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मिशन-2019: असंतोष के सुरों को कांग्रेस हाईकमान का जवाब

कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश के लिए पार्टी की पांच प्रमुख समितियां घोषित कर ये साफ कर दिया है कि चुनाव में खींचतान बाधक नहीं बनेगी।

By Edited By: Published: Mon, 28 Jan 2019 03:00 AM (IST)Updated: Mon, 28 Jan 2019 01:35 PM (IST)
मिशन-2019: असंतोष के सुरों को कांग्रेस हाईकमान का जवाब
मिशन-2019: असंतोष के सुरों को कांग्रेस हाईकमान का जवाब
देहरादून, राज्य ब्यूरो। कांग्रेस के लिए करो या मरो का सवाल बने मिशन 2019 में प्रदेश के दिग्गजों की खींचतान बाधक नहीं बन सकेगी। लोकसभा चुनाव के मद्देनजर प्रदेश के लिए घोषित की गईं पार्टी की पांच प्रमुख समितियों के जरिये हाईकमान ने साफ संदेश दे दिया है। 
बीते दिनों प्रदेश में जिला-महानगर अध्यक्षों समेत जारी की गई विभिन्न समितियों को लेकर उपजे असंतोष के बाद लोकसभा चुनाव की समितियों में पार्टी ने पूरी एहतियात बरती है। इन सभी समितियों की कमान राहुल के करीबियों में शुमार प्रदेश प्रभारी अनुग्रह नारायण सिंह के पास रहेगी। 
प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश को पूरी तवज्जो देते हुए हर समिति में रखा गया है। यह दीगर बात है कि उक्त सभी समितियों में विधायकों, पूर्व विधायकों, राज्यसभा सदस्य व पूर्व सांसदों को तो जितनी तरजीह दी गई है, उतना संगठन में सक्रिय कार्यकर्ताओं को नहीं मिल पाई है। कांग्रेस के सामने इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती लोकसभा चुनाव में अपने प्रदर्शन को सुधारना है। पार्टी इसके लिए चौतरफा प्रयास कर रही है। 
हाईकमान की कोशिश भी यही है कि प्रदेश स्तर पर किसी भी गुटबंदी या खींचतान का असर आगामी आम चुनाव पर न पड़ने पाए। पार्टी की ये मंशा लोकसभा चुनाव को लेकर प्रदेश के लिए घोषित की गई पांच समितियों में साफतौर पर दिख रही है। सभी समितियों की कमान प्रदेश प्रभारी अनुग्रह नारायण सिंह को सौंपी गई है। 
दरअसल, बीते दिनों प्रदेश संगठन की सिफारिश पर हाईकमान की ओर से जितनी भी नियुक्तियां की गई हैं, उनमें अहम सूचियों को लेकर पार्टी के भीतर ही दिग्गजों ने सार्वजनिक तौर पर नाखुशी का इजहार किया था। विवाद के चलते बरती सावधानी इस वाद-विवाद के चलते पार्टी को खासी किरकिरी भी उठानी पड़ी थी। खास बात ये है कि प्रदेश प्रभारी अनुग्रह नारायण सिंह की हिदायत के बावजूद नेताओं की आपसी बयानबाजी पर रोक नहीं लग सकी थी। 
इसे देखते हुए पार्टी हाईकमान ने जो तोड़ ढूंढी, उससे प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश को गाहे-बगाहे घेरने वाले नेता भी दम साधकर बैठने को मजबूर हो गए हैं। उक्त समितियों के खिलाफ असंतोष का इजहार किया तो इसे सीधे हाईकमान से जोड़कर देखा जाएगा। इसे भांपकर पार्टी के नेता चुप्पी साधना ही बेहतर समझ रहे हैं। अहम होगी चुनाव समिति की राय प्रदेश चुनाव समिति, समन्वय समिति, प्रचार समिति, मीडिया समन्वय समिति और चुनाव अभियान समिति में प्रदेश प्रभारी के साथ प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश व सह प्रभारी राजेश धर्माणी भी हैं। 
इनमें सबसे प्रभावशाली समझी जा रही प्रदेश चुनाव समिति में पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय के साथ ही राज्यसभा सदस्य प्रदीप टम्टा, विधायक गोविंद सिंह कुंजवाल, करन मेहरा, फुरकान अहमद, ममता राकेश, पूर्व सांसद केसी सिंह बाबा व महेंद्रपाल सिंह, पूर्व विधायक जीतराम, ब्रहमस्वरूप ब्रहमचारी व संजय डोभाल को शामिल कर पार्टी ने लोकसभा चुनाव की अपनी रणनीति को भी स्पष्ट करने की कोशिश की है। प्रदेश की पांचों लोकसभा सीट पर प्रत्याशियों के चयन में भी समिति के सदस्यों की राय को अहमियत दिए जाने के संकेत हैं। 
विधायकों-पूर्व विधायकों पर भरोसा 
वहीं भारी-भरकम 50 सदस्यीय चुनाव अभियान समिति के जरिये सभी को साथ लेकर चलने की मंशा भी पार्टी ने साफ कर दी है। समन्वय समिति को 11 के आंकड़े तक सीमित रखा गया है, लेकिन इसमें कई दिग्गज और रणनीतिकारों को भी तवज्जो मिली है। पांचों समितियों में पार्टी के भीतर सक्रिय सभी गुटों को साथ लेने पर जोर रहा है। हालांकि, इन समितियों में विधायकों, पूर्व विधायकों, पूर्व सांसदों पर अधिक भरोसा दिखाया गया है। प्रदेश संगठन और जमीन पर सक्रिय कार्यकर्ताओं को समितियों में जगह कम ही मिल पाई है। इनकी भागीदारी 25 फीसद से भी कम बताई जा रही है।

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