Move to Jagran APP

सरकार ने फिर से पहाड़ पर डॉक्टरों चढ़ाने का राग छेड़ा

उत्‍तराखंड सरकार ने फिर से पहाड़ पर डॉक्टरों चढ़ाने का राग छेड़ा है। ध्येय और फार्मूला जरूर पुराना है लेकिन सोच नई। पर करें क्या बेबसी से पीछा नहीं छूट रहा।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sun, 09 Feb 2020 05:18 PM (IST)Updated: Sun, 09 Feb 2020 05:18 PM (IST)
सरकार ने फिर से पहाड़ पर डॉक्टरों चढ़ाने का राग छेड़ा
सरकार ने फिर से पहाड़ पर डॉक्टरों चढ़ाने का राग छेड़ा

देहरादून, देवेंद्र सती। सरकार ने फिर से पहाड़ पर डॉक्टरों चढ़ाने का राग छेड़ा है। ध्येय और फार्मूला जरूर पुराना है, लेकिन सोच नई। पर करें क्या, बेबसी से पीछा नहीं छूट रहा। सरकारी खर्चे पर डाक्टरी की पढ़ाई करवाई, पर जनता के काम नहीं आई। नए नवेले डाक्टर साहब कब और कहां चलते बने, पता नहीं चला। पांच साल की अनिवार्य सेवा के बांड की सिस्टम ने हवा निकाल कर रख दी। अब दोष भी दें तो किसे, सच तो यह कि अपना ही सिक्का खोटा निकला। खैर... सरकार की समझ में भी आ गया कि अब लकीर पीटकर कुछ हासिल नहीं होने वाला। सो, फिर से हिम्मत दिखाते हुए अपने खर्च पर डाक्टर तैयार करने का बीड़ा उठाया है। इस बार दांव खेला है विशेषज्ञ डाक्टरों के लिए। पर कहते हैं ना दूध का जला छांछ भी फूक-फूक कर पीता है, यही सोच सरकार ने सख्त इरादे भी जाहिर किए हैं।

loksabha election banner

कैसे छूट मुफ्तखोरी

जनाब! मुफ्तखोरी की आदत ऐसे ही थोड़ा ना छूटेगी। छूटेगी भी कैसे, ऊर्जा निगम की नौकरी पाने के वक्त 'पट्टा' जो लिख गया था कि बिजली खर्च नहीं देना है, चाहे कितनी भी बिजली फूंकें। उन्हें डर

काहे का, डर शब्द तो आम लोगों के लिए है। तभी तो वह एलईडी और बल्ब की दुकानों की खाक छान रहे हैं। निगम के 'साहब' हैं कि हर कमरे में ब्लोअर से ठंड भगा रहे हैं। किचन में गैस सिलेंडर की जगह दो-दो हीटरों ने ली हुई है। हाईकोर्ट ने ऊर्जा निगम के पेच कसे तो निगम के नीति नियंता 'हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा' जैसा नुस्खा खोज लाए। उन्होंने मुलाजिमों के लिए ऐसा यूनिट स्लैब तय कर दिया कि वह अब पहले से ज्यादा बिजली मुफ्त फूंक सकेंगे। यद्यपि इस पर कोर्ट का फैसला आना बाकी है, लेकिन अगर निगम के प्रस्ताव को मान लिया गया तो मुलाजिमों की बल्ले-बल्ले।

सिस्टम का अंधेरा

ऊर्जा निगम की आंखे बंद थीं और गांव वालों के आगे अंधेरा छाया हुआ था। जिसका सहारा था वो ही मझधार में छोड़ गया। चमोली जिले के जोशीमठ ब्लाक के सुभाई गांव के लिए बर्फबारी नई बात नहीं है, लेकिन पिछले दिनों भारी हिमपात के बीच एकाएक लाइट चली गई। ऊर्जा निगम से शिकायत की तो पता चला कि ट्रांसफार्मर फुंक गया है, बदलना पड़ेगा। खैर, नया ट्रांसफार्मर मंगाया गया, लेकिन यह क्या, ठेकेदार ट्रांसफार्मर सड़क किनारे छोड़ खुद नौ दो ग्यारह हो गया। सड़क से गांव छह किलोमीटर दूर था। अब ऐसे में टांसफार्मर गांव तक पहुंचे तो कैसे। अपना हाथ जगन्नाथ की तर्ज पर गांव वाले एकजुट हुए और कंधे पर उठा किसी तरह ट्रांसफार्मर को गांव तक पहुंचाया, लेकिन गांव में अब भी अंधेरा है। वजह यह कि ट्रांसफार्मर भले ही पहुंच गया, लेकिन चालू कौन करेगा। अब छह किलोमीटर दूर गांव में इंतजार चल रहा है।

यह भी पढ़ें: उत्तराखंड के चमोली में 18 किमी बर्फ में पैदल चल घायल को पहुंचाया गया अस्पताल

...और यह भी

उत्तराखंड में असर (एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट) की रिपोर्ट से आम आदमी पर भले ही असर पड़ा हो, लेकिन जिन पर इसकी जिम्मेदारी है वे बेअसर ही  हैं। जब राजधानी देहरादून में कक्षा तीन के 75 फीसद बच्चे घटाना नहीं जानते तो पहाड़ों में स्तर क्या होगा, यह समझना कठिन नहीं है। पहाड़ में गुरु जी रहना नहीं चाहते और जहां रहना चाहते हैं वहां स्तर क्या है, बताने की आवश्यकता नहीं है। गुरु पहाड़ चढ़ने को तैयार नहीं हैं, इसीलिए सुगम स्थानों के लिए हर तिकड़म भिड़ाने को तैयार हैं। अगर जुगाड़ काम न आया तो ऐसे भी मामले सामने आए हैं जब गुरु जी ने  गांव के किसी युवक को अपने स्थान पर रख दिया। शायद गुरु जी को लग रहा हो कि वह किसी हद तक बेरोजगारी कम करने में योगदान दे रहे हैं। अब बिन गुरु के शिष्यों के लिए रात तो अंधेरी ही रहेगी।

यह भी पढ़ें: ग्रामीणों ने दो लाख जमाकर घायल युवक को हेलीकाप्टर से पहुंचाया अस्पताल Chamoli News


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.