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जल निकासी की राह थामकर ये कैसा विस्तार, दो दशक में 1000 नई कॉलोनियां; सिर्फ 82 का ही विकास

दून में आज तक भी महज 82 कॉलोनियों को ही मास्टर प्लान के अनुरूप बसाया गया है। अधिकतर कॉलोनियों के सड़क के साथ नाली का निर्माण किया ही नहीं गया। इससे हर मानसून शहर जलमग्न होता है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Wed, 02 Sep 2020 08:34 PM (IST)Updated: Wed, 02 Sep 2020 08:34 PM (IST)
जल निकासी की राह थामकर ये कैसा विस्तार, दो दशक में 1000 नई कॉलोनियां; सिर्फ 82 का ही विकास
जल निकासी की राह थामकर ये कैसा विस्तार, दो दशक में 1000 नई कॉलोनियां; सिर्फ 82 का ही विकास

देहरादून, सुमन सेमवाल। किसी शहर का विस्तार करना उसकी संपन्नता को दर्शाता है। मगर, यह विस्तार प्रकृति की कीमत पर नहीं होना चाहिए। वर्ष 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड बना दून को राजधानी बनाया गया तो किसी ने यह नहीं सोचा होगा कि इस घाटीनुमा शहर को इतनी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। आज हमारा शहर 60 वॉर्ड से बढ़कर 100 वॉर्ड को हो गया है और इस बीच 1000 नई कॉलोनियां अस्तित्व में आ गई। शहर की आबादी भी पांच लाख से बढ़कर 10 लाख को पार कर गई। हम आगे जरूर बढ़े हैं, मगर सुविधाओं के मामले में उतने ही पीछे भी चले गए।

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राज्य गठन के समय दून में जो आधा दर्जन से अधिक नहरें जल निकासी का प्राकृतिक स्रोत थीं, उन्हें सड़क की चौड़ाई बढ़ाने के लिए भूमिगत कर दिया गया। इसके अलावा आबादी के विस्तार के साथ शहर के तमाम नालों पर कब्जे कर उन्हें बाधित कर दिया गया। दून में निर्माण के लिए बेशक मास्टर प्लान पहले से लागू था, मगर उसका पालन किया ही नहीं गया। यही कारण है कि दून में आज तक भी महज 82 कॉलोनियों को ही मास्टर प्लान के अनुरूप बसाया गया है। अधिकतर कॉलोनियों के सड़क के साथ नाली का निर्माण किया ही नहीं गया। इस स्थिति में हर मानसून सीजन में जब शहर जलमग्न होता है तो अनगिनत सवाल तैरने लगते हैं। 

इन्हीं सवालों की थाह लेते हुए दून को जलभराव से निजात दिलाने के लिए वर्ष 2008 में पेयजल निगम ने ड्रेनेज का मास्टर प्लान तैयार किया गया था। इस प्लान को तब स्वीकृति के लिए शासन को भी भेजा गया था। हालांकि, शहर की बेहद बड़ी समस्या को हल करने के लिए शासन के उच्चाधिकारियों को यह राशि अधिक लगी, लिहाजा इस पर कोई त्वरित निर्णय नहीं लिया जा सका। साल-दर-साल जब-जब बारिश में सड़कें जलमग्न हुईं, तब प्लान पर चर्चा जरूर कर ली जाती।

इसी कशमकश के बीच वर्ष 2012 में फिर से प्लान का जिन्न बाहर निकला तो पता चला कि इसकी लागत 450 करोड़ रुपये को पार कर गई है। तब नगर निगम के पार्षदों ने प्लान पर आपत्ति लगा दी और इसमें सुधार लाने को कहा गया। इस संशोधन के बाद भी बात आगे नहीं बढ़ पाई, जबकि अब न सिर्फ प्लान की लागत 900 करोड़ रुपये को पार कर गई, बल्कि पुराने प्लान के अनुरूप अब धरातल पहले जैसा भी नहीं रहा। वर्ष 2008 से लेकर अब तक नालों और नालियों का स्वरूप बदल चुका है और कॉलोनियों के आकार में भी बदलाव आए हैं। इस तरह देखें तो ड्रेनेज मास्टर प्लान अब खुद फाइलों में ही डूबकर लगभग खत्म हो चुका है। 

इस तरह परवान चढ़नी थी योजना

रिस्पना से प्रिंस चौक  

मास्टर प्लान के तहत हरिद्वार रोड पर रिस्पना पुल से लेकर प्रिंस चौक तक दोनों तरफ गहरे व चौड़े नाले बनने थे, ताकि बारिश का पानी सड़कों पर न आ पाए। लोनिवि ने आराघर चौक से सीएमआई चौक और कुछ आगे तक थोड़ा काम किया, पर काम नियोजित तरीकेसे नहीं हो पाया। जबकि धर्मपुर में एलआईसी भवन, धर्मपुर आराघर चौक, सीएमआई चौक के पास, रेसकोर्स चौक से रोडवेज वर्कशाप तक बड़े पैमाने पर जलभराव होता है।

धर्मपुर से मोथरोवाला रोड

प्लान के तहत धर्मपुर से लेकर मोथरोवाला तक नालों का निर्माण होना था, जिससे पानी सड़क पर आने के बजाय नालों के जरिये निकल जाए। इस मार्ग पर धर्मपुर से मोथरोवाला रोड की तरफ ड्रेनेजे सिस्टम पूरी तरह से ध्वस्त है। यहां पर दोनों तरफ की नालियां कहीं पर चोक हैं तो कहीं टूटी हुई हैं।

राजपुर रोड पर सौंदर्यीकरण तक सिमटा काम

यहां पर अलग-अलग विभागों की ओर से कुछ काम किए गए, लेकिन वह मास्टर प्लान की ड्राइंग के हिसाब से कोई काम नहीं हुआ। सिर्फ बजट खर्च कर खानापूर्ति कर दी गई। राजपुर रोड पर ही एनआईवीएच के पास सड़क के दोनों तरफ सौंदर्यीकरण के काम हुए, लेकिन वहां पर पानी की निकासी के लिए कोई इंतजाम नहीं किए गए।

कांवली रोड और सीमाद्वार मार्ग पर खानापूर्ति

ड्रेनेज के मास्टर प्लान के तहत कांवली रोड और सीमाद्वार मार्ग पर भी काम किए जाने थे। इसके अंतर्गत नालों का निर्माण करकेपानी की निकासी को बेहतर बनाया जाना था। यहां इस दिशा में कुछ प्रयास किए गए, लेकिन निर्माण की गुणवत्ता बेहतर न होने के चलते उसका लाभ नहीं मिल पाया।

सहारनपुर रोड पर मास्टर प्लान की अनदेखी

लोनिवि ने यहां पर नाले का निर्माण जरूर किया है, मगर मास्टर प्लान की अनदेखी की गई, जिसके चलते करीब दो दर्जन स्थलों पर ढाल दुरुस्त नहीं है। इसके चलते बारिश में पानी सड़कों पर बहने लगता है। खासकर इस पूरे मानसून सीजन में आइएसबीटी क्षेत्र जलमग्न रहा और लोगों को भारी परेशानी झेलनी पड़ी। 

दून के छह बड़े नालों पर होना था काम

मास्टर प्लान के तहत पहले चरण में दून के छह बड़े नालों पर काम होना था। इनमें मन्नूगंज, चोरखाला, गोविंदगढ़, भंडारी बाग, एशियन स्कूल व रेसकोर्स नाला था। इन नालों के ड्रेनेज सिस्टम को बेहतर करने में 59.48 करोड़ के खर्च का अनुमान लगाया था। ताकि इनमें आसपास के इलाकों के पानी की निकासी को भी जोड़ा जा सके। हालांकि, जब कुछ बात आगे बढ़ी ही नहीं तो इन पर भी काम कहां से हो पाता।

इन इलाकों में भी होना था काम

द्रोणपुरी, अलकनंदा एन्क्लेव, ब्रहमपुरी, चमनपुरी, अमन विहार, इंदिरा कालोनी, इंजीनियर्स एन्क्लेव (काम चल रहा, मगर मास्टर प्लान से इतर), इंदिरा गांधी मार्ग, आनंद विहार, मोहित नगर, रीठामंडी, प्रकाश विहार, साकेत कॉलोनी, राजीव नगर, वनस्थली, ब्योमप्रस्थ, राजीव नगर, केशव विहार, कालिदास रोड, लक्ष्मी रोड, बलवीर रोड, इंदर रोड, करनपुर रोड, त्यागी रोड, रेसकोर्स रोड, अधोईवाला, कारगी, मयूर विहार, गांधी रोड, गोविंदगढ, सालावाला रोड, यमुना कालोनी, पार्क रोड, कौलागढ़ रोड, कैनाल रोड, महारानीबाग आदि।

नोट: इन सभी इलाकों में जलभराव की समस्या रहती है।

एमडीडीए सेटेलाइट से नहीं देख पाया पानी का ढाल कहां-कहां

-जीआइएस आधारित मास्टर प्लान के लिए मंगाए गए थे सेटेलाइट चित्र, पर बात नहीं बढ़ी आगे

-पानी की प्राकृतिक निकासी की राह देखकर एमडीडीए ने भी प्लान तैयार करने का उठाया था बीड़ा

प्लानिंग का आधा ही उतर पाता है धरातल पर 

दून में जितनी प्लानिंग की जाती है, उसका आधा भी धरातल पर उतर पाए तो शहर की सूरत बदल जाएगी। हकीकत में ऐसा हो नहीं पाता है और अधिकतर योजनाएं प्लानिंग से आगे नहीं बढ़ पाती हैं। पेयजल निगम के ड्रेनेज प्लान की डीपीआर इसका उदाहरण है। इसे लगभग डंप कर दिया गया है और अब एमडीडीए भी अपने स्तर पर काम रहा है।

बीते साल एमडीडीए ने नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर, हैदराबाद से सेटेलाइट चित्र मंगाए थे। ताकि इनका अध्ययन कर पता लगाया जा सके कि  दून में पानी की निकासी प्राकृतिक रूप से कहां-कहां हो रही है। इससे यह भी पता लगाया जाना था कि पानी के ऐसे कौन से प्राकृतिक ढाल हैं, जहां निर्माण हो चुके हैं। हो सकता है कि जहां पानी की निकासी का प्राकृतिक ढाल हो, वहां लोगों की निजी भूमि भी हो। भविष्य में ऐसे स्थलों पर निर्माण की भी अनुमति नहीं दी जानी थी। हालांकि, समय के साथ यह योजना भी डंप हो गई है।

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नगर निगम नालों की सफाई करने में फेल

मानसून सीजन से पहले नगर निगम का नाला गैंग और सफाई कर्मियों को कागजों में अलर्ट मोड में ला दिया जाता है। बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं कि नालों की सफाई कर उनकी निकासी दुरुस्त कर दी जाएगी। हकीकत में कूड़ेदारों और घर तक से ढंग से कूड़े का उठान करने में असमर्थ नगर निगम नालों की तरफ ध्यान ही नहीं दे पाता है। शहर के नालों व नालियों का अधिकांश हिस्सा कचरे से चोक पड़ा रहता है। ऐसे में जब बारिश होती है तो पानी कहीं सड़कों तो कहीं कॉलोनियों में घुस जाता है।

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