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कोर्ट ने सिद्ध किया हमारे देश में न्याय व्यवस्था सर्वोपरि

जीआरडी स्कूल में हुई दुष्कर्म की घटना के दोषी जेल पहुंच गए हैं। लेकिन दून में इस तरह छात्रा के साथ स्कूल के अंदर दुष्कर्म की घटना होना कई सवाल खड़े करती है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sat, 08 Feb 2020 03:38 PM (IST)Updated: Sat, 08 Feb 2020 03:38 PM (IST)
कोर्ट ने सिद्ध किया हमारे देश में न्याय व्यवस्था सर्वोपरि
कोर्ट ने सिद्ध किया हमारे देश में न्याय व्यवस्था सर्वोपरि

देहरादून, आयुष शर्मा। जीआरडी स्कूल में हुई दुष्कर्म की घटना के दोषी जेल पहुंच गए हैं। लेकिन एजुकेशन हब के रूप में देशभर में चर्चित दून में इस तरह छात्रा के साथ स्कूल के अंदर दुष्कर्म की घटना होना कई सवाल खड़े करती है। इस घटना से हमारी शिक्षा प्रणाली, संस्कार और स्कूल प्रबंधन के दायित्व कटघरे में हैं। तकनीकी युग में पूरा संसार हमारे स्मार्ट फोन में मौजूद है, बस हमें इसके दुरुपयोग और सद्पयोग के बारे में पता होना चाहिए। क्योंकि अधिकांश युवा वर्ग इस तकनीक का गलत ही फायदा उठा रहा है, जिससे उनकी मनोवृत्ति दूषित हो रही है और शायद यही दूषित मनोवृत्ति इस घटना की कारण बनी। स्कूल प्रबंधन ने अपने दायित्व का पालन न कर दुष्कर्म की घटना को दबाया ही नहीं बल्कि दोषियों को बचाने का प्रयास भी किया। कोर्ट ने सभी दोषियों को सजा देकर सिद्ध कर दिया कि हमारे देश में न्याय व्यवस्था सर्वोपरि है।

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जवान की सुध नहीं

11 गढ़वाल राइफल के हवलदार राजेंद्र सिंह नेगी कश्मीर के गुलमर्ग में गश्त के दौरान बर्फ में फिसल गए थे। इसके एक माह बाद भी उनका कुछ पता नहीं चला है। जबकि उनके स्वजन राज्य से लेकर केंद्र सरकार से उनका पता लगाने की गुहार लगा चुके हैं। हालांकि सेना का उनको ढूंढने को लेकर रेस्क्यू जारी है। मगर अभी तक उनके बारे में न सेना जानकारी दे पा रही है न ही केंद्र सरकार। यह स्थिति तब है जब पूर्व सेना प्रमुख और चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत उत्तराखंड के हैं। देश को सर्वाधिक जांबाज देने वाले उत्तराखंड के इस लाल का अब तक पता न चलने से उनके स्वजन सहित उत्तराखंडवासी चिंतित हैं। इस गुस्से का इजहार लोग सोशल मीडिया के माध्यम से भी कर रहे हैं। लेकिन आम मुद्दों पर सड़कों पर उतरने वाले संगठनों ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है।

राजनीति न करें शिक्षक

शिक्षण को ताक पर रख राजनीति चमकाने वाले शिक्षक अब सचेत हो जाएं, क्योंकि विभाग की उन पर नजर है। इस राजनीतिके कारण बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। अब विभाग ने ऐसे शिक्षकों को चिह्नित करने के आदेश जारी कर दिए हैं। विभाग के आदेश के बाद राजनैतिक गतिविधियों में व्यस्त रहने वाले शिक्षकों में हड़कंप की स्थिति है। साथ ही विभाग ने छह माह तक शिक्षकों को हड़ताल न करने का फरमान जारी कर अपनी सख्ती का संदेश दे दिया है। लेकिन देखना यह है कि इन फरमान पर कार्रवाई भी होती है या यह हवा-हवाई साबित होते हैं। सवाल यह है कि क्या शिक्षक यूनियनों को विभाग का यह आदेश रास आएगा। क्या वह इसके विरोध में लामबंद नहीं होंगी और इसके बाद सरकार का क्या यह सख्ती वाला रवैया रहेगा। यह प्रश्न भविष्य के गर्त में हैं, लेकिन देखना दिलचस्प होगा।

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लौटकर आए अतिथि शिक्षक

प्रदेश में सरकारी माध्यमिक विद्यालयों में अतिथि शिक्षक लौट कर आ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट प्रदेश में सरकारी विद्यालयों में प्रवक्ता व एलटी शिक्षकों के रिक्त पदों पर अतिथि शिक्षकों की तैनाती को हरी झंडी दिखा चुका है। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद एक ओर जहां अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति की राह खुली। वहीं सालों से दुर्गम में सेवाएं दे रहे शिक्षकों के मन में तबादलों की आस जगी है। शिक्षक संघ इसे लेकर आवाज भी उठाने लगे हैं। लेकिन शिक्षा महकमे ने साफ किया है कि तबादले तो होंगे एक्ट के अनुसार ही। देखना होगा कि तबादलों को लेकर सुर्खियों में रहने वाला शिक्षा विभाग सत्र खत्म होते-होते क्या फिर से तबादले करेगा। खैर, अच्छी बात यह है कि शिक्षकों की राह देख रहे स्कूलों को अतिथि के तौर पर ही सही शिक्षक तो मिल रहे हैं। तबादले हों न हों सरकारी स्कूलों में नियमित पढ़ाई तो हो सकेगी।

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