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उत्तराखंड कांग्रेस में टांगखिंचाई जारी, कौन बनेगा खिवैया

कांग्रेस के कद्दावर नेता संगठन पर हावी होने की कोशिश जारी रखे हुए हैं, उससे ऐसे में नगर निकाय चुनाव में गुटीय खींचतान पर काबू पाकर एकजुट ताकत दिखाने का दबाव पार्टी पर बढ़ गया है।

By BhanuEdited By: Published: Sat, 17 Feb 2018 12:07 PM (IST)Updated: Sat, 17 Feb 2018 08:43 PM (IST)
उत्तराखंड कांग्रेस में टांगखिंचाई जारी, कौन बनेगा खिवैया
उत्तराखंड कांग्रेस में टांगखिंचाई जारी, कौन बनेगा खिवैया

देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: विधानसभा चुनाव में मिली करार हार से सबक न लेकर कांग्रेस पर फिर टांग खिंचाई की सियासत हावी होने लगी है। ऐसे में ये सवाल मौजूं है कि प्रदेश में संगठन के बूते पार्टी की नैया पार लगेगी या दिग्गज पुरानी परंपरा के मुताबिक अपने ही अंदाज में नैया को अलग-अलग खेने की कोशिशों को दोहराएंगे। 

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फिलहाल प्रदेश संगठन इसी कश्मकश का शिकार है। पार्टी के कद्दावर नेता संगठन पर हावी होने की कोशिश जिसतरह जारी रखे हुए हैं, उससे आने वाले नगर निकाय चुनाव में गुटीय खींचतान पर काबू पाकर एकजुट ताकत दिखाने का दबाव पार्टी पर बढ़ गया है।  

प्रदेश में कांग्रेस के क्षत्रपों में संगठन को ठेंगा दिखाते रहने की पुरानी परंपरा रही है। इसका नतीजा पार्टी में रह-रहकर बिखराव और तालमेल की कमी के तौर पर सामने आता रहा है। इसी वजह से बीते विधानसभा चुनाव में पार्टी को बुरी तरह मुंह की खानी पड़ी थी, लेकिन इस हार से प्रदेश में पार्टी के तमाम बड़े नेताओं ने कोई सबक सीखा हो, फिलहाल तो दिखाई नहीं दे रहा है। 

प्रदेश संगठन और दिग्गज नेता एकजुट होने के बजाय अलग-अलग अपनी सक्रियता पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। इसका असर नगर निकाय चुनाव को लेकर पार्टी की तैयारियों पर पड़ सकता है। बीते माह जनवरी के आखिरी हफ्ते में कांग्रेस की ओर से निकाली गई जन चेतना रैली हो या हल्द्वानी में आइएसबीटी का निर्माण रोकने के खिलाफ कुमाऊं मंडल के लोगों का धरना-प्रदर्शन, प्रदेश के सभी दिग्गजों ने सरकार के खिलाफ एक साथ लामबंद होने की जरूरत महसूस नहीं की। 

हल्द्वानी में बीते रोज हुए सहकारिता सम्मेलन में भी यही किस्सा दोहराया गया है। त्रिपुरा राज्य में चुनावी व्यस्तता के चलते पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने पार्टी से अलहदा चलने के आरोपों को झुठलाने के लिए दूरभाष पर सम्मेलन को संबोधित किया, लेकिन स्टार प्रचारकों की सूची में नाम शामिल नहीं होने के विवाद के बीच चुनाव प्रचार पर निकले पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के सहकारिता सम्मेलन को खास अहमियत नहीं देने को लेकर पार्टी के भीतर कई तरह से कयास लगाए जा रहे हैं। 

सम्मेलन में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का संबोधन खत्म होने के बाद दूरभाष पर ही पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने जिसतरह संबोधन किया, उसे पार्टी के भीतर ही संगठन पर हावी होने के रूप में देखा जा रहा है। पार्टी नेता दबी जुबान में ये स्वीकार कर रहे हैं कि संगठन और क्षत्रपों के बीच अंदरखाने ये खींचतान चलती रही तो इसका खामियाजा नगर निकाय चुनाव में तालमेल की कमी के रूप में दिखाई पड़ सकता है।

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