पहाड़ों की रानी मसूरी में बसता था पंडित नेहरू का दिल, पढ़िए खबर
देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल समेत पूरे नेहरू परिवार का पहाड़ों की रानी मसूरी से गहरा नाता रहा। खासकर पं.नेहरू को मसूरी की वादियां और प्राकृतिक सौंदर्य खूब भाता था।
मसूरी, जेएनएन। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल समेत पूरे नेहरू परिवार का पहाड़ों की रानी मसूरी से गहरा नाता रहा है। खासकर पं. जवाहर लाल नेहरू को मसूरी की वादियां और प्राकृतिक सौंदर्य खूब भाता था। अपने जीवनकाल में कई बार मसूरी आए पं. नेहरू मृत्यु से तीन दिन पहले भी यहीं थे। यहां से लौटते वक्त रास्ते में अचानक उनकी तबीयत खराब हो गई थी। जिसके बाद दिल्ली पहुंचकर उन्होंने अंतिम सांस ली।
इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री के पिता मोतीलाल नेहरू अस्थमा के मरीज थे। स्वास्थ्य लाभ के लिए वह अक्सर मसूरी आते थे। पहली बार वह वर्ष 1906 में मसूरी आए थे। पहली बार पिता के साथ मसूरी आए जवाहर लाल नेहरू को यहां की आबोहवा इस कदर पसंद आई कि वह अक्सर मसूरी आने लगे।
मसूरी के प्राकृतिक सौंदर्य का जिक्र उन्होंने यहां आने के बाद पिता मोतीलाल नेहरू के स्वास्थ्य में हो रहे सुधार का संदेश देने के लिए एक जून 1914 को माता स्वरूप रानी को लिखे पत्र में भी किया था। प्रसिद्ध साहित्यकार रस्किन बांड ने भी अपनी रचना 'टेल्स ऑफ मसूरी' में जिक्र किया है कि नेहरू परिवार समयांतर पर मसूरी आता रहता है।
जवाहर लाल नेहरू अंतिम बार 24 मई 1964 को मसूरी आए थे और हैप्पीवैली स्थित प्रशासनिक अकादमी (वर्तमान में लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी) परिसर में रुके थे। इस दौरान उन्होंने यहां आइएएस प्रशिक्षुओं को संबोधित भी किया था।
25 मई को सुबह लगभग साढ़े नौ बजे पं. नेहरू देहरादून के लिए रवाना हुए, जहां वह सर्किट हाउस में ठहरे। दून में 26 मई को तबीयत बिगडऩे पर उन्हें हेलीकॉप्टर से सहारनपुर के सरवासा हवाई अड्डे ले जाया गया और वहां से हवाई जहाज से दिल्ली भेजा गया। जहां 27 मई को उन्होंने अंतिम सांस ली।
जब पं. नेहरू को खाली करना पड़ा सेवाय होटल
इतिहासकार गोपाल भारद्वाज के अनुसार पं. जवाहर लाल नेहरू मई 1920 में पत्नी कमला और पुत्री इंदिरा के साथ मसूरी आए तो होटल सेवाय में ठहरे। उन दिनों अफगानिस्तान और ब्रिटिश के बीच राजनैतिक संधि पर बातचीत के लिए दोनों देशों के डेलीगेट्स भी मसूरी आए थे और सेवाय होटल में ही ठहरे हुए थे।
अंग्रेजों को जब पता चला कि पं. नेहरू भी उसी होटल में ठहरे हुए हैं तो वह इस बात को लेकर सशंकित हो गए कि कहीं जवाहर लाल बातचीत को प्रभावित न कर दें। उन्होंने पं. नेहरू से मुलाकात की और एक पत्र पर हस्ताक्षर करने को कहा, जिसमें लिखा था कि वह इस बातचीत में कोई दखलअंदाजी नहीं करेंगे। नेहरू ने ऐसा करने से मना कर दिया।
इस पर अंग्रेज अधिकारियों ने अपने उच्चाधिकारियोंसे आदेश लेकर पं. नेहरू से 24 घंटे के भीतर होटल खाली करवा लिया। इसके बाद पं. नेहरू इलाहाबाद वापस लौट गए। 1928 में जवाहर लाल पत्नी कमला नेहरू के साथ फिर मसूरी पहुंचे और सेवाय होटल में ही ठहरे। अक्टूबर 1930 में वह पिता व पत्नी के साथ मसूरी आए। तीन दिन यहां रुकने के बाद वापस इलाहाबाद लौटने पर एक आंदोलन में भाग लेने के चलते उन्हें नैनी जेल भेज दिया गया।
यहीं की थी दलाईलामा से तिब्बतियों के विस्थापन पर वार्ता
1946 से 1964 के बीच जवाहर लाल कई बार मसूरी आए। वर्ष 1959 में मसूरी आने पर पं. नेहरू ने हैप्पीवैली स्थित बिरला हाउस में तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा से मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने दलाईलामा से तिब्बतियों के विस्थापन पर विस्तार से वार्ता की।
ड्रेस कोड में आने के लिए कहने पर भड़क गए थे नेहरू
गोपाल भारद्वाज के अनुसार एक बार पं. जवाहर लाल नेहरू सेवाय होटल में डिनर के लिए सादे कपड़ों में चले गए। तब ब्रिटिश काल था और डिनर पर ड्रेस कोड के हिसाब से कपड़े पहनकर जाना होता था। होटल के महाप्रबंधक ने पं. नेहरू को ड्रेस कोड में आने के लिए कहा तो वह बिगड़ गए। इसपर होटल प्रबंधन ने नेहरू को होटल खाली करने का फरमान जारी कर दिया। पं. नेहरू रात में ही सेवाय छोड़कर लाइब्रेरी बाजार में अपने दोस्त पीएन तन्खा के होटल कश्मीर पहुंच गए।
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राजपुर क्षेत्र में बस गईं विजय लक्ष्मी
मसूरी आने पर मोतीलाल नेहरू की बेटी विजय लक्ष्मी पंडित मसूरी के लंढौर क्षेत्र में ठहरा करती थीं। अक्सर सिस्टर बाजार घूमने जाती थीं। दून और मसूरी की आबोहवा उन्हें इस कदर भाई कि बाद में वह देहरादून के राजपुर क्षेत्र में बस गईं। विजय लक्ष्मी पंडित अक्सर लाइब्रेरी क्षेत्र के कसमंडा हाउस आती-जाती थीं। कसमंडा रियासत की महारानी राजमाता विद्यावती देवी उनकी अच्छी मित्र थीं।