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दिल को छू गए सिनेमा के कुछ भीगे अल्फाज

फिल्‍म कुछ भीगे अल्फाज दुनिया में भावनाओं की बात करती है। वह प्यार में डूबी शायरी, छोटे-छोटे नोट्स और प्रेम संदेशों को प्रमोट करती है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sat, 28 Jul 2018 11:49 AM (IST)Updated: Sat, 28 Jul 2018 11:49 AM (IST)
दिल को छू गए सिनेमा के कुछ भीगे अल्फाज
दिल को छू गए सिनेमा के कुछ भीगे अल्फाज

देहरादून, [दिनेश कुकरेती]: तरक्की के इस दौर में हमारे पास क्या नहीं है। लेट नाइट तक साथ देने वाले दोस्त, चहकता बाजार, मदहोश कर देने वाले नाइट क्लब और इस सबसे बढ़कर अंगुलियों के इशारों पर थिरकती दुनिया। लेकिन, फिर भी हम दिल के कोने में छुपे अहसासों को बाहर नहीं ला पा रहे। 'कुछ भीगे अल्फाज' इन्हीं अहसासों की कहानी है। जिसे महसूस करने को दर्शक बारिश की फुहारों में भीगते हुए भी थियेटर तक खिंचे चले आते हैं। ताकि कुछ पल के लिए सही इस आभासी दुनिया से बाहर निकलकर हकीकत की दुनिया से रू-ब-रू हो सकें।

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फिल्म सोशल साइट्स की तेज रफ्तार 

दुनिया में भावनाओं की बात करती है। वह प्यार में डूबी शायरी, छोटे-छोटे नोट्स और प्रेम संदेशों को प्रमोट करती है। इसका माध्यम बनता है आरजे अल्फाज (जेन खान दुर्रानी), जो कोलकाता में हर रात एफएम रेडियो के कार्यक्रम 'कुछ भीगे अल्फाज' में अपने श्रोताओं को रोमांटिक शायरी और रोमांस में खो जाने का सलाह-मशविरा देता है। उसका यह कार्यक्रम बेहद लोकप्रिय है। 

महानगर की भीड़-भाड़ में बदहवास दौड़े चले जा रहे लोग अपनी कारों में इस कार्यक्रम को सुनना नहीं भूलते। मगर, यह सिर्फ अल्फाज के आसपास के लोग ही जानते हैं कि रोमांस की बातों से लोगों का दिल जीतने वाला अल्फाज खुद अकेला है। उसका एक दर्दनाक अतीत है और वह लोगों से ज्यादा सड़क पर घूमने वाले कुत्तों के साथ वक्त बिताता है। 

दूसरी तरफ अर्चना (गीतांजली थापा) है, जो हर रोज अल्फाज के कार्यक्रम का बेसब्री से इंतजार करती है। वह अल्फाज से बिल्कुल अलहदा है। उससे मिले बगैर उसकी फैन। वह एक विज्ञापन एजेंसी में काम करती है, लेकिन चेहरे के सफेद दाग (ल्यूकोडर्मिया) से ग्रस्त है। इसलिए अंदर तक कमतरी का भाव उसे कचोटता रहता है। अक्सर यह दर्द उसके चेहरे पर भी उभर जाता है।

बावजूद इसके टिंडर के माध्यम से वह ब्लाइंड डेट्स पर जाती है। विपरीत स्वभाव और हालात में पड़े अल्फाज व अर्चना बिना मिले भी प्रेम में डूबते चले जाते हैं। उनकी मुलाकात कहानी के एक नाजुक मोड़ पर होती है। और...फिर दोनों एक-दूसरे को उनके कठिन हालात से निकलने में मदद करते हैं। निर्देशक ओनिर ने फिल्म को बेहद नाजुक पलों से बुना है, इसलिए क्षणभर के लिए आपको लग सकता है कि इसकी रफ्तार धीमी है। लेकिन, वास्तविकता यही है कि कहानी का संतुलन रफ्तार में संभव ही नहीं था। निर्देशक के रूप में यहां उनका फलक बहुत विस्तार लिए हुए है। जेन खान दुर्रानी की यह पहली फिल्म है, बावजूद इसके उनका अभिनय बेहद परिपक्व एवं कसा हुआ है। दर्दभरा अतीत उनके चेहरे और चाल-ढाल में झलकता है। 

गीतांजलि ने अपनी भूमिका को संवेदना के साथ निभाया है। फिल्म बताती है कि कोई भी इंसान संपूर्ण नहीं है, उसमें कोई न कोई कमी अवश्य होती है। जरूरत तो इस बात की है कि कमियों के बावजूद हम लगातार कुछ खूबसूरत करने की कोशिश करते रहें। सिनेमा की यही सार्थकता भी है और खुशी की बात यह है कि दर्शक इन्हीं भावों के साथ थियेटर से रुखसत हुए।

बिना वर्दी के सिंघम जैसा जलवा

अवधि : 122 मिनट

निर्देशक : राजकुमार गुप्ता

हीरो हमेशा यूनिफॉर्म में नहीं आते! यही है फिल्म 'रेड' की टैगलाइन। हम बॉलीवुड फिल्मों में हम अमूमन एक्शन हीरोज को पुलिस या आर्मी की यूनिफॉर्म में दुश्मनों से भिड़ते देखते हैं। खुद अजय देवगन भी कई फिल्मों में यह कमाल दिखा चुके हैं। इनमें उनकी 'सिंघम' और 'गंगाजल' से लेकर 'जमीन' तक कई फिल्में शामिल हैं। लेकिन 'रेड' में अजय एक ऐसे हीरो के रोल में हैं, जो बिना वर्दी के ही अपना दम दिखाता है। इसे इनकम टैक्स रेड पर बनी दुनिया की पहली फिल्म बताया जा रहा है।

फिल्म 'रेड' 1981 में लखनऊ में पड़े एक हाई प्रोफाइल छापे की सच्ची घटना पर आधारित है, जिसमें एक निडर इंडियन रेवेन्यू सर्विस का अफसर अमय पटनायक (अजय देवगन) सांसद रामेश्वर सिंह उर्फ राजाजी सिंह (सौरभ शुक्ला) के यहां अपनी टीम के साथ छापा मारता है। राजाजी बचने के लिए पूरा जोर लगाता है, पर अमय भी पीछे नहीं हटता। इस रस्साकशी में किसकी जीत होती है, यह तो आपको थिएटर जाकर ही पता चलेगा।

इस पूरे घटनाक्रम में साहसी अफसर अमय की पत्नी नीता पटनायक (इलियाना डीक्रूज) भी पति को पूरा सपोर्ट करती है। फिल्म में अजय ने दिखा दिया कि रोल चाहे वर्दी वाला हो या बिना वर्दी का, वह उसे उतनी ही शिद्दत से करते हैं। वहीं, राजाजी के रोल के लिए तो मानो सौरभ शुक्ला ही बने थे। इलियाना डीक्रूज ने भी अपने छोटे से रोल के साथ पूरा न्याय किया। साथ ही राजाजी की दादी भी कमाल लगी हैं।

इससे पहले 'आमिर' और 'नो वन किल्ड जेसिका' जैसी धारदार फिल्में बना चुके 'रेड' के निर्देशक राजकुमार गुप्ता ने काफी अरसे पहले पड़े इस हाई प्रोफाइल छापे के असल गुनाहगार और अफसर के नाम भले ही बदल दिए हों, लेकिन उस समय के माहौल को क्रिएट करने में काफी हद तक सफल रहे। वहीं राजकुमार गुप्ता के साथ फिल्म की स्टोरी और डायलॉग लिखने वाले रितेश शाह ने अपना कमाल दिखाया है। मध्यांतर से पूर्व फिल्म आपको मजेदार लगती है, तो सेकेंड हाफ में यह काफी रोमांचक हो जाती है। राजकुमार गुप्ता ने एडिटिंग भी काफी कसी हुई की है।

अनगिनत भावों को जोड़ती छोटी-छोटी कड़ियां

अक्सर फिल्मों को मनोरंजन के रूप में ही देखा जाता है, लेकिन फिल्म के मायने इससे कई ज्यादा हैं। यह मायने समझने के लिए ‘जागरण फिल्म फेस्टिवल’ से बेहतर और कोई माध्यम नहीं हो सकता। के पहले दिन के दूसरे हॉफ में छह शॉर्ट फिल्मों की छोटी-छोटी कड़ियों में यह सब-कुछ अच्छे से समझ भी आया। ‘एवरीथिंग इज फाइन’ युवाओं की जटिल मनोस्थिति का अहसास कराती है और बताती है कि गुस्सा खुद के लिए ही घातक है। गुस्से में तेज रफ्तार से वाहन से बच्चे का एक्सीडेंट हुआ तो उसे यह समझ आ गया। ‘लुक्का-छिपी’ ने देश की ‘खुले में शौच’ की विकराल समस्या को सामने लाने का काम किया। 

‘माया’ 21वीं सदी की लड़की और पुराने ख्यालों की मां के बीच के रिश्ते को बयां करती है। यह संभवत: अधिकांश परिवारों की कहानी भी है। वहीं, केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री आवास योजना पर आधारित फिल्म ‘बिस्मार घर’ में बताया गया कि जब किसी गरीब को छत मिलती है तो उसे सुरक्षा का अनुभव भी होता है। लेकिन, अंत में आजाद ख्याल महिला के संघर्ष पर आधारित फिल्म ‘काउंटरफीट कुनकू’ दर्शकों पर खास छाप छोड़ गई। मायानगरी मुंबई में फ्लैट लेना हर महिला के लिए सपना सच होने जैसा होता है। इस बात को रीमा सेनगुप्ता से बेहतर कौन समझ सकता है। रीमा के पिता ने एक दिन उसे कह दिया कि जाओ अपना घर बनाओ। 

पहले से आत्मनिर्भर स्वभाव की रीमा ने पिता की बात को सकारात्मक सोच के साथ लिया और बेटी को लेकर मुंबई किराये का मकान खोजने निकल गई। रीमा के पति साथ नहीं थे तो लोगों ने भी रूम देने से इन्कार कर दिया। इस पर बेटी का गुस्सा और हताशा ने ‘काउंटरफीट कुनकू’ की पटकथा तैयार कर दी और आज इस लघु फिल्म की सफलता सबके सामने है। यह फिल्म आत्मनिर्भर महिलाओं के लिए प्रेरणा से कम नहीं है।

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