आधुनिक सुविधाओं से लैस हुआ ये नेत्र चिकित्सालय, होगी फेको सर्जरी
राजधानी देहरादून स्थित गांधी शताब्दी नेत्र चिकित्सालय आधुनिक मशीनों से लैस हो गया है। अब यहां फेको विधि से आंखों के ऑपरेशन शुरू कर दिए गए हैं।
देहरादून, [जेएनएन]: अगर आपने अपनी आंखों का मर्ज दिखाना है, तो गांधी शताब्दी नेत्र चिकित्सालय का रुख कीजिए। अस्पताल अब अत्याधुनिक मशीनों से लैस हो गया है। मंगलवार से यहां फेको सर्जरी भी शुरू कर दी गई। बता दें कि फेको सर्जरी में रोगी के आंख के ऑपरेशन के लिए बड़े चीरे की आवश्यकता नहीं होती।
दून व आसपास के लोगों के उपचार के लिए गांधी शताब्दी नेत्र चिकित्सालय अब एक अच्छा विकल्प बनता जा रहा है। इसे एक सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पिटल के रूप में विकसित किया जा रहा है। न केवल नेत्र बल्कि मेडिसिन, बाल रोग, त्वचा रोग और स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग भी यहां शुरू हो गया है। अब क्योंकि यह प्रदेश का पहला नेत्र चिकित्सालय है, इसलिए नेत्र विभाग को भी लगातार सुदृढ़ किया जा रहा है। जिसके तहत अब अस्पताल में कई अत्याधुनिक मशीनें लगाई गई हैं। इनमें दो मशीन एनएचएम के तहत क्रय की गई हैं। जबकि छह मशीन हंस फाउंडेशन ने दी हैं। हंस फाउंडेशन अस्पताल को अभी तीन मशीनें और देगा। खास बात यह कि अस्पताल को अत्याधुनिक फेको मशीन मिल गई है। इससे बिना चीरा-टाका, बहुत ही कम समय में सफेद मोतियाबिंद के ऑपरेशन होंगे।
मंगलवार को अस्पताल में इस मशीन की मदद से 10 ऑपरेशन किए गए। इसके अलावा अस्पताल में याग लेजर भी आ गई है। बताया गया कि कई बार लैंस के पीछे झिल्ली आ जाती है। इस मशीन से झिल्ली को काट सकते हैं। अत्याधुनिक मशीन पर होगी काला मोतिया की जांच अस्पताल में काला मोतिया की जांच के लिए भी मशीन आ गई है। यह एक अत्याधुनिक ऑटोमेटिक मशीन है। जिससे आंखों के प्रेशर को देखा जाता है।
खास बात यह कि इसमें मरीज का डाटा बैंक भी बनता है। जिससे इलाज की प्रगति जानना भी आसान हो जाता है। इस तरह की मशीन अभी कुछेक निजी अस्पतालों में ही उपलब्ध है। बता दें कि ग्लूकोमा यानी काला मोतिया अंधेपन का एक प्रमुख कारण रहा है। वक्त पर स्क्रीनिंग हो जाए तो इस खतरे से बचा जा सकता है। ये मशीन हुई स्थापित सर्जिकल माइक्रोस्कोप, ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी (ओसीटी) मशीन,याग लेजर, स्लिट लैंप व फेको मशीन आदि।
सीएमएस डॉ. बीसी रमोला ने बताया कि अस्पताल में सुविधाएं बढ़ाने के लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। इस काम में हंस फाउंडेशन ने बहुत मदद की है। उनकी ओर से छह अत्याधुनिक मशीनें दी गई हैं और तीन अभी और दी जाएंगी।
यह भी पढ़ें: उत्तराखंड को मिल सकता है एक और डॉप्लर रडार
यह भी पढ़े: सूर्य के रहस्य उजागर करेगा इसरो, यह उपग्रह करेगा सूर्य का अध्ययन