राज्य कर्मचारियों के भत्तों की कटौती न होने से खुश, वेतन कटौती पर नाखुश
देहरादून जेएनएन। राज्य कर्मचारियों के भत्तों की कटौती के फैसले को वापस लेने के सरकार के फैसले को विभिन्न कर्मचारी संगठनों ने उचित करार दिया है।
देहरादून, जेएनएन। राज्य कर्मचारियों के भत्तों की कटौती के फैसले को वापस लेने के सरकार के फैसले को विभिन्न कर्मचारी संगठनों ने उचित करार दिया है। कहा कि इससे कोरोना महामारी से निपटने में रात-दिन जुटे कर्मचारियों का हौसला बढ़ेगा। लेकिन, वेतन कटौती को अधिकाश संगठनों ने अनुचित करार देते हुए सरकार से फैसले पर पुनर्विचार करने की माग की है। कहा कि इससे बड़े अधिकारियों को तो कोई खास फर्क नही पड़ेगा, लेकिन कम वेतन वाले कार्मिक निश्चित तौर पर परेशान होंगे। साथ ही यह मशविरा दिया है कि सरकार उनसे राय ले तो वह राज्य की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए और भी कई सुझाव दे सकते हैं।
दीपक जोशी (प्रदेश अध्यक्ष, उत्तराखंड जनरल ओबीसी इंप्लाइज एसोसिएशन) का कहना है कि जो कर्मचारी कोरोना महामारी में सरकार के योद्धा बनकर खड़े हैं, अब वह दोगुने हौसले के साथ काम करेंगे। सरकार ने जब यह फैसला किया था तब इसका संगठन ने पुरजोर विरोध किया था।
करमराम (प्रदेश अध्यक्ष, उत्तराखंड एससी एसटी इंप्लाइज फेडरेशन) का कहना है कि वेतन कटौती के फैसले पर कर्मचारियों को विश्वास में लेना चाहिए था। यह एक साल के लिए नहीं करना चाहिए, बल्कि सरकार इसे जरूरत के हिसाब से आगे बढ़ा सकती थी। तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों का ख्याल रखना चाहिए था।
पूर्णानंद नौटियाल (प्रातीय प्रवक्ता, उतराखंड अधिकारी कर्मचारी समन्वय मंच) का कहना है कि अल्प वेतन भोगी एवं मध्यम वर्ग के कर्मचारियों से एक दिन का वेतन काटने का निर्णय उचित नहीं है। क्योंकि उनके परिवार का भरण पोषण आदि समस्त खर्चे वेतन से चलाने में पहले से ही परेशानी होती रही है।
प्रताप सिंह पंवार (प्रातीय अध्यक्ष, उत्तराचल पर्वतीय कर्मचारी शिक्षक संगठन) का कहना है कि संगठन ने सरकार को ज्ञापन देकर भत्तों में कटौती के निर्णय को वापस लेने की माग की थी। सरकार ने यह कदम उठाकर कर्मचारियों में उत्साह का संचार कर दिया है। लेकिन वेतन कटौती पर पुनर्विचार करना चाहिए।
ठाकुर प्रह्लाद सिंह (प्रदेश अध्यक्ष, राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद) का कहना है कि प्रदेश के लाखों कर्मचारी भत्तों में कटौती न करने का फैसला तो ठीक है, लेकिन वेतन कटौती के निर्णय पर सरकार को पुनर्विचार करना चाहिए। कोरोनाकाल में सारा बोझ कर्मचारियों पर डालना भी उचित नहीं है।
अरुण पांडे (कार्यकारी महामंत्री, राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद) का कहना है कि सरकार को अपने खर्चो में बचत व आय में वृद्धि के रास्ते समझने के लिए प्रदेश के मान्यता प्राप्त कर्मचारी संगठनों के साथ विचार विमर्श करना चाहिए था। वह सरकार को ऐसे रास्ते बता सकते थे, जहा से खर्चो में बचत व आय में वृद्धि की जा सकती थी।
दिग्विजय सिंह चौहान (प्रदेश अध्यक्ष, प्राथमिक शिक्षक संगठन) का कहना है कि सरकारी कर्मचारी हर मोर्चे पर सरकार के साथ खड़े हैं, लेकिन मनमाने आदेश थोपने से स्थिति खराब हो सकती है। सरकार ने बिना संगठन से परामर्श के यह कदम उठाया है, जो शिक्षक हित में नहीं है।
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विनोद थापा (प्रदेश अध्यक्ष, जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संगठन) का कहना है कि सरकार को जबरन वेतन काटने का हक नहीं है। सरकार को अपनी आर्थिक स्थिति ठीक करनी है तो खर्चो में कटौती करे। शिक्षक व कर्मचारियों पर बोझ डालना उचित नही है। इस पर पुनर्विचार करना जरूरी है।
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