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उत्‍तराखंड में तदर्थ शिक्षकों की वरिष्ठता मामले में न्याय विभाग से मांगा परामर्श, संयुक्त बैठक में लिया गया था अंतिम निर्णय

लोक सेवा न्यायाधिकरण ने दूसरी बार यह प्रकरण शिक्षा विभाग को लौटाया है। इससे पहले भी हाईकोर्ट और फिर न्यायाधिकरण के आदेश पर शासन ने बीती 13 जुलाई 2021 को आदेश जारी कर तदर्थ शिक्षकों को एक अक्टूबर 1990 से नियमित तो माना लेकिन वरिष्ठता नहीं दी।

By Sumit KumarEdited By: Published: Thu, 26 May 2022 03:05 PM (IST)Updated: Thu, 26 May 2022 03:05 PM (IST)
उत्‍तराखंड में तदर्थ शिक्षकों की वरिष्ठता मामले में न्याय विभाग से मांगा परामर्श, संयुक्त बैठक में लिया गया था अंतिम निर्णय
शिक्षकों के बीच वरिष्ठता के विवाद पर एक बार फिर सरकार को नए सिरे से निर्णय लेना होगा।

राज्य ब्यूरो, देहरादून: प्रदेश में तदर्थ विनियमित और सीधी भर्ती से नियुक्त शिक्षकों के बीच वरिष्ठता के विवाद पर एक बार फिर सरकार को नए सिरे से निर्णय लेना होगा। तदर्थ शिक्षकों को एक अक्टूबर, 1990 से नियमित करने के बावजूद वरिष्ठता नहीं देने के सरकार के आदेश को लोक सेवा न्यायाधिकरण ने सही नहीं माना। माध्यमिक शिक्षा निदेशालय से भेजे गए इस प्रकरण में शासन ने न्याय विभाग से परामर्श मांगा है।

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लोक सेवा न्यायाधिकरण ने दूसरी बार यह प्रकरण शिक्षा विभाग को लौटाया है। इससे पहले भी हाईकोर्ट और फिर न्यायाधिकरण के आदेश पर शासन ने बीती 13 जुलाई, 2021 को आदेश जारी कर तदर्थ शिक्षकों को एक अक्टूबर, 1990 से नियमित तो माना, लेकिन वरिष्ठता नहीं दी। प्रभावित पक्षों को सुनने के बाद ही यह आदेश जारी किया गया था। शिक्षकों के दोनों पक्षों को विस्तार से जानने के बाद कार्मिक, न्याय और शिक्षा विभाग के अधिकारियों की संयुक्त बैठक में इस पर अंतिम निर्णय लिया गया था।

इसके बाद शिक्षा सचिव ने तमाम पक्षों का जिक्र करते हुए छह बिंदुओं पर आदेश जारी किया। आदेश में कहा गया कि एक अक्टूबर, 1990 से पहले तदर्थ रूप से नियुक्त शिक्षकों को 14 अक्टूबर, 1999 से प्रवक्ता और 28 दिसंबर, 1999 से एलटी पद पर विनियमित किया गया। हाईकोर्ट के आदेश का जिक्र करते हुए इन शिक्षकों को एक अक्टूबर से विनियमित माना। इससे इन शिक्षकों को नौ साल पहले से विनियमित माना गया। अलबत्ता, विनियमित होने के बावजूद उन्हें उक्त तिथि से वरिष्ठता नहीं दी गई।

तदर्थ विनियमित शिक्षकों ने इस आदेश को लोक सेवा न्यायाधिकरण में दोबारा चुनौती दी। न्यायाधिकरण ने आदेश को सही नहीं माना और शिक्षकों की आपत्ति पर पुनर्विचार कर शिक्षा विभाग को तीन माह के भीतर इस पर निर्णय लेने को कहा है। शासन में इस बारे में मंथन चल रहा है। शिक्षा सचिव रविनाथ रमन ने कहा कि न्यायाधिकरण के निर्देशों के क्रम में इस प्रकरण में न्याय विभाग से परामर्श लिया जा रहा है। इसके बाद आगे की कार्यवाही की जाएगी। वरिष्ठता को लेकर फिर विवाद गहराने का असर शिक्षकों की पदोन्नति पर भी पड़ रहा है। एलटी से प्रवक्ता और प्रवक्ता से प्रधानाध्यापक पदों पर पदोन्नति होनी हैं। निर्णय होने तक इन्हें रोका गया है।

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यह है मामला:

तदर्थ विनियमित शिक्षकों को हाईकोर्ट ने एक अक्टूबर 1990 से विनियमित मानते हुए वरिष्ठता निर्धारित करने के आदेश दिए हैं। उत्तर प्रदेश में तदर्थ शिक्षकों को वर्ष 1995 में विनियमित किया गया था। उत्तराखंड में कार्यरत शिक्षकों को 1999 और फिर 2002 में विनियमित किया गया। तदर्थ विनियमित शिक्षकों ने 1990 से वरिष्ठता की मांग को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट ने इन शिक्षकों को वरिष्ठता देने के मामले में प्रभावित पक्षों की सुनवाई करने को कहा था। सीधी भर्ती से नियुक्त शिक्षकों ने तदर्थ शिक्षकों के वरिष्ठता के दावे को चुनौती देते हुए लोक सेवा न्यायाधिकरण में याचिका दायर की थी। न्यायाधिकरण ने भी शासन को इस मसले को निस्तारित करने के निर्देश दिए थे। अब 13 जुलाई, 2021 को जारी शासनादेश पर न्यायाधिकरण के निर्देशों को देखते हुए निर्णय लिया जाएगा।

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