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देहरादून: रिश्वत के मामले में सबूतों का अभाव, बाल विकास परियोजना अधिकारी बरी; जानें पूरा मामला

बाल विकास परियोजना अधिकारी मंजू कनौजिया को रिश्वत के मामले में सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है। बचाव पक्ष के अधिवक्ता मनोज कुमार ने बताया कि 19 सितंबर 2014 का है। तो चलिए आपको बताते हैं पूरा मामला क्या है...

By Raksha PanthriEdited By: Published: Fri, 24 Dec 2021 10:35 AM (IST)Updated: Fri, 24 Dec 2021 10:35 AM (IST)
देहरादून: रिश्वत के मामले में सबूतों का अभाव, बाल विकास परियोजना अधिकारी बरी; जानें पूरा मामला
देहरादून: रिश्वत के मामले में सबूतों का अभाव, बाल विकास परियोजना अधिकारी बरी।

जागरण संवाददाता, देहरादून। विशेष न्यायाधीश सतर्कता मनोज गब्र्याल की अदालत ने बाल विकास परियोजना अधिकारी मंजू कनौजिया को रिश्वत के मामले में सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है। बचाव पक्ष के अधिवक्ता मनोज कुमार ने बताया कि 19 सितंबर 2014 को विकास खंड सहसपुर के अंतर्गत केहरी गांव द्वितीय की आंगनबाड़ी कार्यकर्त्ता कविता की शिकायत पर विजिलेंस ने मंजू कनौजिया को गिरफ्तार किया था।

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सहसपुर की बाल विकास परियोजना अधिकारी मंजू कनौजिया पर आरोप था कि उनके मौखिक आदेशों पर 11 और 19 फरवरी 2014 को शाम छह बजे विभाग के एक कर्मचारी ने आंगनबाड़ी केंद्र का निरीक्षण किया। इस दौरान आंगनबाड़ी केंद्र केहरी गांव द्वितीय की कार्यकर्त्ता कविता के अनुपस्थित मिलने पर उन्हें नोटिस दिया गया। इसमें कहा गया कि वह केंद्र का संचालन सही ढंग से नहीं कर रही हैं। इसलिए उसकी मानदेय तैनाती समाप्त करने की कार्रवाई की जाती है। 19 मार्च को कविता ने नोटिस का उत्तर दिया, जिस पर जिला कार्यक्रम अधिकारी ने निरीक्षण करते हुए मामला झूठा पाया। इसके बाद कविता को पुन: बहाल कर दिया गया।

कविता का फरवरी से अगस्त तक का 38 हजार रुपये मानदेय भुगतान होना था, लेकिन उसके खाते में सात अगस्त को केवल आठ हजार 419 रुपये का ही भुगतान किया गया। कविता का आरोप था कि इसके बाद करीब 30 हजार रुपये के मानदेय भुगतान को कनौजिया ने उससे 15 हजार रुपये रिश्वत की मांग की। जिस पर कविता ने असमर्थता जताई।

उधर, मंजू कनौजिया ने कोर्ट में अपना पक्ष रखा था कि रंजिश के चलते उन्हें फंसाया गया। इस मामले में विजिलेंस की ओर से कोर्ट में 12 गवाह पेश किए गए। न्यायाधीश ने आदेश जारी किया कि मंजू कन्नौजिया के खिलाफ आरोप सिद्ध न हो पाने के कारण संदेह का लाभ देते हुए उन्हें दोषमुक्त किया जाता है।

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