Move to Jagran APP

यहां हेल्थ सिस्टम का नया मर्ज बना एजेंटों का मकडज़ाल, जानिए

दून में सरकारी से लेकर निजी क्षेत्र तक स्वास्थ्य सेवाएं अवश्य बढ़ी हैं पर एजेंटों का सिंडिकेट भी तेजी से फैल रहा है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Sun, 06 Oct 2019 02:34 PM (IST)Updated: Sun, 06 Oct 2019 08:43 PM (IST)
यहां हेल्थ सिस्टम का नया मर्ज बना एजेंटों का मकडज़ाल, जानिए
यहां हेल्थ सिस्टम का नया मर्ज बना एजेंटों का मकडज़ाल, जानिए

देहरादून, सुकांत ममगाईं। बदलते वक्त के साथ दून में सरकारी से लेकर निजी क्षेत्र तक स्वास्थ्य सेवाएं अवश्य बढ़ी हैं, पर एजेंटों का सिंडिकेट भी तेजी से फैल रहा है। स्थिति यह कि न केवल शहर बल्कि पहाड़ के दूरस्थ क्षेत्रों से आने वाले मरीजों को भी यह लोग गुमराह कर रहे हैं। अपने मन मुताबिक मरीज को तय अस्पताल तक ले जाते हैं। जहां इलाज के नाम पर उनका आर्थिक शोषण होता है। यह पूरा खेल ठीक सरकार की नाक के नीचे चल रहा है। 

loksabha election banner

शहर में सरकारी अस्पतालों की बात करें तो प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा के बाद के स्तर की सेवाओं की कमी है। बीमारी जटिल होने पर रोगी को किसी प्राइवेट अस्पताल रेफर करना आम बात है। दूसरी तरफ बड़े या कॉरपोरेट अस्पतालों में उच्च स्तरीय स्वास्थ्य सेवाएं जरूर हैं, पर गरीब जनता में इतना सामथ्र्य नहीं कि इनका रुख कर सके। यानी गरीब मरीजों के लिए हालात 'इधर कुआं उधर खाई' जैसे हैं। उस पर राजधानी दून, जहां सरकार विराजमान है, एक नए तरह का मर्ज पैदा हो गया है। यह है स्वास्थ्य क्षेत्र में पनप रहा एजेंटों का सिंडिकेट। पिछले कुछ वक्त में न केवल हेल्थ सेक्टर में निजी क्षेत्र का दायरा बढ़ा बल्कि इनका मकडज़ाल भी फैलता जा रहा है। 

छोटे-छोटे क्लीनिक से लेकर सरकारी अस्पताल तक, ये लोग हर जगह दिखाई पड़ जाएंगे। इनमें बड़ी तादाद निजी एंबुलेंस संचालकों की है। यह लोग मरीज को तय अस्पताल में भर्ती होने के लिए प्रेरित करते हैं। उसके रेफर होने पर बहला फुसलाकर किसी एक अस्पताल में छोड़ देते हैं, जहां उसका जमकर शोषण होता है। हाल के कई वाकये हैं जहां शुरुआत में मरीज व उसके तीमारदार इस सबसे अंजान रहे, पर जब तक राज खुला वह लुट चुके थे। यही नहीं सही इलाज न मिलने पर मरीज की जान तक पर बन आई। जिस कारण कई बार हंगामा भी हुआ है। इसके अलावा मरीज को लेकर इन एजेंट के बीच शहर के प्रमुख सरकारी अस्पताल दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय में मारपीट भी हो चुकी है। 

इमरजेंसी सेवाओं का बुरा हाल 

सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर बेशक प्रति वर्ष करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहें हो, मगर हकीकत में तमाम छोटे से बड़े स्तर के सरकारी अस्पताल सिर्फ आने वाले मरीजों का प्राथमिक उपचार ही कर पाने में सक्षम हैं। किसी भी बीमारी के भयावह होने की स्थिति में उसे रेफर कर दिया जाता है।

इमरजेंसी मामलों में भी मरीज निजी अस्पताल पर निर्भर रहते हैं। रात के समय सरकारी अस्पताल में इमरजेंसी में जाना, समझो व्यर्थ भटकना ही है। इस समय न तो चिकित्सक ढंग से देखता है और न ही स्टाफ सीधे मुंह बात करता है। आइसीयू के नाम पर केवल दून मेडिकल कॉलेज में पांच बेड हैं। महिला अस्पताल में तीन में दो वेंटिलेटर खराब पड़े हैं। सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इमरजेंसी सेवाओं की क्या स्थिति है। व्यक्ति को हारकर निजी अस्पताल का रुख करना पड़ता है, जहां उसका जमकर आर्थिक शोषण किया जाता है। 

बढ़ानी होंगी प्राथमिक स्तर की सुविधाएं 

विषम भौगोलिक परिस्थिति वाले उत्तराखंड की बात करें तो स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर एक बड़ा मिथक है कि सिर्फ ग्रामीण इलाकों में ही डॉक्टरों और अस्पतालों का अभाव है। शहरों में स्वास्थ्य सुविधाएं पर्याप्त हैं। पर दुर्भाग्य से यह बात सच नहीं है। शहरों में अधिकतर बड़े अस्पताल हैं, जहां गंभीर अवस्था में ही रोगी पहुंचते हैं। जानकार मानते हैं कि प्राथमिक स्तर की सुविधाएं जनस्वास्थ्य में सुधार में सबसे अहम भूमिका निभाती हैं, जो शहरों में भी जरूरत से बहुत कम हैं।

देहरादून भी इससे अछूता नहीं है। जिन नर्सिंग होम को देखकर हमें लगता है कि बड़े शहरों में इलाज की सुविधा में कोई कमी नहीं है, वह प्राइवेट हैं और वहां उपलब्ध स्वास्थ्य सुविधाएं अत्यंत महंगी होने के कारण गरीबों की पहुंच से बाहर हैं। मरीज के लिए स्थिति मरता क्या न करता जैसी है। 

मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. एसके गुप्ता ने बताया, इस तरह के कुछ मामले मेरे भी संज्ञान में आए हैं। जिसकी पड़ताल की जा रही है। कुछ ठोस पता लगते ही निश्चित ही कार्रवाई की जाएगी।

केस-1 

इसी साल मार्च में दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल की इमरजेंसी में एक दलाल पकड़ा गया। उक्त व्यक्ति गांधीग्राम का रहने वाला था और एक निजी अस्पताल में काम करता था। इमरजेंसी में होने की वजह पूछने पर वह बहानेबाजी करने लगा। बाद में इसने बताया कि यह लोग मरीज को बहला फुसलाकर तय अस्पताल में छोड़ देते हैं। जहां से प्रत्येक मरीज का दो से पांच हजार रुपये कमीशन मिलता है। अस्पताल प्रशासन ने इसे पुलिस के सुपुर्द कर दिया था। 

केस-2 

गत वर्ष जून में मरीज ले जाने को लेकर जमकर मारपीट हुई थी। अस्पताल के बाहर मरीज को लेकर हुए विवाद में एक प्राइवेट एंबुलेंस चालक पर चाकुओं से हमला कर उसे गंभीर रूप से जख्मी कर दिया गया। निजी अस्पतालों के कुछ एजेंट उसे लहुलूहान कर भाग खड़े हुए। इससे पूर्व भी इनके बीच कई बार मरीज को लेकर मारपीट हुई है। 

यह भी पढ़ें: इस अस्पताल में अब बिना चीरे गांठ निकालने वाली मशीन भी उपलब्ध, जानिए

केस-3 

बीते माह डेंगू पीड़ित एक मरीज से जुड़ा मामला सामने आया। जहां मरीज को ऋषिकेश एम्स के लिए रेफर किया गया था। पर बीच रास्ते में एंबुलेंस संचालक रिस्पना पुल के पास स्थित एक निजी अस्पताल के कसीदे पडऩे लगा। मरीज के परिजनों को यह विश्वास दिलाया कि वहां बढिय़ा इलाज मिलेगा। मरीज को आइसीयू में भर्ती किया गया। शुरुआत में तीन हजार रुपये प्रतिदिन का खर्च बताया गया। पर छह दिन में ही बिल छह लाख से ऊपर पहुंच गया। जिस पर मरीज के परिजनों ने हंगामा भी किया था। बाद में पुलिस के हस्तक्षेप पर मामला सुलझा। 

यह भी पढ़ें: अब आप घर बैठे एम्स के डॉक्टरों से ले सकेंगे परामर्श, जानिए कैसे


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.