शहीद का साढ़े तीन साल का बेटा बोला, फौजी बनकर पापा के कातिलों को सजा दूंगा
शहीद दीपक नैनवालका तीन साल का बेटा कहता है कि वो भी अपने पिता की ही तरह फौजी बनना चाहता है। इसी जज्बे से आजादी सलामत है।
देहरादून, [सुकांत ममगाईं]: जम्मू-कश्मीर के कुलगाम में आतंकी मुठभेड़ में मारे गए शहीद दीपक नैनवाल के साढ़े तीन साल के बेटे के जज्बे को हर कोई सलाम कर रहा है। शहीद का बेटा रेयांश कहता है कि वह पिता की ही तरह फौजी बनना चाहता है। उसने दादा से कहकर एक खिलौना बंदूक भी मंगाई है। रेयांश कहता है, जिन्होंने पापा को मारा, उन्हें वह छोड़ेगा नहीं। बच्चों की यह मासूमियत भरी बातें उस लंबी उदासी को भी तोड़ती हैं, जो शहीद के घर अब मानो ठहर-सी गई है।
वहीं बेटी पांच वर्षीय बेटी लावण्या अपने पापा के लिए 'ट्विंकल-ट्विंकल लिटिल स्टार, पापा मेरे सुपर-स्टार', कविता लिखी है। घर की दीवार पर लगी पिता की तस्वीर को सैल्यूट करते हुए वह नारा लगाती है, 'जब तक सूरज चांद रहेगा, दीपक तेरा नाम रहेगा।' मासूम लावण्या कहती है कि उसके पिता स्टार बन चुके हैं, जो सदियों तक चमकते रहेंगे।
देहरादून जिले के हर्रावाला निवासी दीपक नैनवाल दस अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के कुलगाम में आतंकी मुठभेड़ में घायल हुए थे। तीन गोलियां लगी, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। शरीर में धंसी गोलियों से एक माह तक लोहा लिया। परिवार वालों को हमेशा यही कहा, 'चिंता न करें, मामूली जख्म है, ठीक हो जाऊंगा।' लेकिन 20 मई को वह जिंदगी की जंग हार गए। उनकी शहादत को करीब ढाई माह बीत चुका है और घर में दाखिल होते ही यह अहसास होता है कि आजादी की 71वीं वर्षगांठ नजदीक है। यह आजादी कर्ज है हम पर। हमारे अपने सुरक्षित हैं, क्योंकि इस परिवार ही तरह कई परिवारों ने अपनों की कुर्बानी दी है।
दीपक की मां पार्वती बेटे की बात करती है, तो आंखें नम और गला भर आता है। पोते रेयांश की शरारतें देख बार-बार यही कहती हैं, वह भी बिल्कुल ऐसा ही था। ठीक ऐसे ही शरारत किया करता था। कहती हैं, दीपक एक माह तक अस्पताल में रहा, पर इस बात का हमें कभी अहसास तक नहीं होने दिया कि वह दर्द में है। उसके ठीक होने का इंतजार कर रहे थे, पर खबर उसके चले जाने की आई।
दीपक के पिता चक्रधर नैनवाल भी फौज से रिटायर हैं। उनके चेहरे पर भी उदासी साफ झलकती है। उन्हें बेटे पर नाज भी है और उसके चले जाने का गम भी। कहते हैं, शहादत की तमाम खबरें आती थी, पर इस बात का इल्म तक न था कि एक दिन यूं अपने ही बेटे की खबर आएगी। रुआंसा होकर कहते हैं, 'जिन तन बीते, सो तन जाने।' हम तो बुजुर्ग हैं और कुछ ही दिन की जिंदगी है, पर उसके बीवी-बच्चों के सामने अभी पूरी जिंदगी पड़ी है। उन्होंने बताया कि उनकी तीन पीढिय़ां देश सेवा से जुड़ी रही हैं। उन्होंने 10-गढ़वाल में नौकरी करते हुए 1971 के भारत-पाक युद्ध, कारगिल युद्ध व कई अन्य ऑपरेशन में हिस्सा लिया। जबकि, उनके पिता सुरेशानंद नैनवाल स्वतंत्रता सेनानी थे।
शहीद की पत्नी ज्योति ज्यादा कुछ नहीं बोलती। बस इतना ही कहती हैं कि उनके पति का नाम ऊधमपुर स्थित शहीद स्मारक पर दर्ज किया जाए। दीपक की शहादत पर राज्य सरकार ने घोषणा की थी कि घर के एक सदस्य को योग्यतानुसार सरकारी नौकरी दी जाएगी। लेकिन, बात अभी तक आगे नहीं बढ़ी। इस पर भी ज्योति को कोई शिकवा-शिकायत नहीं। कहती हैं, उनकी तरफ से ही पहल नहीं हुई। वह जानती हैं कि जिंदगी की हकीकत सामने है और बोझिल होती दुनिया से आगे भी एक दुनिया है।
खैर! शहीद के घर से निकलते वक्त जेहन में बात आती है कि 'दीपक' ने खुद को जलाकर औरों का संसार रोशन किया। वह जाते-जाते भी मानो यही कह गया, 'रोशनी होगी चिरागों को जलाए रखना, लहू देकर जिसकी हिफाजत हमने की, ऐसे तिरंगे को सदा दिल में बसाए रखना।'
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