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हाथियों के लिए जानलेवा साबित हो रहा दून-हरिद्वार रेल ट्रैक, 38 साल में 32 हाथियों की मौत

राजाजी टाइगर रिजर्व के बीच से गुजर रहा रेलवे ट्रैक हाथियों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। वन विभाग के साथ रेलवे में सामंजस्य का अभाव होने के चलते हर साल कई हाथी अपनी जान गवां रहे हैं।

By Sumit KumarEdited By: Published: Sun, 28 Nov 2021 04:43 PM (IST)Updated: Sun, 28 Nov 2021 05:20 PM (IST)
हाथियों के लिए जानलेवा साबित हो रहा दून-हरिद्वार रेल ट्रैक, 38 साल में 32 हाथियों की मौत
राजाजी टाइगर रिजर्व के बीच से गुजर रहा रेलवे ट्रैक हाथियों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है।

दीपक जोशी, रायवाला: राजाजी टाइगर रिजर्व के बीच से गुजर रहा रेलवे ट्रैक हाथियों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। वन विभाग और रेलवे में सामंजस्य का अभाव होने के चलते हर साल कई हाथी अपनी जान गवां रहे हैं। हरिद्वार-देहरादून के बीच स्थित इस ट्रैक पर बीते 38 वर्ष में 32 हाथी काल का ग्रास बन चुके हैं। इसी साल अब तक दो हाथियों ने ट्रेन की चपेट में आकर जान गंवाई है।

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शनिवार को रायवाला के पास मालगाड़ी की चपेट में आकर हाथी की मौत हो गई। इसके अलावा बीते आठ मार्च को लच्छीवाला में एक शिशु हाथी की ट्रेन की चपेट में आने से मौत हुई थी। बीते साल 27 जुलाई को नकरौंदा के पास और फिर पिछले वर्ष ही 21 नवंबर को हर्रावाला के पास रेलवे ट्रैक हाथियों के लिए काल साबित हुआ है। 15 अक्टूबर 2016 को नंदा देवी एक्सप्रेस से रायवाला के पास और 19 अप्रैल 2017 में ज्वालापुर के पास दो टस्कर हाथी ट्रेन से कट गए। फरवरी 2018 में रायवाला के पास ट्रेन की चपेट में आने से हाथियों के झुंड में शामिल शिशु हाथी व 20 मार्च को मादा हाथी की मौत हो गई थी। आंकड़े बताते हैं कि इससे पहले 2001 में चार हाथियों को ट्रेन ने चपेट में लिया था। 1983 में पार्क बनने से लेकर अब तक इस ट्रैक पर 32 हाथियों की जान जा चुकी है। वन विभाग हाथियों की सुरक्षा को लेकर तमाम उपाय करने के दावे तो करता है, लेकिन हकीकत इसके विपरीत है।

गश्ती टीम होती तो टल सकता था हादसा

वैसे तो वन विभाग ने ट्रैक पर गश्त करने के लिए विशेष टीम बनाई हुई है और जिस जगह घटना हुई वहां पर निगरान टावर भी है। रात को किसी न किसी को यहां ड्यूटी पर मौजूद होना चाहिए था, लेकिन ये व्यवस्था दूर तक नजर नहीं आ रही। शुक्रवार रात हुई घटना के वक्त यदि वन विभाग की गश्ती टीम ट्रैक पर होती तो शिशु हाथी को बचाया जा सकता था।

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गलियारे से ही चौकसी गायब

जिस जगह घटना हुई वह हाथियों का परंपरागत वन्यजीव गलियारा है। अब इस गलियारे पर हाथी अंडरपास बन चुका है। ऐसे में हाथियों व अन्य वन्यजीवों का यहां मूवमेंट बढ़ गया है। जाहिर सी बात है कि यहां पर राजाजी पार्क प्रशासन को अतिरिक्त चौकसी बढ़ानी चाहिए, ताकि वन्य जीव सुरक्षित रेल ट्रैक पार कर सकें, लेकिन धरातल पर ऐसा कुछ नहीं है।

दो बजे पहुंची चिकित्सकों की टीम

वन्य जीवों के प्रति वन महकमा कितना संवेदनशील है इस बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि पोस्टमार्टम के लिए वन चिकित्सकों की टीम शनिवार अपराहन दो बजे पहुंची। इसके बाद हाथी को दफनाया जा सका।

गश्त से हटी डब्लूटीआइ

अब तक वन विभाग के साथ वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट आफ इंडिया (डब्ल्यूटीआई) भी गश्त में सहयोग कर रही थी, लेकिन 28 फरवरी 2021 से डब्ल्यूटीआई ने गश्त बंद कर दी। इससे जुड़े वन्य जीव विशेषज्ञ दिनेश पांडे बताते हैं कि जब तक उनकी संस्था के साथ कार्य चला ट्रैक पर पेट्रोलिंग बेहतर रही। वन विभाग ने आगे गश्त के संबंध में उनकी संस्था के पत्रों का कोई जवाब नहीं दिया। उन्होंने बताया कि वन्यजीव गलियारे पर सुरक्षा के इंतजाम उचित नहीं हैं।

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