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हंसी ने अभी तक नहीं दिया उत्तराखंड सरकार के नौकरी के प्रस्ताव का जवाब, जानिए इनके बारे में

कुमाऊं विश्वविद्यालय से डबल एमए कर चुकीं हंसी प्रहरी ने राज्य सरकार के नौकरी और आवास प्रस्ताव पर अभी तक कोई जवाब नहीं दिया है। फिलहाल वह अभी सड़क और बस स्टेशन के यात्री प्रतीक्षालय में ही अपना जीवन गुजार रही हैं।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Wed, 21 Oct 2020 02:53 PM (IST)Updated: Wed, 21 Oct 2020 10:25 PM (IST)
हंसी ने अभी तक नहीं दिया उत्तराखंड सरकार के नौकरी के प्रस्ताव का जवाब, जानिए इनके बारे में
हंसी ने अभी तक नहीं दिया उत्तराखंड सरकार के नौकरी के प्रस्ताव का जवाब।

हरिद्वार, जेएनएन। कुमाऊं विश्वविद्यालय से डबल एमए कर चुकीं हंसी प्रहरी ने राज्य सरकार के नौकरी और आवास प्रस्ताव पर अभी तक कोई जवाब नहीं दिया है। फिलहाल वह अभी सड़क और बस स्टेशन के यात्री प्रतीक्षालय में ही अपना जीवन गुजार रही हैं। आपको बता दें कि भीख मांग गुजारा कर रहीं हंसी की तरफ मीडिया का ध्यान उस वक्त गया, जब वो सड़क किनारे अपने बेटे को पढ़ा रही थीं। उनकी फर्राटेदार अंग्रेजी सुन हर कोई हैरान था।  

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आपको बता दें कि स्थानीय प्रशासन की ओर से एसडीएम सदर गोपाल चौहान ने तीन दिन के भीतर अंशी प्रहरी को आवास उपलब्ध कराने का दावा किया था, लेकिन इस मामले को सामने आए चार दिन बीतने को हैं। पर प्रशासन उन्हें और उनके बेटे को एक अदद छत मुहैया नहीं करा सका। एसडीएम सदर गोपाल चौहान का कहना है कि हंसी प्रहरी ने अभी तक अपना कोई जवाब नहीं दिया है और प्रशासन की ओर से उन्हें कोई आवास उपलब्ध नहीं कराया जा सका है। 

जानिए कौन हैं हंसी प्रहरी 

आपको बता दें कि हंसी वो महिला है, जो अपने छात्र जीवन में न केवल कुशल वक्ता रही, बल्कि छात्र राजनीति में सक्रिय रहते हुए कुमाऊं विश्वविद्यालय के अल्मोड़ा परिसर में छात्रसंघ उपाध्यक्ष भी चुनी गई। पर इसे नियति का खेल ही कहेंगे कि अंग्रेजी और राजनीति शास्त्र में एमए डिग्रीधारी ये महिला आज हरिद्वार की सड़कों पर भीख मांग अपना और बच्चे का गुजारा करने को मजबूर हैं। पर हौसले अब भी मजबूत हैं। वो अपने बच्चे को पढ़ा भी रही हैं और अफसर बनाने के सपने बुन रही हैं। 

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हंसी अल्मोड़ा जिले के हवालबाग ब्लॉक स्थित ग्राम रणखिला गांव की रहने वाली हैं। वो पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं और उनकी इंटर तक की शिक्षा गांव में ही हुई। इसके बाद उन्होंने कुमाऊं विश्वविद्यालय के अल्मोड़ा परिसर में प्रवेश ले लिया। पढ़ाई के साथ-साथ वह विवि की तमाम शैक्षणिक गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती थी। बकौल हंसी, 'वर्ष 2000 में मैं छात्रसंघ में उपाध्यक्ष चुनी गई और फिर विवि की ही सेंट्रल लाइब्रेरी में चार साल तक नौकरी की, लेकिन नियति का खेल ही कहेंगे कि ये होनहार महिला आज हरिद्वार में सड़क पर भीख मांग गुजारा करने को मजबूर है। 

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