दून में है मोदी के मिशन को पूरा करने का दम, पढ़िए पूरी खबर
पीएम मोदी ने अपील की थी कि लोगों को सिंगल यूज प्लास्टिक से परहेज करना चाहिए। दून इस मामले में भाग्यशाली है कि यहां मोदी के इस मिशन को पूरा करने की क्षमता है।
देहरादून, जेएनएन। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से अपील की थी कि लोगों को सिंगल यूज प्लास्टिक (विशेषकर पॉलीथिन) से परहेज करना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने पॉलीथिन के बेहतर प्रयोग के लिए स्टार्ट-अप तकनीशियनों से आह्वान किया था कि वह इस दिशा में बेहतर राह तलाशें। दून इस मामले में भाग्यशाली है कि यहां मोदी के इस मिशन को पूरा करने की क्षमता है। क्योंकि यहां के भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (आइआइपी) ने पॉलीथिन से डीजल, पेट्रोल व एलपीजी तैयार करने की तकनीक ईजाद कर रखी है। यह बात और है कि इसके बाद भी दून का प्लास्टिक कचरा नदी-नालों, सड़कों व खाली प्लॉटों में समाकर पर्यावरण के लिए खतरा बन रहा है।
ऐसा नहीं है कि आइआइपी की ओर से इस प्लास्टिक कचरे के बेहतर उपयोग की पहल नहीं की गई है। करीब दो साल पहले आइआइपी की पहल पर नगर निगम देहरादून के अधिकारियों के साथ वार्ता की गई थी। जिसका मजमून यह था कि नगर निगम यदि उन्हें प्लास्टिक कचरा उपलब्ध कराता है तो वह इससे पहले चरण में डीजल तैयार कर सकते हैं। उस दौरान दून से निकलने वाले कचरे में पॉलीथिन का आकलन भी किया गया था। हालांकि, इसके बाद बात आई गई हो गई। यदि यह कवायद परवान चढ़ती तो न सिर्फ प्लास्टिक कचरे का बेहतर तरीके से निस्तारण हो पाता, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी यह बड़ी पहल मानी जाती।
दून के कचरे से बन सकता है 19 हजार लीटर डीजल
दून में रोजाना करीब 300 मीट्रिक टन कचरा निकलता है। इसमें करीब 10 फीसद ऐसा प्लास्टिक कचरा होता है, जिससे डीजल बनाया जा सकता है। यानी कि नगर निगम चाहे तो आइआइपी को हर दिन 30 टन (30 हजार किलो) पॉलीथिन मुहैया करा सकता है। इस कचरे से आइआइपी प्रत्येक दिन करीब 19 हजार लीटर (19 टन) डीजल तैयार कर सकता है। यह बात और है कि वर्तमान में 300 मीट्रिक टन कचरे में से 230 टन का ही उठान हो पाता है और बाकी शहर में ही पड़ा-पड़ा गंदगी को बढ़ाने का काम करता है। इसमें बड़ा हिस्सा प्लास्टिक कचरे का भी है।
जल्द एक टन क्षमता का प्लांट लगाने जा रहा आइआइपी
भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (आइआइपी) अभी प्रयोगशाला स्तर से प्लांट से डीजल आदि तैयार कर रहा है। वहीं, भावी योजना की बात करें तो पेट्रोलियम संस्थान निकट भविष्य में एक टन (एक हजार लीटर) डीजल तैयार करने की क्षमता का प्लांट लगाने जा रहा है। इसके लिए आइआइपी को गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लि. (गेल) ने करीब 13 करोड़ रुपये मुहैया कराए हैं।
प्लास्टिक के डीजल की दर होगी 50 रुपये
दून में डीजल की दर प्रति लीटर करीब 65 रुपये है, जबकि आइआइपी पॉलीथिन से जो डीजल तैयार कर रहा है, उसकी दर बड़े स्तर पर उत्पादन करने पर करीब 50 रुपये आ रही है। संस्थान के वैज्ञानिक बता रहे हैं कि यदि प्लांट की क्षमता पांच टन तक बढ़ाई जाती है तो यह दर 35 रुपये प्रति लीटर तक भी आ सकती है।
देश के प्लास्टिक कचरे के निस्तारण की भी निकल सकती है राह
आइआइपी की तकनीक का लाभ लेकर निजी सेक्टर भी पॉलीथिन से तैयार डीजल-पेट्रोल को तैयार करने के लिए प्लांट लगा सकता है। क्योंकि प्लास्टिक कचरे की स्थिति सभी प्रमुख शहरों में समान है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कुछ समय पहले के आंकड़ों के मुताबिक देश के 60 प्रमुख शहरों में 15 हजार टन (15 लाख किलो) प्लास्टिक कचरा निकलता है। इस कचरे का प्रयोग अगर डीजल आदि तैयार करने में किया जाए तो रोजाना 10 लाख लीटर तेल तैयार किया जा सकता है। ऐसे में दून में न सिर्फ अपने प्लास्टिक कचरे के बेहतर निस्तारण की क्षमता है, बल्कि यहां से पूरे देश के लिए नई राह खुल सकती है। कह सकते हैं कि स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री ने जो अपील की है, उसके अनुरूप दून में उसे पूरा करना का दम है। बस सिर्फ इस मंजिल को हासिल करने के लिए उचित इच्छाशक्ति की जरूरत पड़ेगी और राज्य व केंद्र सरकार के व्यक्तिगत प्रयास के बिना यह संभव नहीं।
प्लास्टिक कचरे से सड़क निर्माण की योजना भी धड़ाम
प्लास्टिक कचरे के उचित निस्तारण के लिए दून ने लोगों को इससे सड़क निर्माण का भी ख्वाब दिखाया। वर्ष 2013 में इंडियन रोड कांग्रेस की सख्ती के बाद वर्ष 2014-15 में कनक चौक से विकास भवन चौक तक किए गए सड़क की मरम्मत में प्लास्टिक कचरे का भी प्रयोग किया गया। इसके बाद लंबी चुप्पी के बाद वर्ष 2017 में तत्कालीन अधिशासी अभियंता देवेंद्र शाह ने इस मुहिम को आगे बढ़ाने की हिम्मत दिखाई। सहसपुर क्षेत्र में विधायक सहदेव पुंडीर के सहयोग से करीब 8.6 किलोमीटर हिस्से के निर्माण में प्लास्टिक के प्रयोग का प्रस्ताव तैयार किया गया। इसके लिए अलग से 70 लाख रुपये का इंतजाम भी किया गया। तब जोर-शोर से यह भी बताया गया था कि प्लास्टिक के प्रयोग से यहां की सड़कों के निर्माण में 2.5 लाख रुपये की भी बचत होगी। साथ ही तय किया गया था कि धीरे-धीरे सभी सड़कों के निर्माण कार्यों में प्लास्टिक का प्रयोग किया जाएगा। लेनिक, यह योजना परवान चढ़ने के बाद वहीं धड़ाम हो गई।
यह भी पढ़ें: ब्रिटिशकाल में बना देहरादून रेलवे स्टेशन, बढ़ता यात्री दबाव; कम पड़ती सुविधाएं
15 रुपये प्रति किलो रखा था मूल्य
सड़क निर्माण में प्लास्टिक की कमी को दूर करने के लिए लोगों से भी प्लास्टिक मुहैया कराने की अपील की गई। इसके लिए प्रति किलो 15 रुपये की दर भी तय की गई थी। तय किया गया था कि पॉलीथिन के साथ ही हर उस प्लास्टिक का प्रयोग सड़क बनाने में किया जाएगा, जिसे हाथ से मोड़ा जा सकता है। बावजूद इसके लोनिवि प्लास्टिक का भरपूर इंतजाम नहीं कर पाया और जल्द यह यह उत्साह भी ठंडा पड़कर अब पूरी तरह गायब हो गया है।
पर्यावरण के लिहाज से भी सुरक्षित है प्लास्टिक कचरे से बना ईंधन
प्लास्टिक कचरे को पहले सुखाया जाता है। इसके बाद इसे सीलबंद भट्टी में डालकर ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में तेज आंच में पकाया जाता है। जिससे प्लास्टिक भाप भाप में परिवर्तित हो जाता है। इस भट्टी से एक पाइप जुड़ा होता है, जो एक पानी के टैंक में जाता है। भाप को इसमें स्टोर किया जाता। भाप टैंक की सतह में जमा पानी को जब छू लेता है तो उसे अन्य टैंक में भेजा जाता है। इस प्रक्रिया में भाप ईंधन में तब्दील हो जाती है। इसे रिफाइन कर डीजल या पेट्रोल बनाया जा सकता है। इस पूरी प्रक्रिया में कोई भी हानिकारक गैस नहीं निकलती है, जिससे यह काम पर्यावरण के लिहाज से भी सुरक्षित है।
यह भी पढ़ें: सड़कों पर आए दिन होने वाले जुलूस-प्रदर्शन से लोग त्रस्त Dehradun News