प्रवासियों को सीधे घर भेजना पड़ा भारी, 17 दिन में कोरोना के केस हुए डबल
अप्रवासियों को संस्थागत क्वारंटाइन करने की जगह होम क्वारंटाइन के लिए सीधे घर भेजना भारी पड़ने लगा है। इससे प्रवासियों के संपर्क में आए लोग संक्रमित हो रहे हैं।
देहरादून, जेएनएन। अप्रवासियों को संस्थागत क्वारंटाइन करने की जगह होम क्वारंटाइन के लिए सीधे घर भेजना भारी पड़ने लगा है। इसकी नतीजा यह हुआ कि कहीं अप्रवासियों का संक्रमण उनके संपर्क में आए परिजनों व अन्य लोगों को भी अपनी चपेट में लेने लगा है तो कहीं एक साथ सफर करने वाले लोग एक-दूसरे को संक्रमित कर रहे हैं। नैनीताल जिले में एक साथ इतने अधिक लोगों में संक्रमण मिलना, इस खामी और अनदेखी का जीता जागता उदाहरण है।
दूसरे राज्यों से उत्तराखंड में आ रहे लोगों को संस्थागत क्वारंटाइन की जगह होम क्वारंटाइन पर भेजने की प्रवृत्ति पर 'दैनिक जागरण' पहले ही सवाल खड़े कर चुका था। हालांकि, जब हाईकोर्ट ने भी इसका संज्ञान लिया तो अधिकारियों को कुछ होश आया। अब बाहर से आने वाले लोगों को संस्थागत क्वारंटाइन सेंटरों में भेजा जाने लगा है, मगर अब भी इंतजाम अधूरे ही दिख रहे हैं। लोगों को संस्थागत क्वारंटाइन करने का निर्णय भी तब लिया गया, जब एक लाख से अधिक लोग उत्तराखंड के विभिन्न जिलों में पहुंच चुके थे। शनिवार तक एक लाख 48 हजार से अधिक लोगों की आमद उत्तराखंड में हो चुकी है और देर से जागे अधिकारियों की अनदेखी के चलते 30 फीसद लोगों को भी संस्थागत क्वारंटाइन नहीं किया जा सका है।
प्रशासन की चूक और शासन की अनदेखी के दुष्परिणाम अब कोरोना के बढ़ते संक्रमण के रूप में दिखने लगे हैं। आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि अप्रवासियों का उत्तराखंड आना चिंता की बात नहीं, बल्कि इन लोगों को संस्थागत क्वारंटाइन न कर पाना सबसे बड़े टेंशन का कारण बनता जा रहा है।
चार मई से पहले जब अप्रवासियों को उत्तराखंड आने की खुली छूट नहीं थी, तब कोरोना का आंकड़ा 61 पर सिमटा था। इस आंकड़े तक पहुंचने में 51 दिन का लंबा समय लगा। चार मई से 20 मई तक यह संख्या महज 17 दिन में दोगुनी से अधिक 132 पर पहुंच गई थी। अब यह संख्या तीन गुना को पार कर है। वह भी महज तीन दिन के भीतर। यदि अब भी बाहर से आने वाले लोगों को संस्थागत क्वारंटाइन करने के प्रति गंभीरता से काम नहीं किया गया तो उत्तराखंड में हालात बेकाबू होने में भी देर नहीं लगेगी।
शनिवार को भी आए 4600 से अधिक
उत्तराखंड में दूसरे राज्यों से अप्रवासियों की आमदगी का क्रम निरंतर जारी है। शनिवार को भी 4688 लोग उत्तराखंड पहुंचे हैं। चिंता की बात यह है कि सैंपलिंग को लेकर जो पर्वतीय जिले अब भी रफ्तार नहीं बढ़ा पा रहे हैं, वहां सबसे अधिक अप्रवासी पहुंच रहे हैं। इनमें अल्मोड़ा, पौड़ी, टिहरी जैसे पर्वतीय जिले प्रमुख हैं। हम कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए बहुआयामी प्रयास करने में जितना विलंब करेंगे, खतरा उतना ही बढ़ता जाएगा।
एमइएस कैंपस और आवासीय परिसर सील
नोएडा से लौटे सॉफ्टवेयर इंजीनियर में कोरोना की पुष्टि होने के बाद क्लेमेनटाउन स्थित एमइएस कैंपस और आवासीय परिसर सील कर दिया गया है। युवक के पिता मिलिट्री इंजीनियर सॢवसेज में कार्यरत हैं और यहीं परिवार भी रहता है। 20 मई को नोएडा से लौटा युवक क्लेमेनटाउन में कैंट हॉस्पिटल में क्वारंटाइन था। ऐसे में अब कैंट अस्पताल की सेवाएं भी एहतियातन बंद कर दी गई हैं।
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क्लेमेनटाउन थाना प्रभारी नरोत्तम बिष्ट ने बताया कि युवक नोएडा की एक कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। वह 20 मई को नोएडा से लौटा। आशारोड़ी चेकपोस्ट पर उसका सैंपल लिया गया और उसे कैंट बोर्ड के अस्पताल में क्वारंटाइन कर दिया गया। शुक्रवार देर रात उसकी जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आई। जिसके बाद उसे दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल शिफ्ट करा दिया गया है। सेना की तरफ से एहतियात के तौर पर एमइएस कैंपस एवं आवासीय कॉलोनी को सील किया गया है। छावनी परिषद क्लेमेनटाउन के सीईओ अभिषेक राठौड़ के अनुसार कैंट अस्पताल भी फिलहाल बंद रहेगा। युवक के अभिभावक, एक चिकित्सक व एक फार्मेसिस्ट, यानि कुल पांच लोगों को अस्पताल में ही क्वारंटाइन कर उनके सैंपल भी जांच के लिए भेजे गए हैं।
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