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Coronavirus उत्तराखंड में कोरोना जांच की रफ्तार जरूर बढ़ी, पर अब भी चुनौतियों का अंबार

उत्तराखंड में जांच की रफ्तार जरूर बढ़ी पर चुनौतियां कम नहीं हैं। प्रदेश में लॉकडाउन लागू हुए एक माह का वक्त बीत चुका है। इस दरमियान 3584 सैंपल की जांच ही की गई है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Fri, 24 Apr 2020 01:23 PM (IST)Updated: Fri, 24 Apr 2020 01:23 PM (IST)
Coronavirus उत्तराखंड में कोरोना जांच की रफ्तार जरूर बढ़ी, पर अब भी चुनौतियों का अंबार
Coronavirus उत्तराखंड में कोरोना जांच की रफ्तार जरूर बढ़ी, पर अब भी चुनौतियों का अंबार

देहरादून, जेएनएन। कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में सबसे बड़ा हथियार है लॉकडाउन और सबसे बड़ा वार टेस्टिंग। इस लिहाज से देखें तो उत्तराखंड में जांच की रफ्तार जरूर बढ़ी, लेकिन चुनौतियां अभी भी कम नहीं हैं। प्रदेश में लॉकडाउन लागू हुए एक माह का वक्त बीत चुका है। इस दरमियान 3584 सैंपल की जांच ही की गई है। यानी हर दिन औसतन 116 सैंपल की जांच। जांच की यह कछुआ गति ज्यादा चिंतित इसलिए कर रही है, क्योंकि प्रदेश में कोरोना संक्रमण को लेकर कई नए हॉटस्पॉट विकसित हो चुके हैं।

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उत्तराखंड में लॉकडाउन 22 मार्च को लागू किया गया था। तब तक यहां कोरोना के सिर्फ तीन मामले सामने आए थे। अब यह संख्या बढ़कर 47 तक पहुंच चुकी है। यानी 44 मामले लॉकडाउन की अवधि में आए हैं। इनमें ज्यादातर मामले 30 मार्च यानी तब्लीगी जमात के दिल्ली स्थित निजामुद्दीन मरकज का मामला सामने आने के बाद के हैं। प्रदेश में अधिकांश कोरोना संक्रमित मरीज जमाती हैं या उनके संपर्क में आने वाले लोग। बहरहाल इसके बाद पूरे प्रदेश में सर्विलांस, सेनिटाइजेशन, संबंधित क्षेत्र को सील व संपर्कों को क्वारंटाइन करने में तो तेजी दिखाई दी, लेकिन लोगों की जांच का दायरा अभी भी सीमित है। हालांकि, इसमें वृद्धि जरूर हुई है।

लॉकडाउन के शुरुआती पांच दिनों का आकलन करें तो प्रतिदिन औसतन 38 सैंपल की जांच की जा रही थी। पिछले पांच दिनों में यह औसत 243 तक पहुंच गया है। यानी लॉकडाउन की एक माह की अवधि में शुरुआती दिनों से अब तक जांच की रफ्तार छह गुना बढ़ी है। एम्स ऋषिकेश और एक निजी लैब में टेस्टिंग शुरू होने से कुछ सुधार हुआ, लेकिन गुंजाइश अभी भी बहुत है।

दून में अब तक नहीं शुरू हुई जांच

सरकार यह दम भर रही थी कि आइआइपी, दून मेडिकल कॉलेज, श्रीनगर मेडिकल कॉलेज समेत कुछ निजी संस्थानों में भी जल्द जांच शुरू कर दी जाएगी। लेकिन, इनमें अभी कहीं भी जांच शुरू नहीं हो सकी है। जबकि कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में जीत के लिए पूरा दारोमदार टेस्टिंग पर ही है। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि अब बिना लक्षण वाले मरीज भी खतरे का संकेत दे रहे हैं।

क्वारंटाइन में रखे गए लोगों का बढ़ी तादाद

एक माह में सरकारी तंत्र का फोकस संदिग्धों को क्वारंटाइन करने पर रहा। इनमें बाहर से आए या संक्रमित व्यक्तियों के संपर्क में आए लोग शामिल हैं। जिसका एक कारण यह है कि संदिग्धों को अलग कर उनमें मरीज की पहचान कर पाना आसान होता है। हाल-फिलाहल जितने भी मरीज मिले हैं, वह क्वारंटाइन ही किए गए थे। मार्च समाप्ति तक होम व संस्थागत क्वारंटाइन लोगों की तादाद 9650 थी। वर्तमान में प्रदेश में 65 हजार से अधिक लोग होम क्वारंटाइन और 2700 के करीब संस्थागत क्वारंटाइन में हैं। इस लिहाज से इसमें सात गुना की वृद्धि हुई है।

उत्तराखंड में एक लाख की आबादी पर 40 जांच

कोरोना संक्रमण की आशंका को खत्म करने के लिए अधिक से अधिक लोगों की जांच ही एकमात्र उपाय है। पर उत्तराखंड में फिलहाल इस पर अमल होता नहीं दिख रहा है। प्रदेश में फिलहाल एक लाख की आबादी पर 40 ही जांच की जा रही है। यह अलग बात है कि स्वास्थ्य महकमा इसे राष्ट्रीय औसत से बेहतर बता रहा है। उनका कहना है कि देश में इस वक्त एक लाख लोगों पर तकरीबन 38 की जांच की जा रही है।

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बता दें, उत्तराखंड में कोरोना का पहला मामला 15 मार्च को सामने आया था। पर तकनीबन सवा माह बाद भी जांच का दायरा नहीं बढ़ सका है। प्रदेश में अभी तक 4473 सैंपल ही जांच के लिए भेजे गए हैं। इनमें भी 428 की जांच अभी बाकी है। अभी तक की स्थिति पर देखें तो देहरादून सर्वाधिक प्रभावित जिला है। ऐसे में सैंपलिंग व जांच का दायरा भी यही ज्यादा रहा है। इसके बाद नैनीताल और हरिद्वार जनपद का नंबर है। ताज्जुब ये कि ऊधमसिंहनगर में सैंपलिंग और जांच की रफ्तार अभी भी धीमी है। जबकि वहां चार कोरोना संक्रमित मिल चुके हैं। बल्कि जनसंख्या के अनुपात में उत्तरकाशी इससे बेहतर स्थिति में दिख रहा है।

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