जर्जर पुलों से जान हथेली पर लेकर गुजरते हैं लोग
भगत सिंह तोमर साहिया अमलावा नदी पर बने आधा दर्जन पुलों की हालत वर्षो से बेहद खस्ताहाल है
भगत सिंह तोमर, साहिया:
अमलावा नदी पर बने आधा दर्जन पुलों की हालत वर्षो से बेहद खस्ताहाल है, जिनसे लोग खतरा उठाकर गुजर रहे हैं, लेकिन क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों को मानों किसानों व ग्रामीणों की समस्या से जैसे कुछ लेना देना ही नहीं है। वर्ष 2010 की आपदा में एक पुल क्षतिग्रस्त हो गया था। वर्तमान में इसी पुल से लोग गुजर रहे हैं। किसान नदी पार कर खेतों तक जाते हैं, लेकिन बरसात में नदी का प्रवाह बढ़ने पर उन्हें अतिरिक्त दूरी नापनी पड़ती है।
साहिया क्षेत्र के दो दर्जन से अधिक गांवों की छानियां व खेत अमलावा नदी पार हैं। जिन तक पहुंचने के लिए आधा दर्जन पुल बने हैं, लेकिन गाड़ा छानी जाने के लिए बना लकड़ी का पुल पूरी तरह से जर्जर हो चुका है। करीब 1960 में बने गाड़ा छानी के पुल की दशा वर्तमान में ऐसी है कि जिस पर से गुजरना मौत को दावत देने जैसा है। इस पुल से सैंज, कोठा, तारली, बनतोऊ, बिरमौ, बिनोऊ, निथिला, बिसोई आदि गांवों के किसानों को अपने खेतों व छानियों तक जाने में सहुलियत होती थी। कोठा तारली क्षेत्र के कई गांवों के लिए बना तारली छानी पुल वर्ष 2010 में आपदा से क्षतिग्रस्त हो गया था, पुल टूटने के चलते वर्तमान में ग्रामीणों को खतरा उठाकर टूटे पुल से ही गुजरना पड़ता है, लेकिन बरसात में जब नदी उफान पर होती है तो इस पुल से गुजरना काफी खतरेभरा हो जाता है। समाल्टा के मौका खड्ड से क्यारका छानी के लिए बना पुल भी वर्ष 2010 की आपदा में क्षतिग्रस्त हो गया था। पुल की एक साइड बह जाने के चलते ग्रामीणों ने पुल के एक साइड में सीढी लगायी हुई, जिस पर खतरा उठाकर पुल तक जाया जाता है। ग्रामीण नारायण सिंह, वीरेंद्र सिंह, महावीर, खजान सिंह, सरदार सिंह, अनिता देवी, परमानंद शर्मा, नागचंद तोमर, परम सिंह, पूरण सिंह, गुलाब सिंह, रतन सिंह आदि का कहना है कि अमलावा नदी पर बने आधा दर्जन पुलों की हालत जर्जर होने के बाद भी तहसील प्रशासन ध्यान नहीं दे रहा है, अनेक बार विधायक से लेकर सरकार तक समस्या बताई गई, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही। जिससे बरसात में नदी के उफान पर आने से ग्रामीणों की पूरे बरसात के मौसम में फजीहत होती है।