Move to Jagran APP

फाइलों में ही 'डूब' गया देहरादून का 13 साल पुराना ड्रेनेज प्लान

दून को अस्थायी राजधानी बने करीब 21 साल हो चुके हैं लेकिन सुनियोजित विकास के नाम पर हर मोर्चे पर हमारे अधिकारी लीपापोती से आगे नहीं बढ़ पाए हैं। सुनियोजित विकास के लिए जिम्मेदार मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) आज तक अपना ठोस मास्टर प्लान लागू नहीं कर पाया।

By Sumit KumarEdited By: Published: Mon, 19 Jul 2021 07:10 AM (IST)Updated: Mon, 19 Jul 2021 07:10 AM (IST)
फाइलों में ही 'डूब' गया देहरादून का 13 साल पुराना ड्रेनेज प्लान
वर्ष 2008 में बना ड्रेनेज प्लान आज खुद फाइलों में कहीं डूब गया है।

जागरण संवाददाता, देहरादून: दून को अस्थायी राजधानी बने करीब 21 साल हो चुके हैं, लेकिन सुनियोजित विकास के नाम पर हर मोर्चे पर हमारे अधिकारी लीपापोती से आगे नहीं बढ़ पाए हैं। सुनियोजित विकास के लिए जिम्मेदार मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) आज तक अपना ठोस मास्टर प्लान लागू नहीं कर पाया। एमडीडीए की नाक के नीचे बिना पानी की निकासी वाली कालोनियां खड़ी होती रहीं। नगर निगम अपने नाले-खाले नहीं बचा पाया और सरकारों के लिए दून का विकास कोई मुद्दा नहीं रहा। जब-जब मानसून सीजन आता है, तब-तब जलमग्न सड़कों और गलियों के बीच ये सवाल तैरने लगते हैं। इनमें एक सवाल जो सबसे अधिक बार उठता रहा है, वह है दून का ड्रेनेज मास्टर प्लान। वर्ष 2008 में बना ड्रेनेज प्लान आज खुद फाइलों में कहीं डूब गया है और अब सिंचाई विभाग नए सिरे से इस पर काम कर रहा है। हालांकि, प्लान पर कितना काम हुआ, सिंचाई विभाग के पास भी अभी इसका ठोस जवाब नहीं है।

loksabha election banner

सिंचाई विभाग के प्रमुख अभियंता मुकेश मोहन का कहना है कि प्रदेश के छह शहरों (ऋषिकेश, हरिद्वार, भगवानपुर, रुड़की, हल्द्वानी) के साथ दून का भी ड्रेनेज मास्टर प्लान बनाया जा रहा है। भगवानपुर व रुड़की का प्लान तैयार किया जा चुका है। दून की स्थिति को देखते हुए यहां का प्लान जल्द तैयार करने को कहा गया है। इस पर करीब छह माह पहले काम शुरू किया गया था, कोरोना संक्रमण के चलते विलंब हो गया। हालांकि, अब इसे अंतिम रूप देकर धरातलीय काम शुरू करा दिया जाएगा।

300 करोड़ के प्लान की लागत 950 करोड़ पार होने पर किए हाथ खड़े

दून को जलभराव से निजात दिलाने के लिए पेयजल निगम ने वर्ष 2008 में मास्टर प्लान तैयार किया था। करीब 300 करोड़ रुपये के इस प्लान को स्वीकृति के लिए शासन के पास भेजा भी गया था। लेकिन, शहर की सबसे बड़ी समस्या को हल करने के लिए उच्चाधिकारियों को यह धनराशि कुछ ज्यादा लगी, लिहाजा इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। यह अलग बात है कि साल दर साल जब-जब बारिश में सड़कें तरणताल बनीं तो इस प्लान पर चर्चा जरूर हुई। वर्ष 2012 में फिर से प्लान का जिन्न बाहर निकला तो पता चला कि इसकी लागत 450 करोड़ रुपये को पार कर गई है। तब नगर निगम के पार्षदों ने प्लान पर आपत्ति जताकर इसमें सुधार की मांग की। इसके बाद भी बात आगे नहीं बढ़ पाई। साल-दर-साल लागत बढ़ती चली गई और जब पता चला कि पुराने प्लान पर अमल के लिए 950 करोड़ रुपये चाहिए तो प्रस्ताव को पूरी तरह ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। फिर कई साल पुराना प्लान नई बसागत के हिसाब से फ्लाप भी साबित हो सकता था।

इस तरह परवान चढऩी थी योजना

रिस्पना से प्रिंस चौक

मास्टर प्लान के तहत हरिद्वार रोड पर रिस्पना पुल से प्रिंस चौक तक दोनों तरफ गहरे व चौड़े नाले बनने थे, ताकि बारिश का पानी सड़कों पर न आए। लोनिवि ने आराघर चौक से सीएमआइ चौक तक थोड़ा-बहुत काम किया, लेकिन नियोजित तरीकेसे नहीं। जबकि धर्मपुर में एलआइसी भवन, आराघर चौक, सीएमआइ चौक के पास, रेसकोर्स चौक से रोडवेज वर्कशाप तक बड़े पैमाने पर जलभराव होता है।

धर्मपुर से मोथरोवाला रोड

धर्मपुर से मोथरोवाला तक ड्रेनेज सिस्टम पूरी तरह ध्वस्त है। यहां सड़क के दोनों तरफ बनी नालियां कहीं चोक तो कहीं क्षतिग्रस्त हैैं। इस सड़क पर नालों का निर्माण होना था।

कांवली व सीमाद्वार रोड पर खानापूर्ति

कांवली और सीमाद्वार रोड पर भी नाला निर्माण समेत दूसरे कार्य किए जाने थे। यहां इस दिशा में कुछ प्रयास किए भी गए, लेकिन निर्माण की गुणवत्ता बेहतर न होने के चलते उसका लाभ नहीं मिल पाया।

सहारनपुर रोड पर प्लान की अनदेखी

लोनिवि ने यहां पर नाले का निर्माण जरूर किया है, मगर मास्टर प्लान की अनदेखी की गई। करीब दो दर्जन स्थलों पर ढाल दुरुस्त नहीं है। इस कारण बारिश में पानी सड़कों पर बहने लगता है। इस बार मानसून सीजन में आइएसबीटी क्षेत्र अधिकतर जलमग्न ही है। ऐसे में आमजन को भारी परेशानी झेलनी पड़ रही है।

छह बड़े नालों पर होना था काम

मास्टर प्लान के तहत पहले चरण में दून के छह बड़े नालों पर काम होना था। इनमें मन्नूगंज, चोरखाला, गोविंदगढ़, भंडारी बाग, एशियन स्कूल व रेसकोर्स नाला शामिल था। इन नालों के ड्रेनेज सिस्टम को बेहतर करने में 59.48 करोड़ के खर्च का अनुमान लगाया गया था।

यह भी पढ़ें- उत्तराखंड में इंटर्न चिकित्सकों के स्टाइपेंड में बढ़ोतरी, 7500 रुपये प्रतिमाह से बढ़ाकर किया गया 17 हजार

इन इलाकों में भी होना था काम

द्रोणपुरी, अलकनंदा एनक्लेव, ब्रह्मपुरी, चमनपुरी, अमन विहार, इंदिरा कॉलोनी, इंजीनियर्स एनक्लेव, इंदिरा गांधी मार्ग, आनंद विहार, मोहित नगर, रीठामंडी, प्रकाश विहार, साकेत कालोनी, राजीव नगर, वनस्थली, व्योमप्रस्थ, राजीव नगर, केशव विहार, कालीदास रोड, लक्ष्मी रोड, बलवीर रोड, इंदर रोड, करनपुर रोड, त्यागी रोड, रेसकोर्स रोड, अधोईवाला, कारगी, मयूर विहार, गांधी रोड, गोविंदगढ़, सालावाला रोड, यमुना कालोनी, पार्क रोड, कौलागढ़ रोड, कैनाल रोड, महारानीबाग आदि। इन सभी इलाकों में जलभराव की समस्या रहती है। इंजीनियर्स एनक्लेव में ड्रेनेज सिस्टम पर काम हो रहा है, मगर मास्टर प्लान से इतर।

कालोनियां बसती रहीं, एमडीडीए सोता रहा

वर्ष 2000 के बाद दून मेें जो कालोनियां विकसित हुई हैैं, उनमें से 95 फीसद से अधिक में नालियां ही नहीं बनी हैैं। कहने को तो बिना लेआउट पास कराए कहीं भी प्लाटिंग कर कालोनियां नहीं बसाई जा सकती हैैं, मगर इस पर प्रभावी कार्रवाई तब हो पाती, जब एमडीडीए मुस्तैद होकर अपनी जिम्मेदारी निभाता। प्रापर्टी डीलर एक-एक इंच जमीन और लेआउट शुल्क बचाने के लिए मनमर्जी से प्लाट काटते रहे और इसकी वसूली एमडीडीए घर बनाने वालों से सब-डिवीजनल चार्ज के रूप में करता रहा। हालात यह हैं कि बिना जल निकासी वाली कालोनियों में बरसात में भारी मुश्किल पैदा हो जाती है।

यह भी पढ़ें-उत्तराखंड: ऊर्जा विभाग में एक बार फिर उधड़ने जा रही घोटालों की परतें, मंत्री हरक सिंह ने फाइलें कीं तलब


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.