केदारनाथ में फर के पेड़ों की सेहत नासाज, कारण जानने को जुटे वैज्ञानिक
उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र के सौंदर्य में चार चांद लगाने वाले देवदार की सहचरी प्रजाति फर के पेड़ों की सेहत ठीक नहीं है। वन विभाग अब इसके कारणों की पड़ताल में जुट गया है।
देहरादून, [केदार दत्त]: उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र के सौंदर्य में चार चांद लगाने वाले देवदार की सहचरी प्रजाति फर के पेड़ों की सेहत ठीक नहीं है। केदारनाथ वन प्रभाग का सूरतेहाल इसी ओर इशारा कर रहा है। वहां सदाबहार शंकुधारी फर का प्राकृतिक पुनरोत्पादन प्रभावित हुआ है। वन विभाग की अनुसंधान विंग अब इसके कारणों की पड़ताल कर इसे दुरुस्त करने के उपाय बताएगी।
केदारनाथ वन प्रभाग में 2300 मीटर से अधिक ऊंचाई पर पाए जाते हैं फर के पेड़। लंबे समय से इनके प्राकृतिक पुनरोत्पादन पर असर देखने को मिल रहा है। इसे देखते हुए प्रभाग की 10 वर्षीय कार्ययोजना में कहा गया कि फर की सेहत ठीक नहीं है।
देवदार की इस सहचरी प्रजाति के प्राकृतिक पुनरोत्पादन में कमी देखी जा रही है। सिफारिश की गई कि शंकुधारी वृक्ष प्रजाति की इस समस्या के निदान के मद्देनजर शोध जरूरी है। इसे देखते हुए विभाग की अनुसंधान शाखा ने हाल में हुई अनुसंधान सलाहकार समिति की बैठक में इस संबंध में प्रस्ताव रखा, जिसे अनुमोदन दे दिया गया।
वन संरक्षक अनुसंधान वृत्त संजीव चतुर्वेदी के अनुसार केदारनाथ प्रभाग में फर के प्राकृतिक पुनरोत्पादन में आई कमी के कारणों की पड़ताल के मद्देनजर प्रोजेक्ट तैयार किया जा रहा है। अध्ययन व शोध के लिए वहां क्षेत्र चिह्नित किए जाएंगे। जल्द ही कवायद प्रारंभ कर दी जाएगी। रिपोर्ट आने के बाद केदारनाथ में फर के लिए उपचारात्मक कदम उठाए जाएंगे।
यह हो सकते हैं कारण
-केदारनाथ में फर के पेड़ों पर एक बार में अत्यधिक फूल लगने का अंतराल 16-17 साल होना।
-जब बीज गिरते हैं, तब पत्तियां जमीन में गिरी रहती हैं और बीज का जमीन से संपर्क नहीं हो पाता।
-ये भी हो सकता है कि जिन क्षेत्रों में फर के पेड़ हैं, वहां बड़े पैमाने पर खर-पतवार उग आए हों।
-कहीं ऐसा तो नहीं कि जलवायु परिवर्तन का असर फर के पेड़ों पर भी पड़ा हो।
उपयोगी है फर
-पर्वतीय क्षेत्रों में घरों की छत में प्रयुक्त होती है इसकी लकड़ी।
-फलों की पैकिंग के लिए पेटियां बनाने में भी होता है इस्तेमाल।
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