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डॉक्टरों का एलान, मांगें नहीं मानीं तो सामूहिक इस्तीफा

चिकित्सकों की लंबित मागों पर कार्रवाई न होने से नाराज प्रातीय चिकित्सा स्वास्थ्य सेवा संघ ने आदोलन का एलान कर दिया है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 30 Aug 2020 06:52 PM (IST)Updated: Sun, 30 Aug 2020 06:52 PM (IST)
डॉक्टरों का एलान, मांगें नहीं मानीं तो सामूहिक इस्तीफा
डॉक्टरों का एलान, मांगें नहीं मानीं तो सामूहिक इस्तीफा

जागरण संवाददाता, देहरादून: चिकित्सकों की लंबित मागों पर कार्रवाई न होने से नाराज प्रातीय चिकित्सा स्वास्थ्य सेवा संघ ने आदोलन का एलान कर दिया है। प्रदेशभर के सरकारी अस्पतालों में तैनात चिकित्सक एक से सात सितंबर तक काली पट्टी बाधकर काम करेंगे। इसके बाद भी मागों पर कार्रवाई नहीं हुई तो आठ सितंबर को सामूहिक त्यागपत्र देंगे।

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संगठन के प्रांतीय अध्यक्ष डॉ. नरेश नपलच्याल ने कहा कि कोरोनाकाल में चिकित्सक न सिर्फ अपनी, बल्कि परिवार की चिंता भुलाकर पूरी निष्ठा से काम कर रहे हैं। अन्य राज्यों में जहा उन्हें प्रोत्साहन राशि दी जा रही है, वहीं उत्तराखंड में हर माह एक दिन का वेतन काटा जा रहा है। इससे चिकित्सकों में रोष है। उन्होंने माग की है कि वेतन कटौती का आदेश निरस्त कर सरकार चिकित्सकों को प्रोत्साहन राशि/जोखिम भत्ता दे। ऊधमसिंह नगर के जसपुर क्षेत्र में एक गली को कंटेनमेंट जोन घोषित करने पर विधायक आदेश चौहान द्वारा प्रभारी चिकित्साधिकारी से की गई अभद्रता की उन्होंने कड़ी निंदा की। विधानसभा अध्यक्ष से उन पर कार्रवाई की माग की।

महासचिव डॉ. मनोज वर्मा ने कहा कि संगठन की कार्यकारिणी के शपथ ग्रहण में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पीजी कर रहे चिकित्सकों को पूरा वेतन देने की घोषणा की थी, लेकिन इस पर अभी तक अमल नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि इस घोषणा पर जल्द कार्रवाई की जाए। चिकित्सालयों में प्रशासनिक हस्तक्षेप का भी उन्होंने विरोध किया। डॉ. मनोज वर्मा ने कहा कि तहसीलदार, पटवारी आदि को नामित कर जिलाधिकारी अस्पतालों के निरीक्षण के लिए भेज रहे हैं। इससे चिकित्सकों के सम्मान को ठेस पहुंची है। इसके साथ ही कार्यो में व्यवधान भी उत्पन्न हो रहा है। उन्होंने कहा कि विभागीय/प्रशासनिक जाच में अस्पताल में हुई मौत का ठीकरा भी अक्सर चिकित्सक के सिर फोड़ा जाता है। इसे चिकित्सक की लापरवाही बताया जाता है, जबकि लगभग सभी मामलों में इसका कारण संसाधनों का अभाव होता है। बिना वजह चिकित्सकों को दोषी ठहराने की परिपाटी भी जल्द बंद होनी चाहिए।


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