भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की दिशा में सरकार के बड़े कदम
भ्रष्टाचार के मामलों में सरकार ने सकारात्मक पहल की है। आइएएस व पीसीएस अधिकारियों पर कार्रवाई करने के साथ ही भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम उठाए गए।
देहरादून, राज्य ब्यूरो। भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस के जिस मुद्दे पर भाजपा ने प्रदेश में प्रचंड बहुमत हासिल किया, उस पर सरकार ठोस कदम उठाती नजर भी आ रही है। बीते एक वर्ष में भ्रष्टाचार के मामलों में सरकार ने सकारात्मक पहल की है। आइएएस व पीसीएस अधिकारियों पर कार्रवाई करने के साथ ही ऊर्जा, शिक्षा खाद्यान्न विभाग में भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम उठाए गए। सरकार के इन कदमों से काफी उम्मीदें भी बंधती नजर आ रही हैं। मुख्यमंत्री के जीरो टॉलरेंस पर सख्त रुख का असर अब उनके मंत्रियों के विभागों में भी दिखा है। शिक्षा व पंचायतीराज विभाग, वन विभाग समेत कई अन्य विभागों में भी अब भ्रष्टाचार के कई मामलों में सख्त कार्यवाही की जा रही है।
भाजपा ने वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों में भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस को अपना एक प्रमुख हथियार बनाया था। मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की प्रतिबद्धता को दोहराया। सरकार ने भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस का पहला कदम हरिद्वार-बरेली राष्ट्रीय राजमार्ग-74 के चौड़ीकरण में मुआवजा घोटाले को लेकर उठाया। सत्ता में आते ही सरकार ने मामले में संलिप्त आठ पीसीएस अधिकारियों को निलंबित कर दिया। इसके बाद इस मामले में दो आइएएस अधिकारियों को भी निलंबित किया गया। इनमें से एक को बहाल कर दिया गया है और दूसरा अभी निलंबित ही चल रहा है। इसके अलावा दो पीसीएस बहाल हुए हैं शेष आठ निलंबित चल रहे हैं। मामले में 20 आरोपियों की गिरफ्तारी हो चुकी है। इस कार्रवाई को सरकार के जीरो टॉलरेंस की दिशा में उठाया गया सबसे बड़ा कदम माना गया।
आयुर्वेद विश्वविद्यालय में फर्नीचर खरीद घोटाला
आयुर्वेद विश्वविद्यालय में मई 2016 में हुए फर्नीचर और चिकित्सकीय उपकरण खरीद घोटाले में भी सरकार ने सख्त कदम उठाया है। इस मामले में आयुर्वेद विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलसचिव मृत्युंजय मिश्रा को निलंबित कर दिया गया है। उनकी गिरफ्तारी भी हो चुकी है। दरअसल, उन पर कंप्यूटर खरीद, फर्नीचर खरीद, पेमेंट देकर वापस अपने खाते में पैसे मंगवाने जैसे आरोप लगे थे। इन्हीं मामलों में विभिन्न धाराओं में उन पर मुकदमा दर्ज कर बाद में गिरफ्तारी की गई। इस मामले में उनके साथ तीन अन्य लोगों पर भी मुकदमा दर्ज है। मृत्युंजय मिश्रा पर हाल ही में एक सार्वजनिक हुए स्टिंग प्रकरण में स्टिंग करने वालों का साथ देने का भी आरोप लगा है।
डेढ़ सौ करोड़ से अधिक का छात्रवृत्ति घोटाला
डेढ़ सौ करोड़ से अधिक के छात्रवृत्ति घोटाले में मुकदमा दर्ज करने की कवायद शुरू हो चुकी है। दरअसल, प्रारंभिक जांच में यह बात सामने आई थी कि हरिद्वार, सहारनपुर और देहरादून के कई कॉलेजों ने फर्जी तरीके से छात्रवृत्ति हड़प ली थी। शैक्षिक सत्र 2012-13 से लेकर 2014-15 के बीच हरिद्वार, देहरादून और सहारनपुर के कई निजी कॉलेजों ने छात्रों का तकनीकी कोर्स में प्रवेश दिखाया और इन्हें मिलने वाली छात्रवृत्ति हड़प ली। इसमें विभागीय अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध पाई गई है। वर्ष 2017 में की गई प्रारंभिक जांच में यह घोटाला डेढ़ सौ करोड़ से अधिक का बताया गया है। इसके बाद इसी वर्ष अप्रैल में मुख्यमंत्री ने इसकी जांच को एसआइटी गठित की थी, जिसने जांच के बाद अब मुकदमा दर्ज करने की कवायद शुरू कर दी है।
शिक्षक भर्ती घोटाला
प्रदेश के प्राथमिक व माध्यमिक विद्यालयों में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर शिक्षकों की भर्ती को लेकर मिली शिकायतों और प्राथमिक जांच में पुष्टि होने के बाद यह मामला एसआइटी को सौंपा गया। एसआइटी अब तक इस मामले में विभिन्न जिलों के 64 शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई कर चुकी है। इनमें 27 पर बर्खास्तगी की कार्रवाई, 32 के खिलाफ मुकदमें और 12 मामले कोर्ट में चल रहे हैं। अभी तक एसआइटी दस हजार से अधिक प्रमाण पत्र की जांच कर चुकी है और तकरीबन पांच हजार प्रमाण पत्रों की जांच होनी शेष है। माना जा रहा है कि अभी फर्जी प्रमाणपत्रों के आधार पर भर्ती हुए कुछ और शिक्षक इसकी जद में आ सकते हैं।
खाद्यान्न घोटाला
ऊधमसिंह नगर जिले में 600 करोड़ का खाद्यान्न घोटाला सामने आया है। विभागीय अधिकारियों व कर्मचारियों के साथ ही राजनीतिक संलिप्तता की बात इस मामले में सामने आई है। इसमें विभागीय अधिकारियों को निलंबित किया जा चुका है। दरअसल, गरीबों के लिए खरीदे जाने वाले चावल और गेहूं के कई बोरे गायब पाए गए थे। इसके अलावा चावल आवंटन में भी गड़बड़ी हुई। इस मामले में अभी स्पेशल ऑडिट चल रहा है। माना जा रहा है कि इसके पूरा होने के बाद कई अधिकारी व कर्मचारियों पर सख्त कार्रवाई हो सकती है।
सिडकुल में अनियमितता
उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम में भी बड़ा घोटाला पकड़ा गया है। यह बात सामने आई है कि संस्था ने प्रोक्योरमेंट नियमों का उल्लंघन करते हुए करीब 650 करोड़ से अधिक की वित्तीय अनियमितता की, इसके साथ ही सेंटेज के रूप में 100 करोड़ से ज्यादा धनराशि वसूल की। यहां तक कि शेष बची करीब 50 करोड़ की राशि को सरकार को वापस करने के बजाए खुद ही दबा लिए गए। स्पेशल ऑडिट से मामला खुलने के बाद सरकार ने फिलहाल संस्था को काम देने पर रोक लगाई हुई है और सरकारी स्तर से मामले की जांच चल रही है।
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