होटल-रेस्टोरेंट में मिले आधा गिलास पानी, तो नाराज न हों; वजह जानें
होटल रेस्टोरेंट कैंटीन या बार में जाएं और वहां आपको आधा गिलास पानी परोसा जाए तो नाराज न हों बल्कि इसे सराहें। वो प्रतिष्ठान दैनिक जागरण के पानी पैट्रोन्स मुहिम का हिस्सा है।
देहरादून, जेएनएन। अगर आप किसी होटल, रेस्टोरेंट, कैंटीन या बार में जाएं और वहां आपको आधा गिलास पानी परोसा जाए तो नाराज न हों, बल्कि इसे सराहें, क्योंकि वह प्रतिष्ठान दैनिक जागरण के आधा गिलास की 'पानी पैट्रोन्स' मुहिम का हिस्सा है। आधा गिलास पानी परोसने के पीछे पानी की बूंद-बूंद सहेजना मुख्य मकसद है। अब होटल, रेस्तरां, कैंटीन, बार भी इस मुहिम का हिस्सा बन रहे हैं और होटल, रेस्टोरेंट में पानी की एक-एक बूंद व्यर्थ न बहने देने का संकल्प लिया जा रहा है।
इस कड़ी में रविवार को राजपुर रोड स्थित होटल मधुवन भी दैनिक जागरण के 'पानी पैट्रोन्स' मुहिम में शामिल हुआ। यहां हुए जागरूकता कार्यक्रम में बैंक्वेट मैनेजर योगेश कवि ने स्टाफ को ग्राहकों को आधा गिलास पानी परोसने के लिए प्रेरित किया। कहा कि अगर ग्राहक को और पानी की जरूरत हो तो दोबारा पानी परोसें, लेकिन अधिक मात्रा में पानी परोसने से बचा पानी व्यर्थ चला जाता है। इसे लेकर ग्राहकों को भी जागरूक किया। रेस्टोरेंट मैनेजर योगेश अरोड़ा ने कर्मियों को नल खुला न छोड़ने को भी प्रेरित किया। कहा कि अगर प्रतिष्ठान संचालक और ग्राहक अपनी-अपनी जिम्मेदारियों को समझें तो पानी की एक-एक बूंद बचाई जा सकती है।
होटल के पानी को फिल्टर कर सिंचाई कर रहे
मधुबन होटल के संचालक एसपी कोचर नए जल संरक्षण की दिशा में सराहनीय प्रयास किया है। वह होटल में प्रयुक्त होने वाले पानी का दोबारा इस्तेमाल कर सिंचाई कर रहे हैं। इससे वह रोजाना हजारों लीटर पानी बचा लेते हैं।
एसपी कोचर ने बताया कि पिछले कई सालों से वह जल संरक्षण कर रहे हैं। उन्होंने होटल में एक फिल्टर प्लांट लगाया है। इसकी मदद से जो पानी होटल के विभिन्न कार्यों में प्रयुक्त होता है, उसे व्यर्थ में बहाने की जगह फिल्टर किया जाता है। इसके बाद सिंचाई आदि के कार्यों में उसका प्रयोग किया जा रहा है। एसपी कोचर बताते हैं कि बड़े स्तर पर यदि व्यापारिक प्रतिष्ठान ऐसा करें तो पानी की मांग में बड़े स्तर पर कमी लाई जा सकती है और इससे भूजल पर बढ़ते दबाव को भी कम किया जा सकेगा।
पेयजल वितरण सिस्टम में खामी, बन रही परेशानी
गर्मी शुरू होते ही दून के अधिकांश क्षेत्र पेयजल किल्लत से जूझने लगते हैं। भूजल स्तर कम होना, स्रोतों में पानी की कमी व लीकेज तो इसका कारण है ही, पेयजल किल्लत का एक और बड़ा कारण जलसंस्थान का अनियमित जल वितरण व्यवस्था भी है। दून में कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां लाइनों में दिनभर पानी चलता है। जलसंस्थान की ओर से लाइनों में वॉल्व तो लगाए गए हैं, लेकिन कर्मचारियों की कमी के कारण नियमित वॉल्व बंद नहीं हो पाते। जिसके कारण लोगों को पेयजल की किल्लत से जूझने को मजबूर होना पड़ता है।
गर्मी की पानी की समस्या से हर बार दूनवासियों को जूझना पड़ता है। जलसंस्थान के रिपोर्ट की ही माने तो दून के 131 मोहल्ले, 16 बस्तियां और कॉलोनियां ऐसे हैं, जहां लोगों को पानी की कमी से जूझना पड़ता है। मानकों के हिसाब से शहरी क्षेत्र में 135 लीटर पानी प्रति व्यक्ति और ग्रामीण क्षेत्र में 70 लीटर पानी प्रति व्यक्ति की आवश्यकता होती है, लेकिन शहरी क्षेत्र में लोगों को 100 लीटर तो ग्रामीण क्षेत्रों में 50 लीटर ही पानी उपलब्ध हो रहा है। पेयजल किल्लत के कई कारण हैं। इसमें प्रमुख रूप से गर्मियों में भूजजल स्तर का नीचे चला जाना, स्रोतों में पानी का स्राव में कमी आना भी है। लेकिन पेयजल कमी का एक और बड़ा कारण अनियमित पेयजल वितरण का न होना है।
दून में अधिकांश पेयजल आपूर्ति ट्यूबवेल और ओवरहेड टैंकों के माध्यम से की जाती है। यहां से जलसंस्थान पाइप लाइनों के माध्यम से लोगों के घरों तक पानी पहुंचाता है। शहरी क्षेत्रों में हालांकि जलसंस्थान की ओर से पानी की टाइमिंग फिक्स है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में लाइनों में दिनभर पानी चलता रहता है।
पुरानी लाइनों में ज्यादा दिक्कत
दून में कई पेयजल लाइनें वर्षों पुरानी हैं। इनमें से अधिकांश लाइनें सड़क बनने के कारण काफी नीचे चली गई हैं। जिससे इनके वॉल्व भी गायब हो गए हैं। जिससे इन पुरानी लाइनों पर दिनभर पानी चलता है।
जल संस्थान की महाप्रबंध नीलिमा गर्ग कहती हैं कि हर क्षेत्र में पानी की सप्लाई का समय फिक्स है। लेकिन कई लाइनों में लगातार पानी चलता रहता है। जिससे पानी अनावश्यक रूप से बर्बाद होता है। जहां यह समस्या है, उसे दिखाया जाएगा।
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