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हरदम खामोश, सपाट चेहरे के साथ ही कैमरे में कैद हुए नए मुख्य सचिव, पहली बार नजर आए मुस्कुराते

हरदम खामोश सपाट चेहरा ही कैमरे में कैद हुआ। वह तो शुक्र है सूचना विभाग का पता नहीं कहां से तलाश कर जनाब की खिलखिलाती तस्वीर जुटा लाया।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Mon, 03 Aug 2020 04:39 PM (IST)Updated: Mon, 03 Aug 2020 04:39 PM (IST)
हरदम खामोश, सपाट चेहरे के साथ ही कैमरे में कैद हुए नए मुख्य सचिव, पहली बार नजर आए मुस्कुराते
हरदम खामोश, सपाट चेहरे के साथ ही कैमरे में कैद हुए नए मुख्य सचिव, पहली बार नजर आए मुस्कुराते

देहरादून, विकास धूलिया। इस हफ्ते उत्तराखंड शासन को नया मुखिया मिल गया। मुखिया, यानी मुख्य सचिव। 1987 बैच के आइएएस ओमप्रकाश सूबे के 16 वें मुख्य सचिव के रूप में कार्यभार संभाल चुके हैं। मुख्यमंत्री से नजदीकी और वरिष्ठता क्रम में राज्य में सबसे ऊपर होने के कारण उनकी ताजपोशी पहले से तय मानी जा रही थी। हालांकि बीच में सियासी गलियारों में यह चर्चा भी रही कि कोई दिल्ली से भी आ सकता है। अब जैसे अपने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र का स्वभाव है, उन्होंने सीधा रास्ता ही चुना। यह सब तो ठीक, लेकिन दिक्कत तब आई, जब मीडिया ने ओमप्रकाश की मौके के मुनासिब तस्वीर तलाशनी शुरू की। 20 साल से सूबे में हैं, मगर क्या मजाल कभी कोई मुस्कराती तस्वीर उनकी कहीं दिखी हो। हरदम खामोश, सपाट चेहरा ही कैमरे में कैद हुआ। वह तो शुक्र है सूचना विभाग का, पता नहीं कहां से तलाश कर जनाब की खिलखिलाती तस्वीर जुटा लाया।

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हनक के फेर में कराई किरकिरी

सियासत का चलन भी अजब-गजब है। हरिद्वार के सांसद और केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक इन दिनों सुर्खियों में हैं देश की नई शिक्षा नीति को लेकर, तो सूबे के शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय की चर्चा उनके लाइजन अफसर के सस्पेंड होने के कारण हो रही है। दरअसल, लाइजन अफसर एसपीएस नेगी हाल में तब चर्चा में आए, जब उत्तरकाशी के एक शिक्षा अधिकारी ने उन पर बदसलूकी का आरोप लगाया। शासन ने जांच कराई तो पता चला कि लोक निर्माण विभाग में सहायक अभियंता नेगी ने मंत्री का लाइजन अफसर बनने को न तो अनापत्ति प्रमाणपत्र लिया और न विभाग को इसकी सूचना दी। उन्हें यह दायित्व केवल मंत्री के विधानसभा क्षेत्र के लिए दिया गया था, लेकिन हनक में मंत्री के साथ जा पहुंचे उत्तरकाशी। शासन ने इसे कर्मचारी आचरण नियमावली का उल्लंघन माना। खुद तो सस्पेंड हुए ही, फिजूल में मंत्रीजी की किरकिरी भी करा बैठे।

हाय ये मास्क और शारीरिक दूरी

तीन महीने लॉकडाउन में दिल्ली फंसे रहे पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेसी दिग्गज हरीश रावत अनलॉक शुरू होते ही दून पहुंचे, तो मानों सियासत की रौनक लौट आई। अपने चुटीले और चुभने वाले बयानों के लिए मशहूर हरदा की सियासी तलवार दुधारी चलती है। भाजपा तो टार्गेट पर होती ही है, लेकिन इससे अकसर उनकी अपनी ही पार्टी के नेता भी घायल हो जाते हैं। पेट्रो पदार्थों की कीमतों को लेकर बैलगाड़ी पर प्रदर्शन और मुख्यमंत्री आवास पर धरने को लेकर सड़क किनारे डेरा जमाने के बाद हाल में वह सशरीर मुख्यमंत्री आवास जा पहुंचे। दरअसल, हरदा कुमाऊं  क्षेत्र की कुछ समस्याओं को लेकर मुख्यमंत्री से मिलने गए। कहने वालों ने तो काफी कुछ कहा इस मुलाकात पर, मगर सबसे दिलचस्प टिप्पणी यह रही कि दोनों में इस दौरान कोई बात नहीं हुई। दोनों फेसमास्क लगाए थे और शारीरिक दूरी इतनी कि एक की बात दूसरे तक पहुंचना मुमकिन ही नहीं।

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वाह सरकार, पर उपदेश कुशल बहुतेरे

कोरोना से मुकाबले को धनराशि जुटाने के मकसद से राज्य सरकार ने मंत्रियों और विधायकों के वेतन-भत्तों में 30 फीसद कटौती का निर्णय लिया। यह धनराशि मुख्यमंत्री राहत कोष में जमा होनी है, लेकिन सत्तारूढ़ भाजपा के विधायकों ने ही अपनी सरकार के फैसले का मखौल बना दिया। बात तब खुली, जब सरकार के फैसले का पालन कर रहे विपक्ष कांग्रेस के विधायक मनोज रावत ने सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी मांगी। कुछ समय पहले तक सत्तापक्ष ही विपक्ष पर इस मामले में सहमति देने में हीलाहवाली का आरोप लगा रहा था, मगर अब हकीकत सामने आई कि विपक्ष नहीं, सत्तापक्ष के विधायक ही ऐसा कर रहे हैं। जाहिर है, इससे विपक्ष को सरकार के खिलाफ हमलावर होने का अवसर मिल गया। हालांकि, अब सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि इस फैसले का पालन होगा और जरूरत पड़ी तो अध्यादेश भी लाया जा सकता है।

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