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देहरादून : हिमाचल सीमा से सटे टोंस वन प्रभाग में किया घुरड़ का शिकार, आरोपितों पर पुलिस मेहरबान

दो घुरड़ (हिरन की प्रजाति) का शिकार कर ले जा रहे पांच आरोपितों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। इनमें चार आरोपित हिमाचल प्रदेश के रोहडू (शिमला) और एक उत्तराखंड के मोरी उत्तरकाशी का निवासी है। पुलिस ने सभी को थाने से ही जमानत दे दी।

By Nirmala BohraEdited By: Published: Sat, 21 May 2022 08:52 AM (IST)Updated: Sat, 21 May 2022 08:52 AM (IST)
देहरादून : हिमाचल सीमा से सटे टोंस वन प्रभाग में किया घुरड़ का शिकार, आरोपितों पर पुलिस मेहरबान
पांच आरोपितों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया

संवाद सूत्र, देहरादून: हिमाचल सीमा से सटे टोंस वन प्रभाग में दो घुरड़ (हिरन की प्रजाति) का शिकार कर ले जा रहे पांच आरोपितों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। उनके पास के टेलीस्कोप लगी लाइसेंसी राइफल और दस कारतूस बरामद हुए। इनमें चार आरोपित हिमाचल प्रदेश के रोहडू (शिमला) और एक उत्तराखंड के मोरी उत्तरकाशी का निवासी है। पुलिस ने सभी को थाने से ही जमानत दे दी।

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गढ़वाल परिक्षेत्र के डीआइजी करन सिंह नगन्याल सात साल से कम सजा वाला अपराध होने का हवाला देकर थाने से ही जमानत देने की बात कह रहे हैं। जबकि वन विभाग के अधिकारियों ने इसे गैर जमानती अपराध करार देकर ऐसे मामलों में थाने से जमानत नहीं देने का प्रविधान होने की बात कही है। आरोपितों की थाने से जमानत को लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं।

त्यूणी के थानाध्यक्ष कृष्ण कुमार सिंह के अनुसार गुरुवार रात वह टीम के साथ गश्त पर थे। इस दौरान त्यूणी-मोरी हाईवे पर दो कारों को रोककर तलाशी ली तो इनकी डिग्गी से शिकार कर लाए जा रहे दो घुरड़ बरामद हुए। पूछताछ में आरोपितों ने बताया कि वह हिमाचल से त्यूणी के रास्ते टोंस वन प्रभाग के भासला-नुणागाड़ जंगल में शिकार करने गए थे। शिकार लेकर वह वापस हिमाचल लौट रहे थे।

थानाध्यक्ष ने बताया कि आरोपितों की पहचान रोहड़ू हिमाचल प्रदेश निवासी नरेश, सुनील, दिनेश, लेखराज व मोरी उत्तरकाशी उत्तराखंड निवासी कुशाल रावत के रूप में हुई है। इन सभी के विरुद्ध वन्यजीव संरक्षण अधिनियम व आम्र्स एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर किया गया है। आरोपितों से बरामद घुरड़ के शव का पशुपालन विभाग की मदद से पोस्टमार्टम कराया गया। बताया कि आरोपितों को थाने से ही जमानत दे दी गई है।

पुलिस की भूमिका पर उठ रहे सवाल

इस मामले में पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं। चाकू अथवा शराब के दो पव्वों के साथ गिरफ्तारी जैसे मामूली अपराधों में आरोपितों को सलाखों के पीछे भेजने के लिए तत्पर दिखने वाली पुलिस की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। इस तरह के छोटे से मामलों में कानून का हवाला देकर कोर्ट से जमानत कराने की सलाह देने वाली पुलिस ने दो वन्य जीवों का शिकार करने वालों को थाने से जमानत देकर क्यों छोड़ दिया, इसको लेकर तरह-तरह की चर्चाएं हैं। सवाल यह भी उठ रहा है कि आखिरकार पुलिस की ऐसी क्या मजबूरी थी, जो उसे संगीन मामले में थाने से आरोपितों को जमानत पर छोडऩा पड़ा।

सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के अनुसार जिन मुकदमों में सात वर्ष से कम सजा होती है उनमें आरोपितों को थाना स्तर से ही जमानत दी जा सकती है। ऐसे मामलों में आरोपितों को नोटिस देकर भेजा जाता है। पुलिस जब चाहे उन्हें तलब कर सकती है। 

- करन सिंह नगन्याल, पुलिस उप महानिरीक्षक गढ़वाल परिक्षेत्र

पुलिस टीम के स्तर से वन्य जीव शिकार पकड़े जाने के मामले में वन विभाग की टीम को शिनाख्त के लिए बुलाया जाता है। आरोपित के विरुद्ध वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की धारा के तहत मुकदमा पंजीकृत करने के बाद अनिवार्य रूप से उसे न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना होता है। वन्य जीव के शिकार करने के मामले में थाने से जमानत देने का कोई प्रविधान नहीं है। वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम के तहत यह गैर जमानत की श्रेणी का अपराध है।

- पराग धकाते, मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक, उत्तराखंड 


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