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ऊर्जा निगमों ने की चीनी उपकरणों से तौबा, कर रहे हैं सिर्फ भारत में बने विद्युत मीटरों का प्रयोग

उत्तराखंड में ऊर्जा के तीनों निगमों ने चीनी उपकरणों का इस्तेमाल न करने की तैयारी शुरू कर दी है। अब नए उपकरणों की खरीद चीन या चीन की सहयोगी कंपनियों से नहीं की जाएगी।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Mon, 13 Jul 2020 01:42 PM (IST)Updated: Mon, 13 Jul 2020 01:42 PM (IST)
ऊर्जा निगमों ने की चीनी उपकरणों से तौबा, कर रहे हैं सिर्फ भारत में बने विद्युत मीटरों का प्रयोग
ऊर्जा निगमों ने की चीनी उपकरणों से तौबा, कर रहे हैं सिर्फ भारत में बने विद्युत मीटरों का प्रयोग

देहरादून, संतोष तिवारी। शासन की हरी झंडी के बाद ऊर्जा के तीनों निगमों ने चीनी उपकरणों का इस्तेमाल न करने की तैयारी शुरू कर दी है। हालांकि, विगत वर्षों में पावर प्रोजेक्ट और विद्युत सब स्टेशनों में जो उपकरण लग चुके हैं, उनका प्रयोग तो होता रहेगा। मगर अब नए उपकरणों की खरीद चीन या चीन की सहयोगी कंपनियों से नहीं की जाएगी। इन सब के बीच राहत की खबर यह भी है कि उत्तराखंड पावर कारपोरेशन लिमिटेड लंबे समय से चीन निर्मित उपकरणों के प्रयोग को सीमित कर चुका है। यहां तक राज्य में करीब चौबीस लाख घरों में लगे विद्युत मीटर भारतीय कंपनियों के हैं। वहीं, उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड और पावर ट्रांसमिशन कॉरपोरेशन लिमिटेड उन कंपनियों की पड़ताल करने लगा है, जिनसे वह उपकरणों की खरीद करता है।

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गलवान में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर हुई हिंसा के चीन को लेकर पूरे देश में गुस्सा है। हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने चीनी कंपनी के विद्युत मीटरों का प्रयोग न करने का आदेश देकर सरकारी विभागों में चीनी उपकरणों को प्रयोग से बाहर करने की शुरुआत भी कर दी है। वहीं, गत दिनों उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी निर्णय ले लिया है कि उत्तराखंड पावर कारपोरेशन लिमिटेड, उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड और पावर ट्रांसमिशन कारपोरेशन लिमिटेड में चीनी उपकरणों का प्रयोग न करने का फैसला ले लिया है, लेकिन यहां बता दें कि राज्य में यूपीसीएल काफी समय से भारतीय कंपनियों जीनस (हरिद्वार), सिक्योर (जयपुर) और एलएंडटी (मैसूर) के विद्युत मीटर प्रयोग कर रहा है। 

अन्य उपकरणों की खरीद-फरोख्त भी भारतीय कंपनियों से ही हो रही है। हालांकि बात केवल विद्युत मीटर तक की सीमित नहीं है। निगम के सब स्टेशनों व कंट्रोल सिस्टम में ऐसे कई उपकरण हैं, जिनका निर्माण या तो चीन में होता है या फिर चीन से कल-पुर्जे खरीद कर भारतीय कंपनियां उपकरणों की यहां असेंबलिंग करती हैं। ऐसे में सरकार के फैसले को लेकर ऊर्जा के तीनों निगमों ने अब इस बात की पड़ताल शुरू कर दी है, जिनसे वह उपकरणों की खरीद कर रहे हैं, वह पूर्णरूप से भारतीय हैं चीन की किसी कंपनी के सहयोग से चल रही हैं।

वाणिज्यिक खुफिया और सांख्यिकी महानिदेशालय की ओर से हाल में जारी आंकड़ों से पता चलता है कि चीन से पॉवर सेक्टर के लिए ट्रांसमिशन लाइन के लिए टावर, कंडक्टर, औद्योगिक इलेक्ट्रॉनिक्स, कैपेसिटर, ट्रांसफॉर्मर, केबल और इंसुलेटर और फिटिंग्स जैसे उपकरण आयात किए जाते रहे हैं।

उत्तराखंड पावर जूनियर इंजीनियर्स एसोसिएशन के केंद्रीय अध्यक्ष जीएन कोठियाल ने बताया कि चीन निर्मित जिन उपकरणों का प्रयोग हो रहा है, उन्हें हटाया तो नहीं जा सकता, लेकिन अब कंपनियों को देश में निॢमत उपकरणों का उपयोग करने की आवश्यकता पर जोर देना चाहिए।

चीनी तकनीकी पर बने हैं दो जीआइएस सब स्टेशन

देहरादून के हर्रावाला और बागेश्वर पिटकुल ने 220 केवी के गैस इंसुलेटेड सबस्टेशन स्थापित किए हैं। इस तकनीकी पर बनने वाले सब स्टेशनों को सामान्य विद्युत गृहों की अपेक्षा कम जगह की जरूरत पड़ती है। इन स्टेशनों में फॉल्ट खोजना भी आसान होता है।

असेंबलिंग करने वाली भी कंपनियां हों प्रतिबंधित

उत्तराखंड पावर इंजीनियर्स एसोसिएशन ने चीनी उपकरणों और मशीनों का प्रयोग न करने के साथ चीन से कल-पुर्जे मंगाकर यहां असेंबलिंग करने वाली कंपनियों को भी प्रतिबंधित करने की मांग की है। एसोसिएशन के महासचिव इं.मुकेश कुमार ने कहा कि चीन को पूरी तरह से बाइकाट करने की जरूरत है। इसके लिए निगमों के एमडी के साथ शासन को भी पत्र भेजकर मांग की गई है कि चीनी उपकरणों का प्रयोग बंद किया जाना चाहिए।

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यूपीसीएल के प्रवक्ता एके सिंह का कहना है कि निगम काफी समय से भारत में बने विद्युत मीटर का प्रयोग कर रहा है। सब स्टेशनों आदि में प्रयोग किए जा रहे उपकरणों को बनाने वाली कंपनियों के बारे में ब्योरा जुटाया जा रहा है। वहीं, पिटकुल प्रवक्ता नीरज पाठक ने बताया कि अब सरकार कर फैसला आने के बाद इस बात की पड़ताल की जा रही है कि जिन कंपनियों को उपकरणों की आपूर्ति का ठेका दे रखा है वह कहां की हैं। यूजेवीएनल के प्रवक्ता विमल डबराल का कहना है कि जिन प्रोजेक्ट में चीनी उपकरणों का प्रयोग किया जा चुका है, वह तो संचालित हो रहे हैं। शासन के आदेश के बाद प्रयास शुरू कर दिया गया है कि भारतीय या फिर चीन के बाहर की कंपनियों से उपकरण खरीदे जाएं। 

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