एक की बात मानी तो दूसरा हो जाएगा नाराज, दूसरे की मानी तो बिगड़ जाएगा वोटबैंक
सरकार को खौफ है कि एक की बात मानी तो दूसरा नाराज हो जाएगा और दूसरे की मानी तो चुनाव में वोटबैंक बिगड़ जाएगा। इसलिए चुप रहने में ही भलाई समझ रहे।
देहरादून, अंकुर अग्रवाल। आजकल सरकार की छीछालेदर मची हुई है। प्रदेश सरकार का चारों ओर से विरोध किया जा रहा है। एक तरफ पदोन्नति में आरक्षण के विरुद्ध जनरल एवं ओबीसी कर्मचारी हड़ताल पर चल रहे वहीं दूसरी तरफ एससी-एसटी कर्मचारी आरक्षण के समर्थन में हड़ताल की तैयारी में हैं। इस वजह से कर्मचारियों के बीच तनातनी गुजरे कईं दिनों से जारी है, लेकिन प्रदेश सरकार चुप्पी साधे हुए। चारों तरफ हाय-हाय मची है व सुबह से शाम तक सरकार व मुख्यमंत्री को कोसा जा रहा है। कोरोना का कहर सिर पर है लेकिन साहब की यह चुप्पी टूट नहीं रही। आखिर साहब भी क्या करें, कमरे के अंदर बैठकर विरोध झेलना उनकी आदत में जो शुमार हो गया है। मजबूर हैं, उन्हें खौफ है कि एक की बात मानी तो दूसरा नाराज हो जाएगा और दूसरे की मानी तो चुनाव में वोटबैंक बिगड़ जाएगा। इसलिए चुप रहने में ही भलाई समझ रहे।
संकरी गलियां, कैसे बुझेगी आग
शहर की गलियां दिनोंदिन संकरी होती जा रही हैं। बिना नक्शे के धड़ल्ले से दुकान या घर बनाए जा रहे। ऐसे में यदि किसी मकान में आग लग जाए तो अग्निशमन वाहन इन गलियों से होकर कैसे पहुंच पाएंगे, ये कोई नहीं सोच रहा। अभी कुछ दिन पूर्व ही एक कपड़े की दुकान में डिस्पेंसरी रोड पर आग लग गई। भीषण आग में दमकल वाहन को पहुंचने में काफी मशक्कत करनी पड़ी, मगर लोग तब भी नहीं सुधर रहे। मकान निर्माण के दौरान निर्धारित चौड़ाई तक न तो सड़क छोड़ी जा रही बल्कि लोग सड़क की जमीन भी कब्जा करने की फिराक में रहते हैं। इस वजह से आने वाले दिनों में खामियाजा भी उन्हें ही भुगतना पड़ेगा, यह उनकी समझ में नहीं आ रहा। शहर में पलटन बाजार समेत धामावाला, मोती बाजार, मन्नूगंज, कालिका माता मंदिर मार्ग आदि की तो कमोबेश यही स्थिति है।
घर देर से आ रहे पति
मार्च में ठंड का मौसम और पति का देर रात में घर लौटना। कुछ निजी आफिसों के अधिकारियों व कर्मचारियों की पत्नियां अब पतियों पर शक करने लगी हैं। पति वित्तीय वर्ष खत्म होने के कारण काम के अतिरिक्त बोझ की बात कह रहे तो शंका करने वाली पत्नियां उन्हें फोन कर लोकेशन पूछती रहतीं हैं। अब शनिवार को तो हद हो गई। महीने का दूसरा शनिवार होने के चलते यूं तो बैंक व अन्य दफ्तरों में छुट्टी थी, लेकिन कुछ फाइनेंस कंपनियों के आफिस खुले हुए थे। काम निबटाया जा रहा था। पत्नियों को शक हुआ कि कहीं पतिदेव वीकेंड पर मौज तो नहीं काट रहे। फिर घनघनाने लगे पतियों के फोन। ऑफिस में ही हो या कहीं और घूम रहे। पति सफाई देते रहे और आफिस की फोटो व्हाट्सएप पर भेज पत्नी को संतुष्ट कर पाए। मार्च में पुरुषों को काम के बोझ और पत्नियों से जूझना पड़ रहा है।
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न ही मिले ऐसी छुट्टी
यूं तो स्कूली बच्चों को छुट्टी का बेसब्री से इंतजार रहता है, लेकिन इस बार पहली मर्तबा ऐसा हुआ कि उन्हें यह छुट्टी बेहद अखर रही है। दरअसल, कोरोना को देखते हुए सरकार ने 31 मार्च तक स्कूल व कॉलेजों को एहतियातन बंद करा दिया है। बच्चों को 15 दिन की छुट्टी मिल तो गई, लेकिन इसका आनंद नहीं उठा पा रहे। चूंकि, कोरोना का खौफ पूरे देश में है, इस वजह कारण वह न तो बाहर घूमने नहीं जा सकते, न ही अपने दोस्तों के साथ लोकल पिकनिक मना पा रहे। बच्चे घर में ही बैठे-बैठे परेशान हो रहे हैं। कोरोना के डर के कारण घूमने बाहर नहीं जा सकते लेकिन पिक्चर हाल में मूवी ही देखकर आंनद उठा सकते थे। लेकिन अब तो सरकार ने पिक्चर हाल भी बंद कर दिए हैं। ऐसे में जाए तो जाए कहां। बस घर पर टीवी या मोबाइल का ही सहारा है।
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