हिमालयी हौसलों के आगे पस्त हुई कोरोना की चाल
कोरोना वायरस ने दर्द दिया तो मानवता ने दवा के नए-नए रास्ते भी खोज निकाले हैं। बात उत्तराखंड की करें तो आखिर हिमालयी हौसले के आगे विपत्ति की मनमाफिक चाल को घुटने टेकने पड़े। दूसरे राज्यों में अचानक बेगाने होकर लौटे तीन लाख अपनों को इस हिमालयी अंचल ने सहेजा।
राज्य ब्यूरो, देहरादून: कोरोना वायरस ने दर्द दिया, तो मानवता ने दवा के नए-नए रास्ते भी खोज निकाले हैं। बात उत्तराखंड की करें तो आखिर हिमालयी हौसले के आगे विपत्ति की मनमाफिक चाल को घुटने टेकने पड़े। दूसरे राज्यों में अचानक बेगाने होकर लौटे तीन लाख अपनों को इस हिमालयी अंचल ने सहेजा और मां का दुलार देकर ढाढ़स बंधाया, तो लॉकडाउन के दौरान गरीबों, वंचितों और लाचार व्यक्तियों की मदद को समाज का हर तबका खुलकर आगे आ गया। पिछले 20 वर्षों से बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं से जूझ रहे उत्तराखंड में अब सभी 13 जिलों में आइसीयू और 600 से अधिक वेंटीलेटर हैं। सरकारी तंत्र पहली बार सलीके से आम जन और ग्राम पंचायतों से जुड़ा तो फिर मुश्किल हालात से जूझने और उससे पार पाने की नई इबारत लिखी गई। 23 लाख से ज्यादा परिवारों को खाद्य सुरक्षा और करीब छह लाख स्कूली बच्चों को खाद्य सुरक्षा भत्ते का कवच मिला। कोरोना से जंग में नई उम्मीदों का ये सफर अभी जारी है।
कोविड-19 महामारी ने प्रचंड ताकत के साथ प्रहार कर जनजीवन के हर क्षेत्र को बिखेरने की बहुतेरी कोशिश की, लेकिन मानवीय संवेदनाओं से भरपूर चट्टानी हिम्मत ने महामारी के तेवरों को ही ढीला कर दिया। सीमित संसाधनों से जूझते इस हिमालयी राज्य ने महामारी का डटकर मुकाबला किया। सिर्फ 10 माह के संकट काल में ही अर्थव्यवस्था को करीब सात हजार करोड़ का नुकसान राज्य को वर्षों पीछे धकेलने के लिए काफी है। विपरीत परिस्थितियों में मानवीय हौसलों ने नई उड़ान भरकर चुनौती का न केवल डटकर सामना किया, बल्कि उम्मीदों को नई रोशनी भी दी है। बीते मार्च माह में कोरोना संकट से निपटने के लिए लागू किए गए लॉकडाउन के वक्त राज्य की हालत पर गौर करने पर तस्वीर साफ हो जाती है। अप्रैल से लेकर जून तक चालू वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही पूरे राज्य पर भारी गुजरी। विकास कार्य तकरीबन पूरी तरह ठप रहे। जीएसटी समेत राजस्व आमदनी को करीब 4000 करोड़ की चोट पहुंची है। धीरे-धीरे ऋण लेकर और अपने खर्चों में कटौती कर राज्य में जरूरतमंदों तक मदद पहुंचाई गई है।
नई उम्मीदों संग चुनौती का सामना
कोरोना वायरस ने सबसे बड़ी चुनौती प्रदेश के भविष्य के सामने खड़ी की। इसका मुकाबला करने को शहरी क्षेत्रों के अतिरिक्त दूरदराज ग्रामीण और पर्वतीय अंचलों में ऑनलाइन शिक्षा की पहुंच हुई। स्मार्टफोन, दूरदर्शन और कम्युनिटी रेडियो आश्चर्यजनक रूप से शिक्षा प्रसार के सशक्त माध्यम के तौर पर इस्तेमाल किए जा रहे हैं। सरकारी स्कूलों से लेकर डिग्री कॉलेजों और पंचायतों में इंटरनेट से जुडऩे की ललक बढ़ चुकी है। संकट के इस दौर ने हर क्षेत्र को नई राह तलाशने और उस पर तेजी से आगे बढऩे की इच्छाशक्ति को भी जन्म दिया है।
बेहतर हुईं स्वास्थ्य सुविधाएं
बीते मार्च महीने में कोरोना की जांच को प्रदेश में सिर्फ हल्द्वानी में ही एक टेस्टिंग लैब थी। कोविड-जांच में अब उत्तराखंड बेहतर स्थिति में है। राज्य के सिर्फ आठ जिलों में ही आइसीयू थे। वेंटीलेंटर की संख्या 60 से बढ़कर अब 600 का आंकड़ा पार कर चुकी है। चिकित्सकों समेत पैरामेडिकल स्टाफ की कमी और पर्वतीय क्षेत्रों स्वास्थ्य सुविधाओं का कमजोर व लचर ढांचा अब अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में है। कोरोना से सुरक्षा को मास्क और सैनिटाइजर की प्रचुर उपलब्धता है।
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पटरी पर लौटने लगा कारोबार
परिवहन, होटल, पर्यटन समेत तकरीबन दो लाख से ज्यादा कारोबारियों, छोटा काम-धंधा करने वालों के लिए कोरोना संकट बड़ी मुसीबत लेकर आया है। अकेले पर्यटन से जुड़े उद्यमियों, व्यवसायियों और कारोबारियों के साथ उनमें रोजगार प्राप्त करने वाले 80 हजार से ज्यादा लोग प्रभावित हुए। इन्हेंं राहत के पैकेज के बंदोबस्त को राज्य सरकार ने केंद्र में दस्तक दी है। आत्मनिर्भर योजना और एमएसएमई के तहत मदद के रास्ते खोले गए हैं। साथ में दो-दो हजार रुपये की मासिक मदद भी दी गई। अब दोबारा से तमाम गतिविधियों को पटरी पर लाने को हो रही कसरत ने इस क्षेत्र में उम्मीदें साफतौर पर दिखने लगी हैं। उद्योग-धंधों में मंदी के दौर से उबरकर उत्साह का संचार होने लगा है।
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