कांग्रेस के समक्ष 13 फीसद का अंतर पाटने की चुनौती
2022 के सियासी दंगल के लिए उत्तराखंड में वजूद रखने वाली दोनों पार्टियां भाजपा और कांग्रेस पूरी शिददत से जुट गई हैं। भाजपा के समक्ष पिछले विधानसभा चुनाव के प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती है तो कांग्रेस को भाजपा को कड़ी टक्कर देने को कमर कसनी होगी।
देहरादून, विकास धूलिया। 2022 के सियासी दंगल के लिए उत्तराखंड में वजूद रखने वाली दोनों पार्टियां, भाजपा और कांग्रेस पूरी शिददत से जुट गई हैं। भाजपा के समक्ष पिछले विधानसभा चुनाव के प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती है, तो कांग्रेस को अपने अब तक के सबसे बुरे दौर से उबर कर भाजपा को कड़ी टक्कर देने को कमर कसनी होगी। दरअसल, कांग्रेस की सबसे बड़ी चिंता पार्टी में अंतरविरोध के साथ ही पिछले चुनाव में भाजपा को मिले 13 फीसद ज्यादा मत हैं। यही 13 फीसद का अंतर था, जिसकी वजह से कांग्रेस को भाजपा के मुकाबले 46 सीटें कम मिलीं। 70 सदस्यों वाली विधानसभा में भाजपा को तीन-चौथाई से अधिक बहुमत के साथ 57 सीटें हासिल हुईं।
हर विस चुनाव में मतदाता ने बदली है सत्ता
उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद से अब तक चार विधानसभा चुनाव हुए हैं। दिलचस्प बात यह है कि देवभूमि के मतदाताओं ने हर चुनाव में सत्ता बदली है। हालांकि भाजपा और कांग्रेस, दोनों को दो-दो बार सरकार बनाने का मौका मिला है, लेकिन लगातार दो बार किसी को भी सत्ता नहीं मिली। वर्ष 2002 के पहले और वर्ष 2012 के तीसरे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता में आई। वर्ष 2007 के दूसरे और वर्ष 2017 के चौथे विधानसभा चुनाव में भाजपा को सरकार बनाने का अवसर हासिल हुआ। मतदाताओं का यह नजरिया वर्ष 2022 के पांचवें विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए सबसे सकारात्मक पहलू और सबसे बड़ी उम्मीद भी है।
पहले तीन चुनाव में बाहरी मदद से मिली सत्ता
दरअसल, पहले तीन विधानसभा चुनाव में जिस भी पार्टी को सरकार बनाने का मौका मिला, उसके पास बहुमत का आंकड़ा भर था। पहले विधानसभा में कांग्रेस को 70 में से 36 सीटों पर जीत मिली, तो दूसरे विधानसभा चुनाव में भाजपा के हिस्से आई 35 सीटें। तीसरे विधानसभा चुनाव में तो काफी नजदीकी टक्कर देखने को मिली। भाजपा 31 तो कांग्रेस का सीटों का आंकड़ा 32 तक ही पहुंच पाया। लिहाजा, पहले तीनों विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा और कांग्रेस को अन्य पार्टियों के विधायक या निर्दलीयों की मदद से सरकार बनानी पड़ी। इसका बड़ा असर यह रहा कि शुरुआती 17 साल उत्तराखंड पूरी तरह सियासी अस्थिरता से जूझता रहा।
पिछले चुनाव में पहली बार एकतरफा बहुमत
वर्ष 2017 में हुए चौथे विधानसभा चुनाव सबसे अलग रहे। भाजपा अपने दम पर 57 सीटों पर परचम फहराने में कामयाब रही। उधर, कांग्रेस सत्ता से बाहर तो हुई ही, उसके केवल 11 विधायक ही निर्वाचित हो पाए। यानी पहली दफा किसी पार्टी को एकतरफा बहुमत के साथ सत्ता मिली। सीटों के इतने बड़े अंतर का कारण रहा भाजपा को हासिल मत प्रतिशत। भाजपा को कुल मतों में से 46.5 प्रतिशत मत मिले, जबकि कांग्रेस के हिस्से आए 33.5 प्रतिशत। यानी 13 प्रतिशत ज्यादा मत मिले तो भाजपा को कांग्रेस से 46 सीटें ज्यादा मिल गईं। कांग्रेस क्या, शायद किसी को भी चुनाव नतीजों से पहले उम्मीद नहीं थी कि भाजपा इतनी बड़ी जीत करेगी।
0.66 प्रतिशत मत ज्यादा लेकर मिल गई सत्ता
अगर वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव के नतीजों का विश्लेषण करें तो दिलचस्प तस्वीर दिखाई देती है। तब कांग्रेस को मिले थे 33.79 प्रतिशत मत, जबकि भाजपा के हिस्से आए 33.13 प्रतिशत। कांग्रेस ने भाजपा से केवल 0.66 प्रतिशत मत ज्यादा लेकर भाजपा पर एक सीट की बढत बनाई। कांग्रेस ने इस चुनाव में 32 सीटें जीतीं और भाजपा 31 सीटों पर कामयाब रही। कांग्रेस विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, इस नाते स्वाभाविक रूप से सरकार बनाने का दावा करने की हकदार बन गई। ऐसा ही हुआ और कांग्रेस ने बाहरी समर्थन से सरकार बना ली। यानी केवल 0.66 प्रतिशत मत और एक सीट के अंतर ने कांग्रेस को सत्ता तक पहुंचा दिया।
कांग्रेस की होगी मतों के ध्रुवीकरण की कोशिश
साफ है कि कांग्रेस पिछले विधानसभा चुनाव में मिले 13 प्रतिशत अधिक मतों के अंतर को पाटने के बाद ही डेढ़ साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा को चुनौती देने में सक्षम होगी। इसके लिए कांग्रेस को यह उम्मीद और साथ ही जी तोड़ कोशिश भी, तो करनी ही होगी कि भाजपा को मिले मतों में से कुछ प्रतिशत मतों का ध्रुवीकरण उसकी तरफ हो, साथ ही अन्य पार्टियों और निर्दलीयों को मिले मतों पर भी नजर रखनी होगी। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में मत प्रतिशत के लिहाज से निर्दलीय तीसरे स्थान पर रहे थे। निर्दलीयों को लगभग 10 प्रतिशत मत मिले। बसपा का हिस्सा 7.0 प्रतिशत का रहा, जबकि उत्तराखंड क्रांति दल को 0.7 प्रतिशत और सपा को 0.4 प्रतिशत मत हासिल हुए।
वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में मत प्रतिशत का बटवारा
- भाजपा 46.5
- कांग्रेस 33.5
- निर्दलीय 10.0
- बसपा 07.0
- उक्रांद 0.70
- सपा 0.40
- नोटा 01.0
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