाव में भी उन्होंने समझ-बूझ के साथ निर्णय लिए।

त्रिलोक सजवाण (वरिष्ठ कांग्रेसी) का कहना है कि हेमवती नंदन बहुगुणा का देश के विकास में योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। यही नहीं उन्होंने पहाड़ी राज्यों के लिए जो कदम उठाए वे मिसाल रहे। उत्तराखंड के लिए राजनीति और भौगोलिक विकास की रूपरेखा भी बहुगुणा ने भी तैयार की। गरीबी और किसानों की दशा सुधारने को भी वे सदैव तत्पर रहे। जबकि छात्र जीवन में राजनीति के नए आयाम उन्होंने पेश किए।

पलायन से खाली होने के कगार पर पहुंचा गांव

उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड को मुख्यमंत्री देने वाला बुघाणी गांव आज पलायन के चलते खाली होने के कगार पर है। करीब 80 परिवारों का यह गांव आज पांच से सात परिवारों के बीच सिमट कर रह गया है। बुघाणी गांव में हेमवती नंदन बहुगुणा के पैतृक घर को संग्रहालय बनाया गया है। लेकिन, यहां भी बहुत कम लोग ही पहुंचते हैं।

25 अप्रैल 1919 को जनपद पौड़ी के बुघाणी गांव में हेमवती नंदन बहुगुणा का जन्म हुआ था।

भारत सरकार में मंत्री रहने के साथ ही हेमवती नंदन बहुगुणा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे। उनके पुत्र विजय बहुगुणा सांसद रहने के साथ ही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी रहे हैं। जबकि वर्तमान में विजय बहुगुणा के पुत्र सौरभ बहुगुणा भी विधायक हैं। बावजूद इसके बहुगुणा का पैतृक गांव बुघाणी आज पलायन की मार से खाली होने की कगार पर है। गांव में अधिकांश बुजुर्ग ही रह रहे हैं।

हालांकि, गांव मोटर मार्ग से जुड़ा हुआ है। फिर भी रोजगार के लिए पलायन के कारण गांव लगभग पूरा खाली हो गया है। गांव में बहुगुणा के पैतृक घर को वर्ष 2012 में संग्रहालय बनाने का निर्णय लिया गया। जिस पर लोनिवि ने यहां स्व. बहुगुणा से जुड़ी वस्तुओं का संरक्षण, पुराने घर का जीर्णोद्धार कर संग्रहालय निर्माण और संपर्क मार्ग का निर्माण करवा।

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क्षेत्र के पूर्व शिक्षक कुंजिका प्रसाद उनियाल बताते हैं कि इस क्षेत्र को विकास की राह हेमवती नंदन बहुगुणा ने दिखाई थी। क्षेत्र में विद्यालयों का निर्माण, अस्पतालों का निमार्ण, सड़क निर्माण व विद्युतीकरण बहुगुणा की देन है। सरकार को इस गांव से पलायन रोकने के लिए स्थानीय लोगों के लिए योजनाएं बनानी होगीं। गांवों से पलायन रोकने के लिए भूमि सेना का भी गठन किया जाना चाहिए।

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