राजधानी में सुगम यातायात व्यवस्था के लिए नासूर बने ई-रिक्शा, सिस्टम भी नाकाम; यहां लगता है झुंड
मुख्य सड़कों पर सुगम यातायात व्यवस्था के लिए नासूर बन चुके ई-रिक्शा कभी भी आपके लिए हादसे का सबब बन सकते हैं। यूं तो मुख्य सड़क पर इनका संचालन प्रतिबंधित है लेकिन पुलिस और परिवहन विभाग की नाकाम कार्यप्रणाली इनके लिए वरदान बनी हुई है।
अंकुर अग्रवाल, देहरादून। दून शहर की तमाम मुख्य सड़कों पर सुगम यातायात व्यवस्था के लिए नासूर बन चुके ई-रिक्शा कभी भी आपके लिए हादसे का सबब बन सकते हैं। यूं तो मुख्य सड़क पर इनका संचालन प्रतिबंधित है, लेकिन पुलिस और परिवहन विभाग की नाकाम कार्यप्रणाली इनके लिए 'वरदान' बनी हुई है। झुंड बनाकर सड़क के बीचोंबीच तमाम नियम-कायदों को तोड़कर दौड़ने वाले ई-रिक्शा संचालकों को दूसरे वाहनों की परवाह नहीं होती। चाहे किसी की कार में साइड से टक्कर लगे या उनके पीछे जाम लग जाए। बिना इशारा दिए सड़क पर यू-टर्न लेना और कहीं भी रिक्शा घुमा देना, ई-रिक्शा चालकों की आदत बन गई है। कोई कार या दोपहिया चालक इनसे उलझ जाए तो उसकी खैर नहीं रहती। इनका 'कुनबा' मारपीट पर उतारू रहता है। प्रशासन कब इनका संचालन तय नियमों के अनुसार करा पाएगा, यह अब बड़ा सवाल बन चुका है।
वर्ष 2017 में केंद्र सरकार की योजना के तहत शहर में ई-रिक्शा का पंजीकरण शुरू हुआ था। देखते ही देखते यह आंकड़ा हजारों में पहुंच गया और इन पर नियंत्रण नहीं होने व झुंड के रूप में इनका संचालन मुख्य सड़कों पर होने से शहर जाम की भेंट चढ़ता चला गया। लंबी मशक्कत और दो साल की कसरत के बाद सरकार ने अगस्त 2019 में ई-रिक्शा का संचालन मुख्य मार्गों पर प्रतिबंधित कर दिया। आदेश दिया कि ई-रिक्शा सिर्फ गली-संपर्क मार्गों में ही चल सकेंगे। प्रतिबंधित मुख्य मार्गों पर ई-रिक्शा की नो-एंट्री के बोर्ड लगाने और नो-एंट्री का समय सुबह आठ बजे से रात आठ बजे तक तय करने को कहा गया था, लेकिन प्रशासन ने कोई कदम नहीं उठाया। हालांकि, आदेश के क्रम में सड़कों पर दो-तीन दिन परिवहन विभाग व पुलिस ने चालान की कार्रवाई की। लेकिन ई-रिक्शा संचालक राजनीतिक शरण में पहुंच गए और मामला ठंडा पड़ गया।
लगभग छह माह बाद फरवरी 2020 में सरकार ने यातायात निदेशक केवल खुराना के निर्देशन में पुलिस, परिवहन विभाग और ई-रिक्शा संचालकों की समिति गठित करते हुए समस्या का हल निकालने की कवायद की। समिति ने ई-रिक्शा के लिए 31 मार्ग तय किए थे। समिति ने यह आदेश दिया था कि शहर के बीच में ई-रिक्शा का संचालन पर पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगा, मगर तभी कोरोना संक्रमण के कारण मार्च में लाकडाउन लगने से यह आदेश लागू नहीं हो पाया। सवा साल बाद परिवहन विभाग ने गत 28 जुलाई को आदेश जारी किया कि अगर ई-रिक्शा तय 31 मार्ग पर नहीं चलाए गए, तो उन्हें सीज किया जाएगा। लेकिन, नतीजा फिर वही ढाक के तीन पात। तीन-चार दिन कार्रवाई हुई और फिर मामला ठंडे बस्ते में चला गया। वर्तमान में परिवहन विभाग में 2700 ई-रिक्शा पंजीकृत हैं, लेकिन इनके साथ बड़ी संख्या में गैर पंजीकृत ई-रिक्शा भी शहर में दौड़ रहे हैं।
नेताओं का दबाव तो नहीं
प्रतिबंध लगने के बाद से ई-रिक्शा के संचालक भाजपा व कांग्रेस के नेताओं के यहां डेरा डाले हुए थे। भाजपा विधायकों व कांग्रेस के पूर्व विधायक के साथ संचालकों ने सरकार पर दबाव भी बनाया। माना जा रहा है कि शायद यही वजह है कि पुलिस व परिवहन विभाग दबाव में हैं।
यहां लगता है ई-रिक्शा का झुंड
पटेलनगर में लालपुल, आइएसबीटी तिराहा, निरंजनपुर मंडी तिराहा, कारगी चौक, प्रिंस चौक, रेलवे स्टेशन, घंटाघर, बल्लीवाला चौक, बल्लूपुर चौक, प्रेमनगर, शिमला बाईपास तिराहा, दून अस्पताल तिराहा, जोगीवाला चौक, धर्मपुर चौक, बिंदाल तिराहा, दर्शनलाल चौक, रिस्पना पुल, सर्वे चौक, सहारनपुर चौक आदि।
यहां नो एंट्री के बावजूद धड़ल्ले से हो रही ई-रिक्शा की एंट्री
-घंटाघर से प्रेमनगर वाया चकराता रोड, किशनगर, बल्लूपुर चौक।
-घंटाघर से आइएसबीटी वाया प्रिंस चौक, रेलवे स्टेशन, सहारनपुर चौक, पटेलनगर लालपुल, माजरा।
-घंटाघर से जोगीवाला तक वाया आराघर, धर्मपुर व रिस्पना पुल।
-घंटाघर से जाखन तक वाया राजपुर रोड, दिलाराम बाजार।
-घंटाघर से लाडपुर तक वाया परेड ग्राउंड, सर्वे चौक, सहस्रधारा क्रासिंग।
-रिस्पना पुल से आइएसबीटी वाया कारगी चौक-हरिद्वार बाईपास।
-शिमला बाईपास से बड़ोवाला पुल तक वाया मेहूंवाला, तेलपुर चौक।
आरटीओ प्रवर्तन संदीप सैनी ने बताया कि सरकार के आदेश पर गठित समिति ने शहर में ई-रिक्शा संचालन को 31 मार्ग तय किए हैं। शहर के प्रमुख मार्गों पर इनके संचालन पर प्रतिबंध है। परिवहन विभाग ने पिछले दिनों भी अभियान चलाकर कार्रवाई की थी। जिन रूटों पर प्रतिबंध है, ई-रिक्शा वहां नहीं चल सकते।
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