Move to Jagran APP

उत्तराखंड में गजराज के बढ़ते कुनबे के बीच इन चुनौतियों में भी हुआ इजाफा, जानिए

हाथियों की आखिरी पनाहगाह उत्तराखंड में राष्ट्रीय विरासत पशु गजराज का फल-फूल रहा कुनबा सुकून देता है मगर इसके साथ ही चुनौतियों में भी इजाफा हुआ है। विकास और जंगल के बीच सामंजस्य के अभाव में हाथियों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।

By Edited By: Published: Sun, 04 Oct 2020 03:01 AM (IST)Updated: Sun, 04 Oct 2020 08:40 AM (IST)
उत्तराखंड में गजराज के बढ़ते कुनबे के बीच इन चुनौतियों में भी हुआ इजाफा,  जानिए
गजराज के बढ़ते कुनबे के बीच चुनौतियों में भी इजाफा।

देहरादून, केदार दत्त। उत्तर भारत में हाथियों की आखिरी पनाहगाह उत्तराखंड में राष्ट्रीय विरासत पशु गजराज का फल-फूल रहा कुनबा सुकून देता है, मगर इसके साथ ही चुनौतियों में भी इजाफा हुआ है। विकास और जंगल के बीच सामंजस्य के अभाव में हाथियों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। कहीं रेल और सड़क मार्गों ने इनकी परंपरागत आवाजाही के रास्तों पर अवरोध खड़े किए हैं तो कहीं मानव बस्तियों ने। नतीजा, मानव और हाथियों के बीच बढ़ते टकराव के रूप में सामने आया है। इस संघर्ष में दोनों को ही कीमत चुकानी पड़ रही है। लिहाजा, जियो और जीने दो के सिद्धांत पर चलते हुए ऐसे कदम उठाने की दरकार है, जिससे गजराज भी महफूज रहें और मनुष्य भी। 

loksabha election banner
यह किसी से छिपा नहीं है कि वन्यजीव संरक्षण में उत्तराखंड महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। बाघों के साथ ही हाथियों का बढ़ता कुनबा इसकी तस्दीक करता है। बात हाथियों की करें तो राजाजी और कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के साथ ही इनसे सटे 12 वन प्रभागों में यमुना नदी से लेकर शारदा तक 6643.5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में हाथियों का बसेरा है। वर्तमान में यहां हाथियों की संख्या 2026 है, जो वर्ष 2017 में 1839 थी। यानी तीन साल में इनकी संख्या में 10.17 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वर्तमान में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में सर्वाधिक 1224 हाथी हैं, जबकि राजाजी टाइगर रिजर्व में इनकी संख्या 311 है। शेष अन्य वन प्रभागों में हैं। 
निश्चित रूप से हाथियों की बढ़ती संख्या सुकून देती है, लेकिन चुनौतियां भी इसी अनुपात में बढ़ गई हैं। विशेषज्ञों के अनुसार हाथी लंबी प्रवास यात्राएं करने वाला प्राणी है। यह जंगल की सेहत के साथ ही हाथियों की अच्छी संत्तति के लिए आवश्यक है। बदली परिस्थितियों में गजराज के स्वच्छंद विचरण में बाधा आई है। जिन परंपरागत गलियारों (कॉरीडोर) का उपयोग वे सदियों से आवाजाही के लिए करते आए हैं, उनमें कई अवरोध खड़े हो गए हैं। 
हालांकि, राज्य में 11 हाथी गलियारे चिह्नित हैं, लेकिन ये बाधित हैं। ऐसे में हाथियों के कदम आबादी वाले क्षेत्रों में भी पड़ रहे हैं और वहां इनका मानव से टकराव हो रहा है। फिर चाहे वह राजाजी टाइगर रिजर्व से लगे क्षेत्र हों अथवा कार्बेट से सटे, सभी जगह आलम एक जैसा ही है। इस पहलू पर सर्वाधिक ध्यान देने की जरूरत है।
हाथियों का बढ़ता कुनबा 
गणना वर्ष, संख्या 
2020, 2026 
2017, 1839 
2015, 1797
वर्तमान में हाथियों की संख्या 
वर्ग, संख्या वयस्क नर (15 साल से अधिक), 304 वयस्क मादा (15 साल से अधिक), 771 अवयस्क नर (पांच से 15 साल), 181 अवयस्क मादा (पांच से 15 साल), 266 बच्चे (पांच सालतक ), 285 दुधमुहें (एक सालतक), 172 लिंग ज्ञात नहीं, 47। 
हाथी लिंगानुपात (नर:मादा) 
वयस्क 1:2.5 
अवयस्क 1:1.4
हर साल 25 हाथियों की मौत 
उत्तराखंड में हर साल औसतन 25 हाथियों की जान जा रही है। वर्ष 2012 से जुलाई 2020 तक के आंकड़ों को देखें तो इस अवधि में 226 हाथियों की जान गई। इनमें 67 हाथियों की प्राकृतिक मौत हुई, जबकि जंगल में हुए हादसों में 41 की जान गई। इसके अलावा करंट लगने से 17, आपसी संघर्ष में 40, ट्रेन से कटकर 13 की मौत हुई, जबकि एक हाथी का शिकार हुआ। 47 मामलों में मौत का कारण पता नहीं चल पाया।
पहाड़ भी चढ़े हाथी 
उत्तराखंड में हाथी अब मैदानी इलाकों से पहाड़ की ओर भी बढ़ने लगे हैं। अमूमन, वर्षाकाल में हाथियों की आवाजाही लघु पहाड़ियों तक होती थी, लेकिन अब 1500 मीटर की ऊंचाई पर अल्मोड़ा डिवीजन की जौरासी रेंज में हाथी की मौजूदगी के प्रमाण मिले हैं। ऐसे में इनकी सुरक्षा की सवाल भी चुनौती बनकर सामने खड़ा है। 
व्यवहार में भी बदलाव 
बदली परिस्थितियों में हाथियों के व्यवहार में भी बदलाव देखने में नजर आ रहा है। राजाजी और कॉर्बेट से लगे आबादी वाले क्षेत्रों में हाथियों की निरंतर धमक और आक्रामकता इसकी तस्दीक करती है। इसे देखते हुए अब हाथियों के व्यवहार में आ रहे बदलाव पर अध्ययन शुरू कर दिया गया है।
मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग का कहना है कि हाथियों की बढ़ी संख्या के मद्देनजर जिम्मेदारी भी अधिक बढ़ गई है। हाथियों के लिए वासस्थल विकास और उनकी सुरक्षा पर खास फोकस किया गया है। इनके व्यवहार के अध्ययन के मद्देनजर 10 हाथियों पर रेडियो कॉलर लगाने का निर्णय लिया गया है। आवाजाही को गलियारे निर्बाध करने की दिशा में भी कदम बढ़ाए जा रहे हैं।

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.