उत्तराखंड में भ्रष्टाचार के मगरमच्छ के जबड़ों में हुआ मछली पालन
सूबे में मत्स्य पालन योजना के नाम पर जिसतरह खानापूरी की जा रही है, उससे सरकारी योजनाओं को लेकर खुद सरकार और संबंधित महकमे की इच्छाशक्ति सवालों के घेरे में है।
देहरादून, रविंद्र बड़थ्वाल। प्रदेश के दूरदराज पर्वतीय क्षेत्रों में किसानों की आमदनी को बढ़ाने के लिए शुरू की गई मत्स्य पालन योजना सरकारी ढिलाई का नायाब नमूना तो है ही, योजना के नाम पर जिसतरह खानापूरी की जा रही है, उससे सरकारी योजनाओं को लेकर खुद सरकार और संबंधित महकमे की इच्छाशक्ति सवालों के घेरे में है। मत्स्य पालन के लिए भूमि के चयन, तालाबों के निर्माण, लाभार्थी का अंश तय करने में अनियमितताएं बरती गई हैं। किसानों की आमदनी बढ़ाने की ये अहम योजना भ्रष्टाचार के मगरमच्छ के जबड़े में फंसकर रह गई है। योजना के लाखों रुपये का सदुपयोग नहीं हो सका है।
मत्स्य विभाग की नैनीताल जिले में संचालित छह उपयोजनाओं के मूल्यांकन अध्ययन की रिपोर्ट खासी चौंकाने वाली है। मौका मुआयना में सामने आने वाला सच प्रदेश में मत्स्य पालन योजना की पोल खोलने को काफी है। अनियमितता की बानगी देखिए, मत्स्य पालन के सबसे प्रारंभिक कदम के रूप में तालाब निर्माण को चिकनी मिट्टी वाली भूमि का चयन किया जाना था, लेकिन विभाग ने भूमि का सत्यापन किए बगैर ही पथरीली जमीन पर भी तालाब उगा दिए। नतीजतन कुल 18 तालाबों में पानी नहीं रुकने के कारण अनुसूचित जाति के तीन, अनुसूचित जनजाति के छह, तीन आदर्श तालाब, दो पर्वतीय तालाब, चार शीतजल मात्स्यिकी तालाब अनुपयोगी होकर रह गए। 16 अन्य तालाब नदी के मुहाने में बदलाव, स्रोत से पानी खत्म होने, तालाब ध्वस्त होने की वजह से संचालित नहीं हो रहे हैं। वहीं तकनीकी मार्गदर्शन और विभागीय मॉनीटङ्क्षरग के अभाव में भीमताल के पांच, ओखलकांडा के 14, रामगढ़ का एक, रामनगर के 10 व कोटाबाग के पांच तालाब विभिन्न योजनाओं के तहत अनुपयुक्त पाए गए।
पर्वतीय के बजाय मैदानी क्षेत्रों में बना डाले तालाब
सत्यापित 102 तालाबों में छह तालाबों का निर्माण तय मानकों के मुताबिक हुआ ही नहीं, जबकि 29 तालाब आंशिक या पूरी तरह क्षतिग्रस्त मिले। निर्धारित मानक के आधार पर इनकी माप तक लेना मुमकिन नहीं हो सका। योजना के तय दायरे से उलट 11 तालाबों को पर्वतीय क्षेत्रों के स्थान पर मैदानी क्षेत्रों में बना दिया गया। तालाब आवंटन की प्रक्रिया खामियों से भरी है। इस योजना का उद्देश्य किसानों और मत्स्य पालकों के जीविकोपार्जन में वृद्धि करने और रोजगार के अवसर पैदा करना है, लेकिन अनियमितता का आलम ये है कि पिता ने अपनी भूमि में से तालाब निर्माण के लिए अपने पुत्रों को पांच वर्ष के अनुबंध पर दी गई भूमि पर विभाग के जरिये अनुदान का लाभ दिलाया।
पिता से लीज पर मिली जमीन, बने 21 तालाब
आदर्श तालाब व नील क्रांति उपयोजना में एक-एक तालाब, अनुसूचित जनजाति उपयोजना के तहत मत्स्य पालन के आवेदकों को न्यूनतम दो यूनिट और अधिकतम तीन यूनिट का लाभ देने की व्यवस्था है, लेकिन चुने गए पांच विकासखंडों में विभिन्न उपयोजनाओं के तहत कुल नौ संयुक्त परिवारों को 21 तालाब आवंटित कर दिए गए। ये तालाब आवेदक के पिता की ओर से लीज पर दी गई भूमि पर स्थापित किया गया। इस अनियमितता का एक परिणाम ये भी हुआ कि अन्य आवेदक योजना का लाभ नहीं ले सके।
निर्माण लागत अवैज्ञानिक ढंग से तय
रिपोर्ट में लाभार्थियों के चयन की प्रक्रिया व्यवस्थित नहीं होने, मत्स्य पालकों के लिए कलस्टर की कमी का उल्लेख भी है। तालाब निर्माण की लागत के अनुपयुक्त निर्धारण के चलते कई अनियमितताएं पाई गई हैं। अनुसूचित जाति-जनजाति उपयोजनाओं में 0.01 हेक्टेयर तालाब निर्माण की लागत 60 हजार रुपये है। पर्वतीय मत्स्य तालाब योजना में तालाब निर्माण क्षेत्रफल 0.005 हेक्टेयर निर्धारित है। इसके निर्माण की लागत 50 हजार रुपये निर्धारित की गई है।
वहीं नील क्रांति उपयोजना में तालाब निर्माण का क्षेत्रफल 0.01 हेक्टेयर है और इसके निर्माण की लागत एक लाख रुपया है। विभाग ने समान क्षेत्रफल के लिए तालाब निर्माण की लागत का आगणन अवैज्ञानिक तरीके से किया है। इसीतरह विभिन्न उपयोजनाओं के तहत देय अनुदान का निर्धारण भी सही तरीके से नहीं किया गया। उधर, संपर्क करने पर पशुपालन, मत्स्य विभाग सचिव आर मीनाक्षी सुंदरम ने कहा कि मत्स्य महकमे को लेकर नियोजन विभाग की रिपोर्ट का अभी उन्होंने अध्ययन नहीं किया है।
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