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    गंगा के उद्गम में पिछले पांच वर्षों में तेजी से हुआ बदलाव, रोजाना करीब पांच सेमी पिघल रहा Gangotri Glacier

    By Shailendra prasadEdited By: Nirmala Bohra
    Updated: Tue, 25 Oct 2022 01:34 PM (IST)

    Gangotri Glacier Melting गंगोत्री ग्लेशियर के मुहाने गोमुख में अधिकतम प्रति दिन करीब पांच सेमी ग्लेशियर पिघल रहा है। गंगोत्री ग्लेशियर के मुहाने पर पिछले पांच वर्षों में तेजी से बदलाव आ रहा है। ग्लेशियर पिघलना एक सतत प्रक्रिया है। लेकिन पिघलने की रफ्तार बढ़ने के कुछ कारक हैं।

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    Gangotri Glacier Melting : गंगोत्री ग्लेशियर का मुहाना (गोमुख)।

    शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी : Gangotri Glacier Melting : उत्तराखंड के सबसे बड़े गंगोत्री ग्लेशियर के मुहाने पर पिछले पांच वर्षों में तेजी से बदलाव आ रहा है। इस बदलाव के भले ही प्राकृतिक कारण सहित कई कारक भी हैं।

    परंतु बदलाव से हर बार नंदनवन, तपोवन, कालिंदीपास जाने वाले ट्रैक रूट में भी बदला रहा है और माकूल बर्फबारी न होने से ग्लेशियर को खुराक भी नहीं मिल पा रही है। इसको लेकर ग्लेशियर विज्ञानियों के अलग-अलग मत हैं परंतु गंगोत्री ग्लेशियर के पिघलने को लेकर विस्तृत अध्ययन की भी वकालत करते हैं।

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    2017 में गोमुख के पास हुआ था भारी भूस्खलन

    वर्ष 2017 में मेरू पर्वत के पास नील ताल के टूटने से गंगोत्री ग्लेशियर के मुहाने (गोमुख) के पास भारी भूस्खलन हुआ था। ताल के टूटने से ग्लेशियर का मलबा (मोरेन) गोमुख में करीब डेढ़ किलोमीटर क्षेत्र में फैल गया था। उस दौरान कुछ समय के लिए गोमुख की धरा भी प्रभावित हुई तथा एक छोटी झील बन गई थी। इसी झील और मलबे को लेकर विशेषज्ञ काफी चिंतित हुए थे।

    भले ही यह झील वर्तमान में अस्तित्व में नहीं है। लेकिन, गंगोत्री ग्लेशियर के मुहाने पर बदलाव के क्रम में तेजी आयी है। भले ही बदलाव का अभी तक ग्लेशियर विज्ञानियों की ओर से विस्तृत अध्ययन तो नहीं किया गया। वाडिया भू विज्ञान संस्थान के पूर्व वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. डीपी डोभाल कहते हैं कि गंगोत्री ग्लेशियर आज ही नहीं बल्कि वर्षों से पिघल रहा है। केवल ग्लेशियर को अच्छी बर्फ के रूप जो खुराक मिलनी चाहिए थी वह नहीं मिल रही।

    रोजाना करीब पांच सेमी पिघल रहा गंगोत्री ग्लेशियर

    गंगोत्री ग्लेशियर के मुहाने गोमुख में अधिकतम प्रति दिन करीब पांच सेमी ग्लेशियर पिघल रहा है। जब ग्लेशियर की निचली सतह खोखली होती है तो ग्लेशियर के बड़े-बड़े हिस्से बोल्डर की तरह टूट जाते हैं। इनके पिघलने की रफ्तार काफी कम होती है, परंतु कभी-कभी ग्लेशियर के टुकड़े बहकर गंगोत्री धाम तक पहुंच जाते हैं। इसी कारण बदलाव भी नजर आता है।

    यह भी पढ़ें : अब विदेशों में भी भारतीय गंगोत्री के गंगाजल से कर सकेंगे आचमन, उत्‍तराखंड प्रादेशिक कोआपरेटिव यूनियन की पहल

    ग्लेशियर पिघलना एक सतत प्रक्रिया

    डॉ. डोभाल कहते हैं कि यह कहना गलत है कि गंगोत्री ग्लेशियर तेजी से पिघल रहा है। सही बात यह है कि जिस तरह से इसका विस्तृत अध्ययन होना चाहिए था। जो अभी तक नहीं हुआ है। वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान देहरादून के पूर्व वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. पीएस नेगी कहते हैं कि ग्लेशियर पिघलना एक सतत प्रक्रिया है। लेकिन, पिघलने की रफ्तार बढ़ने के कुछ कारक भी हैं।

    वर्ष 2017 में नील ताल के टूटने से गंगोत्री ग्लेशियर के मुहाने (गोमुख) के पास भारी मलबा एकत्र हुआ। जो अभी वहीं पड़ा हुआ है। इससे मलबे के ढेर के कारण गोमुख के भौतिक स्वरूप में बदलाव आया है। ग्लेशियर पिघलने के ऐसे अन्य कारण भी हैं।

    गंगोत्री ग्लेशियर में 2017 से पहले छोटे बदलाव दिखते थे

    पिछले 20 वर्षों से गोमुख गंगोत्री ग्लेशियर की ट्रैकिंग करा रहे एवरेस्ट विजेता विष्णु सेमवाल कहते हैं कि गंगोत्री ग्लेशियर में वर्ष 2017 से पहले छोटे बदलाव दिखते थे। परंतु अब बदलाव साल-दर साल आ रहे हैं। गंगोत्री ग्लेशियर की मोटाई भी पहले की तुलना में कम नजर आती है।

    ट्रैकिंग के दौरान उन्होंने यह भी देखा कि पहले बर्फबारी काफी अच्छी होती थी। परंतु अब हो रही है तो सही समय पर नहीं हो रही है और तुरंत पिघल जा रही है। गंगोत्री ग्लेशियर में पहले मोरेन (ग्लेशियर क्षेत्र का मलबा) काफी मात्रा में रहता था। परंतु अब कुछ वर्षों से गंगोत्री ग्लेशियर में भारी क्रेवास बन रहे हैं। जिससे मोरेन का मलबा और पत्थर क्रेवास के अंदर जा रहा है।