शासन के पत्र से कुलसचिव पद पर विवाद, जानिए ऐसा क्या है लिखा
उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय को लेकर नया विवाद पैदा हो गया है। इसबार शासन के एक पत्र ने विवाद खड़ा किया है। जो कुलसचिव पद से जुड़ा है।
देहरादून, जेएनएन। शासन के एक पत्र ने उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय को लेकर नया विवाद पैदा कर दिया है। मामला कुलसचिव पद से जुड़ा है। इस पत्र में कहा गया है कि विवि में कुलसचिव की कुर्सी आठ माह से खाली है। कुलसचिव प्रभार के लिए तीन नाम विवि से मांगे गए हैं। जबकि वर्तमान में यहां प्रभारी कुलसचिव तैनात हैं।
शासन के इस पत्र के दो पहलू हैं। पहला यह कि कुलसचिव का पद अगर खाली है, तो डॉ. राजेश कुमार किस हैसियत से कार्यभार देख रहे हैं। विवि परिनियमावली के अंतर्गत कुलसचिव का पद शासन की परिधि का है। शासन पद रिक्त मान रहा, तो क्या वह स्वयंभू कुलसचिव बने हुए हैं। यह बात अगर सही है तो प्रभारी कुलसचिव के रूप में उनका हर फैसला अमान्य व अवैध माना जाएगा। जिसमें सहायक प्राध्यापक से लेकर चतुर्थ श्रेणी तक के कर्मियों की नियुक्ति और तमाम ट्रांसफर-पोस्टिंग, वित्तीय लेनदेन, टेंडर प्रक्रिया आदि शामिल है। इससे शर्मनाक स्थिति भला क्या होगी कि विवि में कुलसचिव की नियुक्ति ही अवैध है।
मामले का दूसरा पहलू यह कि शासन मान रहा है डॉ. मृत्युंजय मिश्रा ने 17 अप्रैल को रजिस्ट्रार का पदभार ग्रहण किया था। जबकि विवि ने उसी वक्त स्पष्ट कर दिया था कि मिश्रा को कार्यभार दिया ही नहीं गया। मिश्रा ने कुलपति की गैर मौजूदगी में एकतरफा चार्ज लिया था।
यही नहीं, सरकार को कुलसचिव पद पर उनकी नियुक्ति पर रोलबैक करना पड़ा था। मिश्रा की विवादित छवि के कारण उन्हें आयुष महकमे से संबद्ध कर दिया गया था। अपर आयुक्त कर मोहम्मद नासिर को प्रभारी कुलसचिव बनाया गया, पर उन्होंने भी ज्वाइन नहीं किया। बीते माह मिश्रा हाईकोर्ट से बहाली आदेश लेकर पहुंचे पर विवि में उन्हें घुसने नहीं दिया गया। यह परिस्थितियां तमाम विरोधाभास पैदा करती हैं। उस पर प्रभारी कुलसचिव ने तमाम पत्राचार इस दौरान किए हैं। इस विषय पर कुलपति की प्रतिक्रिया चाही गई तो उनका फोन बंद मिला।
कोर्ट के डर से तो नहीं टूटी नींद
इस पूरे मामले में एक रोचक पहलू और भी है। कहा यह भी जा रहा है कि सरकार व शासन ने उक्त कदम अपनी गर्दन बचाने के लिए उठाया है। छह माह पूर्व नैनीताल हाईकोर्ट में कुलसचिव एवं उप कुलसचिव की नियुक्ति को लेकर एक जनहित याचिका दायर की गई थी। जिसमें न्यायालय ने राज्य सरकार को आदेश दिया था कि 10 सप्ताह के भीतर विवि में कुलसचिव एवं उप कुलसचिव की नियुक्ति प्रक्रिया पूर्ण करे। पर नियुक्ति करना दूर अभी तक विज्ञापन तक जारी नहीं हुआ है।
पिछले माह इसी मामले में अवमानना याचिका दायर की गई। जिस पर न्यायालय ने विभागीय सचिव को 15 दिन के भीतर अपना पक्ष रखने का आदेश दिया था। तब जाकर सरकार की नींद टूटी और आनन-फानन में विवि से कुलसचिव पद के लिए तीन नाम मांग लिए गए।
प्रभारी कुलसचिव डॉ. राजेश कुमार अधाना का कहना है कि उनकी तैनाती शासन के स्तर से हुई है। जिसके निरस्तीकरण का कोई आदेश उन्हें नहीं मिला है। जहां तक डॉ. मृत्युंजय मिश्रा का प्रश्न है, विवि ने उन्हें जब कार्यभार ही नहीं दिया तो वह कैसे कुलसचिव बन गए। क्षणिक भर के लिए अगर यह मान भी लिया जाए कि मिश्रा कुलसचिव थे, तो उन्हें इस पद पर बहाली के लिए हाईकोर्ट क्यों जाना पड़ा।
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