लोकायुक्त मामले में सरकार का कांग्रेस पर पलटवार
विधानसभा के शीतकालीन सत्र के तीसरे दिन प्रदेश में लोकायुक्त नियुक्त करने को लेकर विपक्ष कांग्रेस ने सदन में सरकार को घेरने का प्रयास किया।
राज्य ब्यूरो, देहरादून: विधानसभा के शीतकालीन सत्र के तीसरे दिन प्रदेश में लोकायुक्त नियुक्त करने को लेकर विपक्ष कांग्रेस ने सदन में सरकार को घेरने का प्रयास किया। कांग्रेस ने लोकायुक्त कानून लागू करने की सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाए। विपक्ष ने चेतावनी दी कि यदि अगले 20-25 दिनों में लोकायुक्त व्यवस्था लागू नहीं की गई तो कांग्रेस आंदोलन करेगी। वहीं, सरकार की ओर से जवाब देते हुए संसदीय कार्यमंत्री प्रकाश पंत ने कहा कि भाजपा सरकार ने सत्ता में आने के नौ दिनों के भीतर ही सदन में लोकायुक्त विधेयक प्रस्तुत कर दिया था। यह विधेयक प्रवर समिति को सुपुर्द किया गया। प्रवर समिति ने जून 2017 में अपना प्रतिवेदन सदन को प्रस्तुत कर दिया। अब यह सदन की संपत्ति है। सदन को ही इस पर निर्णय लेना है। नियमानुसार जो विषय एक बार सदन के विनिश्चय के लिए आ जाता है उस पर बार-बार सवाल नहीं उठाए जा सकते। सरकार के इस जवाब से असंतुष्ट कांग्रेसियों ने वेल में आकर अपनी विरोध भी जताया।
गुरुवार को सदन की कार्यवाही शुरू होते ही कांग्रेस ने लोकायुक्त का मसला उठाया और नियम 310 (सभी काम रोककर प्रश्नगत विषय पर चर्चा) के तहत इस विषय पर चर्चा की मांग की। पीठ द्वारा इस विषय को सामान्य प्रक्रिया के दौरान चर्चा करने के लिए शामिल किए जाने के आश्वासन पर विपक्ष पहले नहीं माना और वेल में आकर अपनी मांग दोहराई। बाद में वह इसे नियम 58 में कार्यस्थगन की सूचना की ग्राह्यता पर सुनने के आश्वासन पर शांत हुए। प्रश्नकाल के बाद नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश ने लोकायुक्त का मसला उठाते हुए कहा कि सरकार की लोकायुक्त लागू करने की मंशा नहीं है। तमाम प्रकरण ऐसे हैं जिसकी परिधि में सब शामिल हैं। हाल ही में एक स्टिंग प्रकरण पर एक व्यक्ति को जेल भेजा गया। अधिकारियों व अन्य लोगों से लेन-देन जैसे प्रकरणों के लिए ही लोकायुक्त बना है। सरकार ने अभी तक लोकायुक्त को लेकर एक भी बैठक नहीं बुलाई है। भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस का दावा गलत है।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष व विधायक प्रीतम सिंह ने कहा कि जब प्रदेश में भाजपा की सरकार आई तो मुख्यमंत्री ने कहा कि सौ दिनों के भीतर लोकायुक्त लाया जाएगा। आज पौने दो साल के बाद भी लोकायुक्त का पता नहीं। आलम यह है कि सरकार स्वयं ही लोकायुक्त का प्रस्ताव लेकर आई और स्वयं ही इसे प्रवर समिति को भेज दिया। भ्रष्टाचार के प्रकरणों की स्थिति यह है कि एनएच 74 पर सीबीआइ जांच नहीं हो पाई है। स्टिंग प्रकरण में क्या बरामद हुआ पता नहीं, अब आयोग लाने की बात कही जा रही है। प्रदेश में जब भ्रष्टाचार हो रहा है तो लोकायुक्त क्यों नहीं लाया जा रहा है। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने कहा कि भ्रष्टाचार के मुद्दों पर सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की है। इन मामलों में बड़े नाम आ रहे हैं। इन्हें देखते हुए सरकार लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं कर रही है। उप नेता प्रतिपक्ष करण माहरा ने कहा कि भ्रष्टाचार के जितने प्रकरण सरकार सामने ला रही है सब पर सवाल उठ रहे हैं। लोकायुक्त के होने से यह सभी उसके दायरे में होते। इनके अलावा कांग्रेस विधायक ममता राकेश, फुरकान अहमद, मनोज रावत, आदेश चौहान और राजकुमार ने भी विचार रखे।
सरकार की ओर से जवाब देते हुए संसदीय कार्यमंत्री प्रकाश पंत ने कहा कि भाजपा ने 2007 में लोकायुक्त नए स्वरूप में स्थापित करने का काम किया और 2011 में इस से पारित किया गया। इसमें एक प्रावधान यह था कि इस अधिनियम के प्रावधान तैयारियों के लिए तत्काल प्रभाव से लोग होंगे और अधिनियम राज्यपाल की अनुमति मिलने के बाद 180 दिनों के भीतर लागू हो जाएगा। इसे स्वीकृत के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा गया, जहां से वर्ष 2013 में इसी स्वीकृति मिली। वर्ष 2014 में कांग्रेस सरकार ने इसमें संशोधन करते हुए कहा कि प्रावधान तैयारियों के लिए तत्काल प्रभाव से लागू होंगे लेकिन अधिनियम लोकायुक्त की नियुक्ति की तिथि से लागू माना जाएगा। इसके बाद कांग्रेस ने लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं की, जिसके चलते यह अधिनियम लागू नहीं हो पाया। भाजपा की वर्तमान सरकार ने इसे लागू करने के लिए प्रवर समिति से पारित करा कर सदन को दे दिया है। अब सदन इस पर निर्णय लेगा।
संसदीय कार्यमंत्री के जवाब पर कांग्रेस विधायकों ने नाराजगी जताई और वेल में आकर अपना विरोध दर्ज किया। पीठ ने इसे अग्राह्य कर दिया।