पहाड़ों में 'झांपे' से बुझती है वनों की आग, जानिए इसके बारे में
पहाड़ों में झांपे यानि पेड़ों और झाड़ियों की हरी टहनियों को तोड़कर बनाया जाने वाले झाड़ू से आग बुझाई जाती है।
देहरादून, केदार दत्त। आज के दौर में भले ही यह बात अजीब लगे, मगर है सोलह आने सच। विषम भूगोल वाले उत्तराखंड के जंगलों में आज भी फायर सीजन में वनों को आग से बचाने के लिए झांपा (पेड़ों व झाड़ियों की हरी टहनियों को तोड़कर बनाया जाने वाला झाड़ू) ही कारगर हथियार है। दुनिया कहां से कहां पहुंच गई, मगर झांपे का विकल्प आज तक तलाशा नहीं जा सका है। यह वन संपदा को बचाने के प्रति सिस्टम की संजीदगी को दर्शाने के लिए काफी है। बात यही तक सीमित नहीं है। मानव संसाधनों के बेहतर उपयोग के साथ ही जंगल की आग पर काबू करने के मामले में जनसहयोग लेने में महकमा फिसड्डी साबित हुआ है और यह सबसे बड़ी चिंता की वजह भी है।
राज्य के जंगलों पर नजर दौड़ाएं तो ये मैदानी, पहाड़ी और घाटी वाले क्षेत्रों में विभक्त हैं। विषम भूगोल के चलते सर्वाधिक दिक्कतें पहाड़ी व घाटी वाले वन क्षेत्रों में वनों की आग से सुरक्षा को लेकर है। साफ है कि इन क्षेत्रों में आग पर काबू पाने की राह में बाधाएं कम नहीं हैं। सबसे अधिक दिक्कत संसाधनों की है, जिनके मामले में बदली परिस्थितियों में अभी तक ध्यान देने की जहमत नहीं उठाई जा रही। झांपे का विकल्प न ढूंढा जाना इसकी तस्दीक करता है।
दूसरी सबसे बड़ी बाधा मानवशक्ति को लेकर है। यह ठीक है कि 71.05 फीसद वन भूभाग वाले में आग बुझाना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है, मगर उपलब्ध संसाधनों का बेहतर उपयोग न हो पाने की बातें अक्सर सुर्खियां बनती हैं। खासकर, 12168 वन पंचायतों की व्यवस्था के बावजूद इस फौज का उपयोग विभाग नहीं कर पाया है। बता दें कि प्रत्येक वन पंचायत में नौ सदस्य हैं। इसके अलावा अन्य ग्रामीणों को भी साथ नहीं लिया जा सका है। इसके लिए ग्रामीणों को यह समझाने का ठोस एवं प्रभावी प्रयत्न नहीं हुआ कि जंगल सरकारी नहीं बल्कि उनके अपने हैं।
राज्य में विधिक दृष्टि से वन क्षेत्र
श्रेणी, क्षेत्र (फीसद में)
आरक्षित वन, 45.40
गैर वन, 28.97
पंचायती वन, 13.41
अवर्गीकृत 2.80
संरक्षित वन, 0.18
भूमि संरक्षण, 8.95
निजी वन, 0.29
उठाए गए हैं ये कदम
-40 वन प्रभागों में मास्टर कंट्रोल रूम
-174 वाच टावरों का होगा उपयोग
-1437 कू्र-स्टेशन राज्यभर में स्थापित
-2229 लोगों को मिलेगा फायर अलर्ट
-5000 दैनिक श्रमिकों की होगी तैनाती
राज्य स्तरीय प्रवक्ता (वनाग्नि) आरके मिश्रा ने बताया कि दावानल नियंत्रण में इस मर्तबा वन पंचायतों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। इसके अलावा व्यापक पैमाने पर जनजागरण कार्यक्रम संचालित कर ग्रामीणों को संदेश दिया जाएगा कि जंगल उनके अपने हैं। इसमें सोशल मीडिया का सहारा भी लिया जाएगा। आग बुझाने में सहयोग करने वाले गांवों को प्रोत्साहन राशि देकर प्रोत्साहित करने की भी मंशा है। संसाधन विकसित करने पर भी विभाग का फोकस है। इस लिहाज से कई कदम उठाए गए हैं।
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