स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिपूर्णानंद पैन्यूली पंचतत्व में हुए विलीन
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और पूर्व सांसद परिपूर्णानन्द पैन्यूली को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई।
देहरादून, जेएनएन। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और पूर्व सांसद परिपूर्णानंद पैन्यूली पंचतत्व में विलीन हो गए। राजकीय सम्मान के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी गई। दून से उनका पार्थिव शरीर हरिद्वार स्थित खड़खड़ी श्मशान घाट ले जाया गया। जहां उनकी चार बेटियों और दो भतीजों ने सामूहिक रूप से मुखाग्नि दी। इधर, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत समेत कई राजनेताओं ने उनके घर पहुंचकर श्रद्धासुमन अर्पित किए।
टिहरी के पूर्व सांसद परिपूर्णानंद पैन्यूली (96) का बीते शनिवार इलाज के दौरान दून के एक अस्पताल में निधन हो गया था। रविवार को उनका पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए वसंत विहार स्थित घर पर रखा गया। जहां परिजनों के साथ राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों के सदस्यों ने श्रद्धासुमन अर्पित किए। यहां से उन्हें राजकीय सम्मान और पुलिस जवानों ने गार्ड ऑफ ऑनर के साथ सलामी देते हुए विदाई दी।
मुख्यमंत्री रावत के अलावा कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह, हरिद्वार सांसद एवं पूर्व सीएम डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक, महापौर सुनील उनियाल गामा, कैंट विधायक हरबंस कपूर, भाजपा महानगर अध्यक्ष विनय गोयल, कांग्रेस महानगर अध्यक्ष लालचंद शर्मा, रिटायर आईएसएस एसएस पांगती, वीरेंद्र पैन्यूली, उक्रांद के बीडी रतूड़ी समेत कई गणमान्य लोगों ने अंतिम विदाई दी। दून से हरिद्वार के लिए निकली अंतिम यात्रा में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। उनके भांजे बृजभूषण गैरोला ने बताया कि हरिद्वार स्थित खडख़ड़ी श्मशान घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। इस दौरान उनकी बेटी विजयश्री, राजश्री, इंद्र सेमवाल, तृप्ति गैरोला, नाती श्रेय और भतीजे विवेकानंद और संपूर्णानंद पैन्यूली ने सामूहिक रूप से मुखाग्नि दी।
अंतिम संस्कार में जनप्रतिनिधि नहीं पहुंचे
स्वतंत्रता सेनानी पैन्यूली के हरिद्वार में अंतिम संस्कार के वक्त न ही कोई जनप्रतिनिधि मौजूद था और न ही पुलिस प्रशासन का कोई अधिकारी। इसे लेकर श्मशान घाट पर चर्चा होती रही कि पूर्व सांसद और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को लेकर जिम्मेदार लोगों का यह रुख ठीक नहीं है। हालांकि क्षेत्रीय पार्षद अनिल मिश्रा ने जरूर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
पिता को याद कर भर आई आंखें
अंतिम संस्कार के दौरान बेटियों की आंखें भर आईं। दूसरे नंबर की बेटी राजश्री वेल्हम गल्र्स स्कूल में शिक्षिका हैं। वह बताती हैं कि उनके पिता स्वाभिमानी थे। बेटियों के घर रुकना उन्हें पसंद नहीं था। उन्हें खाने में मछली पसंद थी। हर संडे उनके साथ ही बीतता था। दिल्ली में रहने वाले सबसे छोटी बेटी तृप्ति की आंखें भी पिता को याद कर भर आती हैं। वह बताती हैं, चार-पांच साल पहले तक वह मम्मी के साथ हर 15 दिन में एक बार उनके मिलने दिल्ली जरूर आते थे। बताती हैं उनके पिता स्वच्छ छवि के स्पष्ट व्यक्ति थे। आज वह जो कुछ भी हैं, उनकी बदौलत ही हैं।
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