रूढ़ियों को तोड़ रही हैं बेटियां, चकराता में बेटी ने पिता की चिता को दी मुखाग्नि
रूढ़ियों को तोड़ बेटियां आगे बढ़ रही हैं। चकराता क्षेत्र में पहली बार एक बेटी ने अपने पिता की चिता को मुखाग्नि दी।
चकराता, जेएनएन। जहां समाज में आज भी कई लोग बेटियों को बोझ मानते हैं और भ्रूण हत्या तक करने में गुरेज नहीं करते हैं। वहीं, कुछ ऐसी बेटियां भी हैं जो कुरीतियों को तोड़ आगे बढ़ रही हैं। चकराता में एक बेटी ने पिता की चिता को मुखाग्नि देकर समाज की उस कुरीति को तोड़ा है, जिसमें बेटा ही मुखाग्नि देने का अधिकार रखता है। जब बेटी ने अपने पिता की चिता की मुखाग्नि दी तो हर किसी की आंखें भर आयीं।
आपको बता दें कि कि चकराता कैंट के सप्लाई इलाके में एक छोटा सा रेस्टोरेंट और किराने की दुकान चलाने वाले 46 वर्षीय दिल बहादुर थापा की चार बेटियां ज्वाला (22 वर्ष), प्रतिभा (18 वर्ष), प्रतीक्षा (15 वर्ष) व प्राची (7 वर्ष) हैं। 13 नवंबर को दिल बहादुर की तबीयत खराब होने पर आनन-फानन परिजनों ने उन्हें देहरादून स्थित महंत इंद्रेश अस्पताल में भर्ती कराया। लेकिन उनके पेट और अन्य अंगों में संक्रमण फैलने से एक माह से ज्यादा चले इलाज के बाद शनिवार शाम दिल बहादुर थापा की मौत हो गयी।
पिता की मौत से चारों बेटियों और मृतक की पत्नी की आंखों के सामने अंधेरा छा गया। रविवार को शव चकराता लाया गया। कोई बेटा और नजदीकी रिश्तेदार न होने पर दिल बहादुर थापा की चिता को मुखाग्नि देने की बात चली तो उनकी दूसरे नंबर की बेटी प्रतिभा ने पिता को मुखाग्नि देने की बात कही। जिस पर काफी विचार करने के बाद परिजनों ने हामी भरी।
रविवार सुबह चारों बेटियों ने अपने पिता की अर्थी को नम आंखों के साथ घर से विदा किया। चकराता कैंट स्थित मुक्ति धाम पहुंची शवयात्रा के बाद बेटी ने पिता की चिता को मुखाग्नि देकर एक सामाजिक कुरीति पर प्रहार किया। यह देखकर सभी लोगों की आंखें भर आईं।
श्मशान घाट में मौजूद हर किसी ने युवती के इस साहस पर कहा कि समाज में जहां लोग बेटियों को बोझ मानते हैं, वहीं पिता की चिता को मुखाग्नि देकर बेटी ने बेटा होने का हक अदा किया है। चकराता में यह पहला मौका है जब किसी लड़की ने अपने पिता को मुखाग्नि दी है। मृतक की पत्नी मनोरमा चकराता स्थित सैन्य संस्थान में चतुर्थ श्रेणी के पद पर कार्यरत हैं।
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