रोगमुक्त झंगोरे को मिली राष्ट्रीय स्तर पर पहचान, रानीचौरी वानिकी महाविद्यालय की बड़ी उपलब्धि
पीआरबी903 नाम के झंगोरे के जननद्रव्य (बीज) को वानिकी महाविद्यालय रानीचौरी ने राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो में रजिस्टर्ड करवाया है। छह साल के शोध के बाद महाविद्यालय में शोध परियोजना अधिकारी डा. लक्ष्मी रावत ने यह उपलब्धि हासिल की है।
अनुराग उनियाल, नई टिहरी। वानिकी महाविद्यालय रानीचौरी ने पीआरबी903 नाम के झंगोरे के जननद्रव्य (बीज) को राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो में रजिस्टर्ड करवाया है। छह साल के शोध के बाद महाविद्यालय में शोध परियोजना अधिकारी डा. लक्ष्मी रावत ने यह उपलब्धि हासिल की है। यह जननद्रव्य झंगोरे की सबसे खतरनाक कंडुवा बीमारी से पूरी तरह मुक्त है और इससे अब झंगोरे की उन्नत प्रजातियां भी विकसित की जा सकेंगी। वानिकी महाविद्यालय में अखिल भारतीय समन्वित मोटा अनाज शोध परियोजना के तहत शोध कार्य किए जाते हैं।
शोध परियोजना अधिकारी डा. लक्ष्मी रावत ने बताया कि देश भर के 22 अलग-अलग अति संवेदनशील केंद्रों पर उन्होंने छह साल तक पीआरबी903 नाम के झंगोरे की कंडुवा रोग को लेकर प्रतिरोधक क्षमता पर शोध किया, जिसके बाद उन्हें अब सफलता मिली है। झंगोरा पीआरबी 903 जननद्रव्य पूर्ण रूप से कंडुवा रोग मुक्त है। उत्तराखंड में झंगोरें में सबसे ज्यादा कंडुवा बीमारी लगती है।
इस बीमारी में बालियों में काले रंग के बीजाणु लग जाते हैं और झंगोरा काला हो जाता है। इससे लगभग 60 प्रतिशत तक फसल का नुकसान होता है। साथ ही पिसाई के वक्त यह झंगोरे में मिल जाता है और उसका सही दाम काश्तकारों को नहीं मिल पाता, लेकिन नए जननद्रव्य पीआरबी903 से अब झंगारे की उन्नत प्रजातियों को विकसित किया जा सकेगा। पीआरबी903 की बालियां काले रंग की होती हैं और एक हेक्टेयर में लगभग 18 से 20 क्विंटल तक इसकी पैदावार हो सकेगी।
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डा. रावत ने बताया कि भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद ने भी पीआरबी903 जननद्रव्य को कंडुवा रोग मुक्त पाया है। डा. लक्ष्मी रावत की इस उपलब्धि पर भरसार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अजीत कनार्टक, निदेशक शोध प्रोफेसर अमोल वशिष्ठ, निदेशक शिक्षा प्रोफेसर अरविन्द बिजल्वाण और वानिकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता प्रोफेसर वीपी खंडूड़ी ने इसकी सराहना की है और कहा कि इससे शोध कार्य में बहुत मदद मिलेगी।
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