अधर में लटकी हैं चार जल विद्युत परियोजनाएं
चंदराम राजगुरु टिहरी पहाड़ की जवानी और पहाड़ का पानी राज्य के विकास के काम आए इ
चंदराम राजगुरु, टिहरी:
पहाड़ की जवानी और पहाड़ का पानी राज्य के विकास के काम आए इस सोच एवं परिकल्पना के साथ उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ। लेकिन पर्वतीय विकास के ये मुद्दे समय के साथ गौण हो गए। ऐसे में पहाड़ की जनता खुद को ठगा सा महसूस कर रही है। टोंस, यमुना व पावर नदी पर प्रस्तावित देहरादून, उत्तरकाशी व टिहरी तीन जिलों के विकास की चार महत्वपूर्ण बांध परियोजनाएं पिछले कई वर्षो से अधर में लटकी है। इनमें से तीन जल विद्युत परियोजनाओं पर वर्ष 2012 तक विद्युत उत्पादन शुरू होना था। लेकिन अब तक किसी भी परियोजना पर कार्य शुरू नहीं हुआ। जिससे ग्रामीण युवा रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे हैं।
राज्य गठन के बाद तत्कालीन एनडी तिवारी सरकार ने पहाड़ के विकास की आधारशिला रखी। सरकार ने वर्ष 2006 में देहरादून व उत्तरकाशी दोनों जिले के सीमावर्ती इलाकों के विकास को टोंस नदी पर प्रस्तावित 90 मेगावाट क्षमता की हनोल-त्यूणी जल विद्युत परियोजना व 72 मेगावाट क्षमता की त्यूणी-प्लासू और पावर नदी पर प्रस्तावित 72 मेगावाट क्षमता की आराकोट-त्यूणी समेत तीन जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण को मंजूरी दी थी। जिसमें त्यूणी-हनोल परियोजना के निर्माण का जिम्मा निजी कंपनी सन फ्लैग आइरन एंड स्टील को सौंपा गया। सरकार से अनुबंध के तहत कंपनी को परियोजना के निर्माण पर ढ़ाई सौ करोड़ का निवेश करना था। जबकि टोंस और पावर नदी पर प्रस्तावित दो अन्य जल विद्युत परियोजनाएं त्यूणी-प्लासू व आराकोट-त्यूणी के निर्माण कार्य का जिम्मा सिचाई विभाग के पास है। इसी तरह नब्बे के दशक से लंबित देहरादून व टिहरी दो जिलों के सुदूरवर्ती गांवों के विकास को यमुना नदी पर प्रस्तावित तीन सौ मेगावाट क्षमता की लखवाड़ बांध परियोजना का कार्य अधर में लटका हुआ है। उत्तराखंड व हिमाचल के बार्डर पर क्वानू-मीनस के पास टोंस व शालो नदी पर प्रस्तावित 660 मेगावाट क्षमता की राष्ट्रीय परियोजना घोषित किसाऊ बांध परियोजना भी आगे नहीं बढ़ पाई। जबकि टोंस और पावर नदी पर बनने वाली त्यूणी-हनोल, त्यूणी-प्लासू व आराकोट-त्यूणी तीनों परियोजना से वर्ष 2012 तक विद्युत उत्पादन शुरू होना था। सीमांत गांवों के विकास में महत्वपूर्ण इन तीनों परियोजना पर अब तक कोई कार्य न होने से जनता में निराशा है। लोगों का कहना है हिमाचल ने पावर नदी पर प्रस्तावित सनेल-सावड़ा पावर प्रोजेक्ट का काम समय पर निपटा दिया। जिससे वहां बिजली उत्पादन हो रहा है। जबकि उत्तराखंड में टोंस व पावर नदी पर बनने वाली तीनों परियोजना की फाइलें सरकारी दफ्तरों में धूल फांक रही है। ऐसे में पहाड़ के विकास का सपना आज भी अधूरा है। जिससे ग्रामीण युवा रोजगार व काम की तलाश में पलायन कर रहे हैं। इस बार भी चुनावी समर में नेता जनता से तमाम तरीके वादे कर रहे हैं। सियासी माहौल बनाने के लिए सबके पास अपने-अपने तर्क हैं। देखना ये है जनता किसे अपना वोट देती है।