Move to Jagran APP

यहां 16 साल बाद संरक्षित क्षेत्रों से लगे गांवों की ली जा रही है सुध, जानिए

उत्तराखंड के संरक्षित क्षेत्रों यानी नेशनल पार्क सेंचुरी व कंजर्वेशन रिजर्व से सटे 600 से अधिक गांवों की 16 साल बाद सुध ली जा रही है।

By Edited By: Published: Tue, 08 Oct 2019 08:45 PM (IST)Updated: Wed, 09 Oct 2019 08:24 PM (IST)
यहां 16 साल बाद संरक्षित क्षेत्रों से लगे गांवों की ली जा रही है सुध, जानिए
यहां 16 साल बाद संरक्षित क्षेत्रों से लगे गांवों की ली जा रही है सुध, जानिए

देहरादून, केदार दत्त। वन्यजीव संरक्षण में अहम भूमिका निभा रहे उत्तराखंड के संरक्षित क्षेत्रों यानी नेशनल पार्क, सेंचुरी और कंजर्वेशन रिजर्व से सटे 600 से अधिक गांवों की 16 साल के लंबे इंतजार के बाद सुध ली जा रही है। इन गांवों में 2003 से बंद पड़े इको विकास कार्यक्रम को पुनर्जीवित किया जा रहा है। इसके तहत गठित होने वाली इको विकास समितियों के जरिये गांवों में वन्यजीवों से सुरक्षा को कदम उठाने के साथ ही उन्हें प्रकृति आधारित रोजगार के मौके भी मुहैया कराए जाएंगे। यही नहीं, वन्यजीव संरक्षण में ग्रामीणों की भागीदारी भी सुनिश्चित की जाएगी। 

loksabha election banner

अविभाजित उत्तर प्रदेश में विश्व बैंक की मदद से वर्ष 1999 में संरक्षित क्षेत्रों से सटे गांवों में इको विकास कार्यक्रम शुरू किया गया था। इसके तहत वहां इको विकास समितियां गठित कर स्थानीय समुदाय के सहयोग से संरक्षण और आजीविका के कार्य संचालित किए जाते थे। 2003 में प्रोजेक्ट खत्म होने पर यह मुहिम ठप पड़ गई। इको विकास समितियां भी छिन्न-भिन्न हो गई। ऐसे में इन गांवों की दुश्वारियां बढ़ गई हैं। असल में बीते 16 सालों में परिस्थितियां बदली हैं। संरक्षित क्षेत्रों से लगे गांवों में मानव-वन्यजीव संघर्ष तेजी से बढ़ा है। 

वहां न घर आंगन सुरक्षित है, न खेत- खलिहान। कब कहां, बाघ, गुलदार, भालू, हाथी जैसे जानवर जान के खतरे का सबब बन जाएं कहा नहीं जा सकता। इसे देखते हुए सरकार का ध्यान फिर से इको विकास कार्यक्रम की ओर गया है। इसे पुनर्जीवित कर इसके विस्तार का निर्णय लिया गया है। राज्य वन्यजीव बोर्ड की हाल में हुई बैठक में इस कार्यक्रम को पुनर्जीवित करने के प्रस्ताव पर मुहर लगी थी। अब इसके लिए वन्यजीव महकमे ने कदम बढ़ाए हैं। मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक राजीव भरतरी के अनुसार इसकी गाइडलाइन तैयार की जा रही है। 

जल्द ही संरक्षित क्षेत्रों से सटे गांवों में इको विकास कार्यक्रम शुरू होगा। भरतरी के मुताबिक जिन गांवों में वन पंचायतें हैं, उनमें यह कार्यकम इनके जरिये चलेगा। कार्यक्रम के तहत सभी गांवों में इको विकास समितिया बनेंगी और फिर इन्हें विभिन्न कार्यों को धनराशि दी जाएगी। इसमें मुख्य फोकस इस बात पर होगा कि मानव और वन्यजीवों के बीच किस तरह से सामंजस्य बैठाया जाए।

गांवों में ये होंगे कार्य

संरक्षित क्षेत्रों से लगे गांवों में झाड़ी कटान, रात्रि में रोशनी को सोलर लाइट, शौचालयों का निर्माण, कचरा प्रबंधन को ठोस कदम और गांवों में वन्यजीवों की आमद थामने को सोलर फैसिंग, वन्यजीव रोधी दीवार जैसे कार्य होंगे। रोजगार के अवसर सृजित करने की कड़ी में युवाओं को बर्ड वाचिंग गाइड, टूरिस्ट गाइड जैसे प्रशिक्षण दिए जाएंगे। 

यह भी पढ़ें: उत्तराखंड में बाघ सुरक्षा को खुलेंगे चार वन्यजीव अंचल, पढ़ि‍ए पूरी खबर

राज्य में संरक्षित क्षेत्र नेशनल पार्क

कार्बेट, राजाजी, नंदादेवी, फूलों की घाटी, गंगोत्री और गोविंद।   

वाइल्डलाइफ सेंचुरी

मसूरी, केदारनाथ, गोविंद, अस्कोट, सोनानदी, बिनसर और नंधौर। 

कंजर्वेशन रिजर्व

आसन, झिलमिल झील, पवलगढ़ और नैनादेवी। 

यह भी पढें: मोबाइल एप से दर्ज होगी मानव-वन्यजीव संघर्ष की शिकायत, जानिए क्या होंगे फायदे


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.