जंगल की आग में कीट-पतंगों की क्षति का भी होगा आकलन
उत्तराखंड में जंगलों में पारिस्थितिकी के संरक्षण में अहम भूमिका निभाने वाले कीट-पतंगों समेत छोटे जीवों को फायर सीजन में पहुंचने वाली क्षति का भी आकलन किया जाएगा।
देहरादून, राज्य ब्यूरो। 71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में जंगलों में पारिस्थितिकी के संरक्षण में अहम भूमिका निभाने वाले कीट-पतंगों समेत छोटे जीवों को फायर सीजन में पहुंचने वाली क्षति का भी आकलन किया जाएगा। पहली बार इस बिंदु को जंगल की आग से होने वाले नुकसान में शामिल करने पर विचार किया जा रहा है। प्रमुख मुख्य वन संरक्षक जय राज के अनुसार इस संबंध में मानक तैयार करने पर गंभीरता से मंथन चल रहा है।
प्रदेश के जंगलों में हर बार ही फायर सीजन (15 फरवरी से मानसून आने तक की अवधि) के दौरान बड़े पैमाने पर वन संपदा को नुकसान पहुंचता है। बीते एक दशक के आंकड़ों पर ही गौर करें तो हर साल औसतन दो हजार हेक्टेयर जंगल को नुकसान पहुंच रहा है। आग से पेड़ों, झाडिय़ों, वनस्पतियों और प्लांटेशन की क्षति का आकलन तो होता है, लेकिन कीट-पतंगे, सांप-बिच्छू समेत अन्य छोटे जीवों को भी बड़े पैमाने पर हानि पहुंचती है और इनका आकलन नहीं हो पाता।
अब जंगल की पारिस्थितिकी के संरक्षण में अहम भूमिका निभाने वाले इन छोटे जीवों की क्षति को भी जंगल की आग के नुकसान में शामिल करने की तैयारी है। इससे पता चल सकेगा कि इन्हें कितना नुकसान पहुंचा है। प्रमुख मुख्य वन संरक्षक जयराज बताते हैं कि जंगल की आग से क्षति के मानकों में इस अहम पहलू को शामिल करने पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। इसका क्या मैकेनिज्म होगा और किस तरह से छोटे जीवों की क्षति का आकलन किया जाएगा, इस पर मंथन चल रहा है। उन्होंने बताया कि मानक तैयार होते ही इस बिंदु को शामिल कर छोटे जीवों को पहुंचने वाले नुकसान का भी आकलन किया जाएगा।
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इस बार अब तक सुकून में विभाग
फायर सीजन में जंगलों के धधकने से परेशान रहने वाला वन महकमा इस मर्तबा अभी तक सुकून में है। असल में 15 फरवरी को फायर सीजन शुरू होने के साथ ही जंगलों के धधकने का क्रम शुरू हो जाता है, जो मानसून के आने तक बना रहता है। ऐसे में बेबस वन महकमा जंगलों की आग पर नियंत्रण को आसमान की ओर ताकता रहता है। इस बार अभी तक नियमित अंतराल में हो रही वर्षा-बर्फबारी से जंगलों में अच्छी-खासी नमी बनी है। यही वजह है कि अभी तक जंगल की आग की कोई घटना नहीं हुई है। जंगलों में जिस तरह से नमी बनी है, उससे अप्रैल तक सुकून बना रहने की उम्मीद जताई जा रही है।
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