उत्तराखंड में निगरानी के अभाव में फल-फूल रहे हैं दवा के 'धंधेबाज'
उत्तराखंड में नकली और घटिया दवाओं के धंधेबाज अपने पैर जमा रहे हैं। नकली दवाओं के कारोबार पर नकेल कसने में औषधि नियंत्रण विभाग पूरी तरह फेल साबित हो रहा है।
By Edited By: Published: Tue, 28 May 2019 09:49 PM (IST)Updated: Wed, 29 May 2019 03:15 PM (IST)
देहरादून, जेएनएन। नकली और घटिया दवाओं के धंधेबाज उत्तराखंड में अपने पैर जमा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के खाद्य और औषधि प्रसाधन विभाग ने एक डाटा जारी किया है। जिसमें कहा गया है कि उप्र में पिछले दो साल में पकड़े गए नकली औक घटिया दवा के कुल 492 मामलों में सर्वाधिक 162 मामले उत्तराखंड की कंपनियों के हैं।
दरअसल, उत्तराखंड में औषधि नियंत्रण विभाग पूरी तरह से पंगु बन चुका है। या यूं कहें कि दवा की गुणवत्ता के लिए कोई कारगर सिस्टम अब तक नहीं है। दवाओं के नमूनों की जांच करने के लिए राज्य की इकलौती लैब की सीमाएं हैं तो ड्रग विभाग में स्टाफ की कमी। राज्य के 13 जिलों में वर्तमान में महज चार ड्रग इंस्पेक्टरों की तैनाती है। जाहिर है कि ऐसे में नकली व घटिया दवा बनाने वालों के हौसले बढ़ेंगे ही। हरिद्वार जिले का रुड़की क्षेत्र इस लिहाज से सर्वाधिक संवेदनशील बना हुआ है।
पिछले पांच सालों के अंदर यहा नकली दवा बनाने के 10 से 12 मामले पकड़े जा चुके हैं। खुद केंद्रीय औषधि नियंत्रण विभाग हरिद्वार और रुड़की के फार्मा क्षेत्रों में छापे मारकर नकली दवा बनाने के मामले पकड़ चुका है। राजस्थान की टीम ने भी रुड़की क्षेत्र में एक नकली दवा फैक्ट्री पकड़ी थी। नहीं होती चेकिंग, फायदा उठा रहे लोग रुड़की में बड़े पैमाने पर नकली दवा बनाने का भंडाफोड़ हुआ, पर सरकारी तंत्र इसकी रोकथाम में सक्षम नहीं है। पर्याप्त ड्रग इंस्पेक्टर न होने के कारण विभाग नियमित कामकाज को भी ठीक ढंग से अंजाम नहीं दे पा रहा है।
200 मेडिकल स्टोर और 50 फार्मा कंपनियों पर एक ड्रग इंस्पेक्टर का मानक है। जबकि, स्थिति यह कि सूबे में जिलों की संख्या के बराबर भी ड्रग इंस्पेक्टर नहीं हैं। स्थिति यह कि एक-एक ड्रग इंस्पेक्टर कई-कई जनपद संभाल रहा है। मेडिकल शॉप का भी नहीं होता निरीक्षण ड्रग इंस्पेक्टर के पास दुकानों के निरीक्षण के साथ अन्य कई काम भी होते हैं। लाइसेंस, फार्मा कंपनियों में निरीक्षण, सैंपलिंग समेत न्यायालय संबंधी मामले निपटाना आदि कार्य भी सही तरीके से नहीं हो पाते।
गत वर्षों में विभाग को संजीवनी देने की जुगत जरूर हुई, पर यह अंजाम तक नहीं पहुंची। हाल ही में सरकार ने विभाग का नया ढांचा स्वीकृत किया है। जिसमें ड्रग इंस्पेक्टर के 25 पद स्वीकृत किए गए हैं। जबकि पहले यह संख्या 14 थी। अब देखना यह है कि इस पर अमल कब तक होता है। ल ब का मिलेगा फायदा वर्तमान में प्रदेश में 300 औषधि निर्माता व 150 कॉस्मेटिक आइटम निर्माता फर्म हैं। रुद्रपुर में जो लैब है उसकी स्थिति बेहद खराब है। नकली दवाओं के खिलाफ प्रभावी और त्वरित कार्रवाई के लिए नई लैब की जरूरत है और फार्मा सेक्टर की डिमांड भी।
फरवरी माह में मुख्यमंत्री ने स्वास्थ्य महानिदेशालय में राज्य औषधि परीक्षण प्रयोगशाला की नींव रखी। जिसका निर्माण कार्य शुरू हो गया है। उम्मीद है कि इससे क्वालिटी कंट्रोल में मदद मिलेगी व निगरानी और सर्तकता भी आसान होगी। यहां कर सकते हैं शिकायत यदि किसी व्यक्ति को दवा की गुणवत्ता को लेकर समस्या है तो वह औषधि नियंत्रक, ड्रग इंस्पेक्टर या लाइसेंसिंग एथॉरिटी से शिकायत कर सकता है। इसके अलावा सीएम पोर्टल पर भी शिकायत दर्ज की जा सकती है। यह बात सत्यता से परे है कि उत्तराखंड से नकली व घटिया दवा भेजी जा रही हैं।
औषधि नियंत्रक ताजबर सिंह जग्गी का कहना है कि जिन मामलों की बात की जा रही है उनमें अधिकतर दवाएं मिस ब्रांडेड बताई गई थी। तर्क यह दिया कि इनपर रंग का उल्लेख नहीं है। जबकि नियमत: इसकी अनिवार्यता ही नहीं है। इसका जवाब तभी दे दिया गया था। नकली दवा के केवल छह प्रकरण थे, जिनमें कोर्ट में सुनवाई चल रही है।
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